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धर्मेंद्र का जन्म स्थान खंडहर बना:पैतृक घर बिक चुका, जिस सिनेमा घर में हीरो बनने की ठानी, वहां अब शॉपिंग कॉम्प्लेक्स

बॉलीवुड के ही-मैन कहे जाने वाले धर्मेंद्र (धर्म सिंह देओल) का सोमवार को निधन हो गया। इसके बाद से देश दुनिया में उनके चाहने वालों में मायूसी है। कुछ ऐसा ही हाल पंजाब के लुधियाना के खन्ना क्षेत्र के गांव नसराली का। यह वही गांव है, जहां धर्मेंद्र का जन्म हुआ था और परिवार ने उनकी पैदाइश के बाद यहां दो साल बिताए थे। धर्मेंद्र के पिता उस समय सरकारी शिक्षक थे और उनकी पहली पोस्टिंग नसराली में ही हुई थी। परिवार गांव में एक किराए के मकान में रहता था। बाद में उनकी बदली साहनेवाल हो गई, जिसके बाद परिवार नसराली से चला गया। गांव में आज भी वह घर है, जिसमें धर्मेंद्र ने जन्म लिया था। यह मकान अब खंडहर हो चुका है, लेकिन धर्मेंद्र की जन्मस्थली होने के कारण लोगों के लिए आज भी गर्व की निशानी है। गांव निवासी दलबारा सिंह बताते हैं कि धर्मेंद्र का जन्म इसी गांव में हुआ था और उनके पिता बहुत ही सादगी पसंद इंसान थे। मेजर सिंह ने कहा कि गांव में जब भी धर्मेंद्र की कोई नई फिल्म आती थी तो लोग बड़े गर्व से कहते थे-“यह हमारा गांव वाला लड़का है”। रविंदर सिंह ने भावुक होकर कहा कि गांव वालों की एक ही कसक हमेशा रही कि धर्मेंद्र कभी अपने जन्मस्थान नसराली नहीं आ सके। हम अक्सर सोचते थे कि काश वह एक बार यहां आते, उस मिट्टी को देखते जहां उन्होंने पहली सांस ली थी। इसके अलावा साहनेवाल गांव से भी धर्मेंद्र की कई यादें जुड़ी हैं। यहां धर्मेंद्र ने कुछ दिन ट्यूबवेल ऑपरेटर के रूप में भी काम किया था। वह मकान भी है, जहां धर्मेंद्र का परिवार किराए पर रहता था। दोनों गांव में कैसा है इन मकानों का हाल और क्या कहते है ग्रामीण? पढ़िए दैनिक भास्कर एप की ग्राउंड रिपोर्ट… जिस मकान में किराए पर रहा परिवार, धर्मेद्र के नाम की नेम प्लेट लगाई
साहनेवाल में धर्मेंद्र का परिवार जिस घर में कभी किराए पर रहते थे, उसके मालिक संदीप ने इसे धर्मेंद्र की यादों से संजोया हुआ है। संदीप ने अपने घर के बाहर धर्मेंद्र के पुराने घर की तस्वीर बनवा कर लगवाई हुई है। इसके नीचे उसने धर्मेंद्र हाउस नाम से नेम प्लेट भी लगवाई हुई है। अक्सर धर्मेंद्र के चाहने वाले साहनेवाल में आते है, इसकी सेल्फी जरूर लेते है। संदीप बताते है कि हमारे साहनेवाल की पहचान धर्मेंद्र के नाम से है। करीब डेढ़ वर्ष पहले ही मैंने ये मकान मास्टर रामजी दास से खरीदा था। दरअसल, हमारा मकान इस मकान के बिल्कुल साथ लगता था। इस कारण हमने ये मकान उनसे खरीद लिया। मैंने धर्मेंद्र के नाम की नेम प्लेट अपने घर के बाहर इसलिए लगाई है, क्योंकि इसकी पहचान धर्मेंद्र के नाम से है। इसी मकान में धर्मेंद्र रहा करते थे। यहां उनका बचपन गुजरा। पास में ही स्कूल है, जहां धर्मेंद्र पढ़े थे। उनके पिता इसी स्कूल में शिक्षक थे। इसलिए परिवार यहां किराए पर रहता था। गांव साहनेवाल पर बना चुके डॉक्यूमेंट्री
साहनेवाल का नाम धर्मेंद्र के कारण ही मशहूर है। करीब 7 साल पहले धर्मेंद्र ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी इसी घर में की थी। गांव निवासी वरिंदर ने बताया कि देश-विदेश से लोग अक्सर साहनेवाल में धर्मेंद्र का घर देखने आते है। सरकार को चाहिए कि साहनेवाल में कोई ऐसी जगह बनवाई जाए, जहां धर्मेंद्र के बारे सैलानियों को पूर्ण जानकारी मिल सके। मेरे दादा ने धर्मेंद्र को लगवाया था ट्यूबवेल आपरेटर
साहनेवाल निवासी बलबीर कौर बताती हैं कि पहले भी धमेंद्र जब बीमार होते थे तो अस्पताल दाखिल होते थे और तंदरुस्त हो जाते थे। मगर, अब जब आज उनके निधन का पता चला तो बहुत दुख हुआ। आज हमारा मन भरा हुआ है। एक्टर बनने के लिए जब वह मुम्बई गए तो यही से गए। पढ़ाई भी यही पर की। हमें उन पर बहुत मान था। हमारा और हमारे गांव का मुम्बई में नाम धर्मेंद्र ने किया। हमारे साथ उनके पारिवारिक संबंध थे। एक्टर बनने से पहले धर्मेंद्र को टयूबवेल ऑपरेटर हमारे दादा सरदार भगवान सिंह संधू ने ही लगवाया था। उन्होंने यह नौकरी थोड़े दिन ही की। इसके बाद वे मुम्बई चले गए। बेशक वो आज दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनका यादें हमेशा दिलों में धड़केगी। आखिरी समय धर्मेंद्र से हमारी मुलाकात लुधियाना के एक होटल में हुई थी। उनके साथ आंटी प्रकाश कौर भी थी। गांव में जब भी वह आते थे तो स्कूल का चक्कर जरूर लगाते थे। गांव के रेलवे स्टेशन के पुल पर जाते थे और याद करते थे कि इसी स्टेशन से वह मुम्बई में गए थे। जब भी आते थे तो हमारे घर की छत पर महफिल लगाकर परिवार के साथ बैठते थे। दिल्ली में हमारे ताया जी के पास भी अक्सर वे जाते थे। नंबरदार स्वीट्स, जिसकी बर्फी धमेंद्र को बेहद पसंद थी
साहनेवाल में साधु हलवाई की नंबरदार स्वीट्स नाम से दुकान है। इसकी गाजर की बर्फी धर्मेंद्र को बेहद पंसद थी। जो लोग पंजाब से उन्हें मिलने जाते थे, वे अपने साथ साधु हलवाई की बर्फी जरूर ले जाते थे। सन्नी देओल के बेटे करण देओल की शादी में उनकी दुकान से 20 किलो बर्फी गई थी। एक कॉमेडी शो में धर्मेंद्र ने इसका जिक्र किया था। नंबरदार स्वीट्स के मालिक नवी बताते है कि उनके दादा जी के साथ धर्मेंद्र का बहुत लगाव था। उनकी दुकान की खोये वाली बर्फी और गाजर की बर्फी उन्हें बहुत पसंद थी। कपिल शर्मा शो में भी धर्मेंद्र ने जब उनकी दुकान का नाम लिया तो उनका कारोबार काफी बढ़ गया। आज धर्मेंद्र के निधन की खबर सुनी तो काफी मायूसी हुई। 83 साल की माया बोलीं, मैंने धर्मेंद्र की कलाई पर सजाई राखी
साहनेवाल की बुजुर्ग महिला माया (83) ने बताया कि धर्मेंद्र उनके बचपन का दोस्त रहा है। भाई-बहनों की तरह हमेशा एक दूसरे के साथ उनका लगाव रहा है। खेतों में इकट्‌ठे खेलते थे। सरसो का साग और मक्की को रोटी खाते थे। मैं धमेंद्र से 5 साल छोटी हूं। मैं धमेंद्र की कलाई पर राखी सजाया करती थी। खेतों से जब गन्ने लेने जाना तो धर्मेंद्र कहता था कि माया तू आगे हो, मैं पीछे-पीछे चलूंगा। जब भी धर्मेंद्र साहनेवाल आता था तो मेरे से जरूर मिलता था। कई बार मैं अपने पारिवारिक सदस्यों से कह चुकी थी कि मुझे एक बार धर्मेंद्र से मिलवा लाओ। अब उसकी यादें ही हमारे पास रह गई है। उसकी दोस्ती ज्यादातर लड़कियों से होती थी। सभी को बहनों की तरह रखता था। अब सभी कहानियां खत्म हो गई। जब धर्मेंद्र बीमार था तो मैं अस्पताल चली जाती तो उसने मुझे बांहों में ले लेना था। धर्मेंद्र की एक बहन दर्शना है। छोटी बहन छिंदो थी, उसकी डेथ हो गई थी। होम्योपैथ डॉक्टर ललित सूद से भी थी धर्मेंद्र की पक्की यारी
लुधियाना के होम्योपैथिक डॉक्टर ललित सूद ने बताया कि उनकी और अभिनेता धर्मेंद्र जी की दोस्ती बहुत पुरानी और गहरी थी। उनकी धर्मेंद्र जी से पहली मुलाकात उनके दोस्त और प्रॉपर्टी व्यवसायी जीएस लौटे के माध्यम से हुई थी।
उन्हें आज ही पता चला कि धर्मेंद्र जी का निधन हो गया है, जिस पर उन्होंने गहरा दुख व्यक्त किया। डॉक्टर सूद ने एक घटना याद करते हुए बताया कि धर्मेंद्र जी के भाई जब पैरलाइज थे, तब डॉक्टर सूद ने ही उन्हें दवाई दी थी। दवाई देने के बाद, धर्मेंद्र जी ने उन्हें दोबारा फ़ोन किया और कहा कि वे उनके अच्छे मित्र बन गए हैं। इसके बाद, जब भी वे लुधियाना आते थे, वे लगातार मिलते और एंजॉय करते थे।
डॉक्टर सूद ने बताया कि वे एक बार धर्मेंद्र जी के जन्मदिन पर मुंबई गए थे। उस समय, धर्मेंद्र जी की एक कार खराब हो गई थी। उनके दोस्तों ने उस कार को गैरेज से ठीक करवाकर धर्मेंद्र जी के जन्मदिन पर उनके घर वापस पहुंचाया। इस पर लोगों ने यह समझा कि शायद लुधियाना वाले दोस्त ने धर्मेंद्र जी को गाड़ी गिफ्ट की है। अभिनेता धर्मेंद्र से जुड़ी ये बातें भी जानिए… 19 साल की उम्र में हुई थी पहली शादी
धर्मेंद्र की पहली शादी 1954 में 19 साल की उम्र में प्रकाश कौर से हुई थी। इस शादी से उनके 2 बेटे सनी और बॉबी और 2 बेटियां विजेता और अजीता है। शादीशुदा धर्मेंद्र जब फिल्म ‘तुम हसीन मैं जवान’ के सेट पर हेमा मालिनी से मिले, तो उन्हें हेमा से प्यार हो गया था। धर्मेंद्र और हेमा ने साल 1980 में शादी रचा ली थी। इस शादी से कपल की दो बेटियां हैं… ईशा और अहाना देओल। टैलेंट कॉन्टेस्ट ने दिलाई फिल्मों में एंट्री
​​​​​​​गांव साहनेवाल के लोग बताते है कि स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद धर्मेंद्र ने एक टैलेंट कॉन्टेस्ट के लिए अपनी फोटो भेजी थी। इसमें सिलेक्ट होने के बाद वह एक्टर बनने मुंबई आ गए थे। धर्मेंद्र ने 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की दिल भी तेरा हम भी तेरे के साथ फिल्म जगत में शुरुआत की। धर्मेंद्र ने पांच दशकों के करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया है। 1997 में उन्हें हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। 2012 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। राजनीति में भी आजमाया था दांव
धर्मेंद्र ने भारतीय जनता पार्टी की ओर से 2004 से 2009 तक राजस्थान में बीकानेर का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद के रूप में कार्य किया। 2004 में अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने एक आक्रामक टिप्पणी की कि उन्हें “लोकतंत्र के लिए आवश्यक बुनियादी शिष्टाचार” सिखाने के लिए हमेशा के लिए तानाशाह चुना जाना चाहिए। इसके लिए उन्हें आलोचना का सामना भी करना पड़ गया था।


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