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डेढ़ साल में रैकेट थामा, 9 की उम्र में चैंपियन:अल्मोड़ा के शटलर लक्ष्य को विरासत में मिली प्रतिभा, खराब फॉर्म के बाद ऑस्ट्रेलिया में की वापसी

उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जन्में 24 साल के लक्ष्य सेन रविवार को ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर 500 का खिताब जीतकर एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। वह काफी समय से खराब फॉर्म से गुजर रहे थे, लेकिन जापान की युशी तनाका को महज 38 मिनटों में हराकर उन्होंने शानदार वापसी कर दिखाई। देश के लिए कई मेडल जीत चुके लक्ष्य के लिए खेल सिर्फ जीतने का माध्यम नहीं था, बल्कि यह उनके परिवार के सपनों और त्याग का प्रतीक भी रहा। उनके पिता धीरेंद्र कुमार सेन और माता निर्मला सेन ने अपने जीवन में अनेक त्याग किए, ताकि लक्ष्य और उनके भाई चिराग को सर्वोत्तम प्रशिक्षण और शिक्षा मिल सके। छोटे उम्र से ही लक्ष्य के भीतर खेल के गुण दिखाई देने लगे थे। डेढ़ साल की उम्र में रैकेट थामना, छह साल में बड़े खिलाड़ियों को हराना और नौ साल में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतना, यह सभी संकेत थे कि यह युवा खिलाड़ी भविष्य में भारत का नाम रोशन करेगा। लक्ष्य के लिए बैडमिंटन परिवार की विरासत लक्ष्य सेन को बैडमिंटन विरासत में मिला। उनके पिता धीरेंद्र कुमार सेन अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमाणित कोच हैं और दादा सी.के. सेन भी बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं। पिता महानगरों के बड़े अकादमियों में उच्च वेतन वाली नौकरी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटों को प्रशिक्षित करने के लिए अल्मोड़ा में ही रहने का फैसला किया। उनकी माता निर्मला सेन बीरशेबा स्कूल में शिक्षिका रहीं और आर्थिक सुविधाएं सीमित होने के बावजूद उन्होंने बच्चों की शिक्षा और भविष्य को हमेशा प्राथमिकता दी। परिवार का यह त्याग ही लक्ष्य के लिए शक्ति बना और उन्हें बड़े सपने देखने का साहस मिला। बचपन से ही दिखने लगी प्रतिभा लक्ष्य सेन को पिता बचपन में ही बैडमिंटन कोर्ट ले जाते थे। डेढ़ साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रैकेट थामा और चार साल की उम्र में उसे बेहद सहजता से चलाने लगे। रोजाना आठ घंटे से अधिक अभ्यास उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था। स्कूल के बाद दोबारा प्रशिक्षण होता और घर का हर दिन कोर्ट, अभ्यास और फिटनेस पर केंद्रित रहता। उनकी प्रतिभा इतनी निखर चुकी थी कि छह साल की उम्र में वे बड़े और अनुभवी खिलाड़ियों को चुनौती देने लगे थे। नौ साल की उम्र में उन्होंने सिंगापुर अंडर-11 अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतकर पहली बार विश्व स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। करियर की उड़ान और बड़े खिताब लक्ष्य सेन ने 2010 में बेंगलुरु की प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन अकादमी जॉइन की, जहां पेशेवर प्रशिक्षण से उनके खेल को नई गति मिली। 2017 में वे जूनियर विश्व नंबर-1 बने और 2019 उनका सबसे सफल वर्ष रहा, जब उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते। 2022 में कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीतकर वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। पेरिस ओलंपिक 2024 में वे सेमीफाइनल तक पहुंचे और 2025 में ऑस्ट्रेलियन ओपन सुपर 500 जीतकर उन्होंने अपने करियर का एक और अहम पड़ाव हासिल किया। 5 प्वाइंट्स में जानिए कैसे लक्ष्य ने हासिल किया ऑस्ट्रेलिया ओपन का लक्ष्य…


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