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दरभंगा में एक साल बाद भी 200 बाढ़ पीड़ित बेघर:छोटे बच्चों को गोद में लेकर जन शिकायत केंद्र पहुंची महिलाएं, पूछा- आखिर कब तक भटकना पड़ेगा

दरभंगा के किरतपुर प्रखंड के भभौल गांव के पास सितंबर 2024 के अंत में कोसी नदी के पश्चिमी तटबंध टूटने से आई भीषण बाढ़ का दर्द आज भी सैकड़ों परिवारों के दिलों में ताजा है। एक साल तीन महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद करीब दो सौ बाढ़ पीड़ित परिवार अब तक बेघर हैं। सिर पर छत न होने का सबसे गहरा असर महिलाओं और मासूम बच्चों पर पड़ा है। 29–30 सितंबर 2024 की देर रात तटबंध टूटते ही किरतपुर और घनश्यामपुर प्रखंड के कई गांवों में कोसी का पानी तबाही बनकर टूट पड़ा। रसियारी, बगरस, ढागा सहित दर्जनों गांव पल भर में जलमग्न हो गए। सैकड़ों घर बह गए और हजारों लोग जान बचाकर सुरक्षित स्थानों की ओर भागने को मजबूर हुए। उस दौरान कई इलाकों का अनुमंडल मुख्यालय से संपर्क भी पूरी तरह कट गया था। प्रभावित परिवार बोले- गांव लौटकर दोबारा बसना मुश्किल आज हालात यह हैं कि बाढ़ प्रभावित गांवों के कई हिस्सों में अब भी पानी जमा है। खेत, आंगन और बस्तियां दलदल में तब्दील हो चुकी हैं। टूटे-फूटे घरों के अवशेष आज भी उस भयावह मंजर की गवाही देते हैं। ऐसे में पीड़ित परिवारों के लिए अपने मूल गांव में लौटकर दोबारा बस पाना फिलहाल असंभव बना हुआ है। झोपड़ी बनाकर रह रहे थे, लेकिन सड़क चौड़ीकरण के नाम पर हटाया बाढ़ के बाद जान बचाकर निकले परिवारों ने जमालपुर मुख्य सड़क किनारे झोपड़ियां बनाकर किसी तरह जीवन शुरू किया था, लेकिन कुछ महीनों बाद सड़क चौड़ीकरण के नाम पर उन्हें वहां से हटा दिया गया। इसके बाद आसपास के लोगों की जमीन पर अस्थायी आशियाना बनाया गया, पर अब रबी फसल की बुआई का हवाला देकर जमीन मालिकों ने वहां से भी हटने को कह दिया है। इससे पीड़ित परिवार एक बार फिर बेघर होने की कगार पर पहुंच गए हैं। बच्चों को लेकर बिरौल लोक जन शिकायत निवारण केंद्र पहुंची महिलाएं शुक्रवार को हालात उस वक्त और भी मार्मिक हो गए, जब बाढ़ पीड़ित महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर बिरौल लोक जन शिकायत निवारण कार्यालय पहुंचीं। तपती धूप में रोते-बिलखते मासूम, मांओं की सूनी आंखें और फटे-पुराने कपड़ों में लिपटे बच्चे प्रशासन से मानो सवाल कर रहे थे—आखिर उनका कसूर क्या है? महिलाओं ने बताया कि अचानक आई बाढ़ ने उनसे घर, गृहस्थी, पशु और रोजी-रोटी सब कुछ छीन लिया। बच्चों की पढ़ाई छूट चुकी है, खाने और रहने का कोई ठिकाना नहीं है। कई महिलाएं रोते हुए कहती रहीं कि खुले आसमान के नीचे बच्चों को लेकर आखिर कब तक भटकना पड़ेगा। प्रभावित गरीब और महादलित समुदाय से आते हैं पीड़ितों का कहना है कि सभी परिवार गरीब और महादलित समुदाय से आते हैं। उनके पास न तो अपनी जमीन है और न ही दोबारा घर बनाने की आर्थिक क्षमता। उन्होंने सरकार और जिला प्रशासन से मांग की है कि उन्हें किसी सुरक्षित सरकारी जमीन पर स्थायी रूप से बसाने की व्यवस्था की जाए, ताकि उनके बच्चों का भविष्य अंधकार में न डूबे।


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