देवबंद के दारुल उलूम पहुंचे विदेश मंत्री मुत्ताकी, भारत-अफगानिस्तान रिश्तों को लेकर क्या कहा?
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी सहारनपुर जिले में स्थित दारुल उलूम देवबंद पहुंचे. जहां उनका फूलों से स्वागत किया गया. इस मौके पर मुत्ताकी ने कहा, अब तक का सफर बहुत अच्छा रहा है, सिर्फ दारुल उलूम के लोग ही नहीं, बल्कि क्षेत्र के सभी लोग यहां आए हैं. उन्होंने जो गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया, उसके लिए मैं उनका आभारी हूं. मैं इस गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए देवबंद के उलेमा और क्षेत्र के लोगों का शुक्रगुजार हूं.
मुत्ताकी ने इस मौके पर भारत-अफगानिस्तान संबंधों को लेकर भी बयान दिया. उन्होंने कहा दोनों देशों का भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखाई देता है. 2021 में सत्ता संभालने के बाद पहली बार अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भारत का दौरा कर रहे हैं. अफगानिस्तान के विदेश मंत्री 9 अक्तूबर से 14 अक्तूबर तक भारत के दौरे पर हैं. उन्होंने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की. इसी के बाद आज वो दारुल उलूम का दौरा कर रहे हैं. इस दौरान वो मौलानाओं से मुलाकात करेंगे.
अफगान छात्रों से भी करेंगे मुलाकात
दौरे के दौरान मुत्ताकी के देवबंद मदरसे में पढ़ रहे अफगान छात्रों से बातचीत करने और इसकी ऐतिहासिक लाइब्रेरी का दौरा करने की संभावना है. उनके आने से छात्रों और स्थानीय लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.
#WATCH | Saharanpur, Uttar Pradesh | Afghan FM Amir Khan Muttaqi says, “The journey has been very good so far. Not just the people of Darul Uloom, but all people of the area have come here. I am grateful to them for the warm welcome they extended to me… I am thankful to the pic.twitter.com/TQ7dUwRqPU
— ANI (@ANI) October 11, 2025
क्यों कर रहे हैं दारुल उलूम का दौरा
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री खुद ही इस बात का जवाब दे चुके हैं कि वो दारुल उलूम का दौरा क्यों कर रहे हैं. मुत्ताकी ने कहा, देवबंद जब कोई जाता है तो क्या करता है, नमाज पढ़ता है, इस्लामिक नेताओं से मिलता है, तालिबान (छात्र) से मिलता है. देवबंद इस्लाम का एक ऐतिहासिक मरकज है.
मुत्ताकी ने कहा, देवबंद के उलेमा और अफगानिस्तान के उलेमाओं के बीच बहुत पुराना रिश्ता है. इसी देवबंद मसलक को मानने वाले अफगानिस्तान में भी हैं.
उन्होंने देवबंद का महत्व बताते हुए कहा, देवबंद को हम एक रूहानी मरकज समझते हैं. हम चाहते हैं कि हमारी इस्लामिक नेताओं से मुलाकात हो. दोनों देशों के बीच यहां आना-जाना शुरू हो जाए. अफगानिस्तान से बड़ी संख्या में छात्र देवबंद में इंजीनियरिंग और बाकी विषयों में शिक्षा हासिल करने आते हैं.
#WATCH | Saharanpur, Uttar Pradesh | Afghan FM Amir Khan Muttaqi at Darul Uloom Deoband. pic.twitter.com/lxGKfsgJfB
— ANI (@ANI) October 11, 2025
दारुल उलूम अफगानिस्तान के लिए क्यों अहम?
देवबंद के दारुल उलूम की स्थापना ब्रिटिश राज में 1866 में हुई थी. यह संस्थान देवबंदी इस्लामी विचारधारा का जन्मस्थान माना जाता है. जो एक सुधारवादी और कट्टरपंथी सुन्नी इस्लाम की धारा है. इसके संस्थापक मौलाना मोहम्मद कासिम नानोत्वी, हाजी आबिद हुसैन थे.
देवबंद विचारधारा का मतलब इस्लाम को शुद्ध रखना और पश्चिमी असर से बचाना था. इस मरकज की शिक्षा अफगानिस्तान-पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी फैली.
ORF में पब्लिश एक आर्टिकल के अनुसार, दारुल उलूम देवबंद और अफगानिस्तान के बीच गहरा और पुराना संबंध रहा है. अफगान विद्वान उन शुरुआती विदेशी छात्रों में शामिल थे जिन्होंने देवबंद में शिक्षा हासिल की और फिर अपने देश लौटकर वहीं के पाठ्यक्रम और शिक्षण शैली पर आधारित मदरसों की स्थापना की. अफगान तालिबान अपनी वैचारिक जड़ों को भारतीय देवबंदी परंपरा से जोड़ते हैं.
फादर ऑफ द तालिबान का कनेक्शन
तालिबान के कई वरिष्ठ कमांडरों ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित दारुल उलूम हक्कानिया में पढ़ाई की है, जो देवबंद के मॉडल पर बना हुआ है. हक्कानिया के संस्थापक मौलाना अब्दुल हक ने विभाजन से पहले देवबंद में पढ़ाई की थी और वहां पढ़ाया भी था. उनके बेटे सामी-उल-हक को बाद में तालिबान आंदोलन को दिशा देने में उनकी सेमिनरी की भूमिका के कारण फादर ऑफ द तालिबान कहा गया.
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