बिना परमिट वाली बालू जितनी चाहिए मिल जाएगी। पुलिस की कोई टेंशन न लीजिए। हमारी गाड़ी को कोई हाथ नहीं लगाएगा। पुलिस वालों का पैसा बंधा है। हर गाड़ी पर एक एक ट्रिप का पैसा देते हैं। थाने के सामने बालू लोड गाड़ियां बिना सेटिंग के लग रही हैं। आप तो पैसा दीजिए बालू आपके प्लाट पर गिरा दी जाएगी। गाड़ी से अनलोड करने के बाद आपकी जिम्मेदारी होगी। पुलिस को सेट कर लीजिए, घर बन जाएगा। नहीं तो नंबर एक की बालू खोजते रह जाइएगा और वो बहुत महंगी भी मिलती है। यह दावा अवैध बालू की सप्लाई करने वाले एजेंट कर रहे हैं। भास्कर के कैमरे पर 6 एजेंट बिना कागज वाले अवैध बालू की डील करते कैमरे में कैद हुए हैं। भास्कर रिपोर्टर ने एजेंट से 100 ट्राली बालू की डील की है। सदन में डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा की बालू माफियाओं के खिलाफ बयान की जमीनी हकीकत जानने के लिए दैनिक भास्कर ने ऑपरेशन बालू चलाया। पढ़िए और देखिए जहां सरकार बैठती है, वहां कैसे चल रहा है अवैध बालू का खेल..। थाना के सामने लगती है अवैध बालू की मंडी नई सरकार बनते ही गृह मंत्री सम्राट चौधरी बालू माफियाओं पर आक्रामक हैं। सम्राट के साथ सदन में डिप्टी सीएम विजय सिन्हा भी बालू के खिलाफ आक्रामक हुए। सरकार की इस सख्ती के बाद ऐसा लग रहा था बिहार में अवैध बालू की निकासी बंद हो गई है। दैनिक भास्कर की इन्वेस्टिगेशन टीम इसकी पड़ताल में जुटी तो थाने के सामने ही अवैध बालू की मंडी का इनपुट मिला। पड़ताल के दौरान पता चला कि पूरा खेल रात में चल रहा है। सुबह होते ही पूरी डील हो जाती है। इनपुट मिला कि दीघा थाने के सामने अवैध बालू की डील होती है, रिपोर्टर रात में 3 बजे दीघा थाने के सामने पहुंचा। थाने के सामने सड़क पर एक लाइन से 100 से अधिक बालू लदी छोटी बड़ी गाड़ियां नजर आईं। रिपोर्टर ने बिना कागज वाली 50 ट्राली बालू की डील की। दीघा थाने के सामने रिपोर्टर की मुलाकात बालू के एजेंट बिहारी से हुई। वह बिना पेपर के बालू देने को तैयार हो गया। पुलिस की सख्ती पर दावा किया कि उससे कोई भी कागज नहीं मांग पाएगा। सब कुछ सेटिंग से चल रहा है। रिपोर्टर – बालू किस घाट का है? बिहारी – कोइलवर का है, कोई शिकायत नहीं है। रिपोर्टर – अधिक चाहिए था। बिहारी – आप जितना चाहिए मिल जाएगा। रिपोर्टर – पेपर दीजिएगा ना? बिहारी – पेपर नहीं मिलेगा, पेपर काहे का होगा?रिपोर्टर – अगर पुलिस वाले मांगे तो क्या बताएंगे? आजकल बहुत सख्ती है। बिहारी – उसकी चिंता छोड़ दीजिए, हम हैं ना, बालू गिरा देंगे।रिपोर्टर – नहीं, बिना पेपर का कैसे होगा?बिहारी – हम हाइवा वाला चालान दे देंगे।रिपोर्टर – ट्रैक्टर से गिर रहा है, तो हाईवा वाला चालान का क्या होगा?बिहारी – यहां सब ऐसे ही होता है, कागज खोजिएगा तो बालू नहीं मिल पाएगा। दीघा थाने के सामने ही हमारी मुलाकात एजेंट ओम प्रकाश से हुई। वह 100 गाड़ी बालू देने को तैयार हो गया। बालू दिखाने के लिए वह थाने से लगभग 2 किलो मीटर दूर ले गया। पोलसन रोड पर बालू स्टोर करके रखा गया था। वह स्टोर में ले जाकर रिपोर्टर से 100 गाड़ी की डील की। रिपोर्टर – यहां तो बालू को लेकर बहुत दिक्कत है। ओम प्रकाश – इधर थोड़ी दिक्कत है, धीरे – धीरे सब सेट हो जाएगा। रिपोर्टर – बालू के लिए 3 बजे रात में घूमना पड़ रहा है? ओम प्रकाश – बिहार में कोई नियम – कानून नहीं है? रिपोर्टर – बालू तो दिन में ही कागज पर मिल जाना चाहिए। ओम प्रकाश – चलिए अपने स्टोर पर वहीं बात किया जाएगा। रिपोर्टर – ठीक है, चलिए दिखा दीजिए। ओम प्रकाश – देखिए, यह है बालू है, जांच कर लीजिए (स्टोर पर बालू दिखाते हुए) रिपोर्टर – ठीक तो दिख रहा है, घर के लिए सही रहेगा ना? ओम प्रकाश – एकदम सही है, ऑर्डर दीजिए यही गिरवा देते हैं रिपोर्टर – आज रुक जाइए, कल बताएंगे तो गिरवा दीजिएगा। ओम प्रकाश – ठीक है, सुबह कल इसी समय यहीं मिलिएगा। बिहार में दारू लाना आसान, बालू ले जाना मुश्किल ओमप्रकाश को जब हमने राजीव नगर थाने के पीछे नेपाली नगर में बालू अनलोड करने की बात कही तो उसने पुलिस की सेटिंग की पोल खोल दी। ओमप्रकाश ने कहा, वहां गाड़ी फंसने का डर है। बिना पुलिस को सेट किए वहां घर नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि सब सरकारी जमीन है। रिपोर्टर – चालान का क्या होगा? ओमप्रकाश – मिल जाएगा। रिपोर्टर – बाकी खर्चा? ओमप्रकाश – वो मैं देख लूंगा। रिपोर्टर – बाहर बता रहे थे 400 रुपए लगता है। ओम प्रकाश – वो भी मैं देख लूंगा। रिपोर्टर – किस थाने का खर्चा है? ओम प्रकाश – सभी थाने में तो देना ही होता है। रिपोर्टर – कहां गिराएंगे? ओम प्रकाश – जहां कहिए, वहीं गिरा दूंगा। ट्रैक्टर से गिराया जाएगा। रिपोर्टर – नेपाली नगर में गिराना है। ओमप्रकाश – वहां तो मैनेज करके ही काम लगाइएगा, नहीं तो गाड़ी फंस जाएगी। रिपोर्टर – क्यों आपकी तो सेटिंग है ना? ओम प्रकाश – उधर बिना सेटिंग के घर नहीं बनता है। गाडी फंस गई तो फिर गड़बड़ हो जाएगी। रिपोर्टर – कागज है तो क्यों फंसेगी? ओमप्रकाश – नेपाली नगर हाउसिंग की जमीन है, वहां बिना मैनेज के काम नहीं होता। रिपोर्टर – रास्ते में कोई रोकेगा तो नहीं? ओमप्रकाश – कोई नहीं रोकेगा, सौ – दो सौ दे दिया जाएगा। रिपोर्टर – ठीक है। ओमप्रकाश – जब गिरवाना हो, एक दिन पहले बता दीजिएगा। रिपोर्टर – और कोई परेशानी तो नहीं होगी? ओमप्रकाश – नहीं, हम लोग बाइक से आगे – आगे रहेंगे। रिपोर्टर – अच्छा सेटिंग के लिए। ओम प्रकाश – देखा ही होगा, जब हमारी ट्रक आई तो हमारी तीन बाइक आगे – पीछे लगी थीं। रिपोर्टर – तब तो बहुत दिक्कत है। ओमप्रकाश – हां, दारु लादकर चलना आसान है, लेकिन बालू लाना मुश्किल। रिपोर्टर – ऐसा क्यो ? ओम प्रकाश – 4 लाख का फाइन है, इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। रिपोर्टर – जहां आप काम करते हैं, वह किसका है? ओमप्रकाश – जगह किराए पर ली है। क्या करें, पूरी जिंदगी यही धंधा किया है। रिपोर्टर – मेरी सेटिंग करा दीजिए ताकि घर बन जाए। ओम प्रकाश – हां सेट हो जाएगा। थाना को मैनेज करने के बाद पूरा काम कीजिए। दीघा थाना के पास ही बालू के एजेंट विजय ने रिपोर्टर से बालू की डील की। विजय ने खुलासा किया कि बालू का काम पूरी तरह से साफ सुथरा नहीं है। पुलिस की सेटिंग करनी ही पड़ती है। चाहिए कि बिना पुलिस की सेटिंग से बालू का काम हो जाए तो नामुमकिन है। थाना को सब पता रहता है, बालू कहां से कैसे आ रहा है। रिपोर्टर – कहां का बालू है? विजय – सोन नदी का लाल बालू है। रिपोर्टर – किस घाट से निकाला गया है। विजय – महुवार घाट का है, कहां गिराना है। रिपोर्टर – राजीव नगर थाना के पीछे नेपाली नगर में गिराना है। विजय – 6 हजार रुपए ट्राली का रेट है। रिपोर्टर – पुलिस रोक दे रही है। विजय – देखिए, बिना पुलिस को मैनेज किए बालू नहीं गिर पाएगा। रिपोर्टर – बालू में क्या दिक्कत है? विजय – बालू गिराएगा काम कीजिएगा बिना मैनेज किए कैसे होगा। रिपोर्टर – हमको ज्यादा बालू चाहिए, लेकिन पेपर के साथ चाहिए। विजय – ये सब हाइवा से गिरता है, वहां से हम लोग टेलर पर लोड करके बेचते हैं। रिपोर्टर – कागज तो होगा ना बालू का? विजय – नहीं इसका कोई कागज नहीं मिल पाएगा। रिपोर्टर – पेपर तो मिलता है भाई? विजय का दावा – गाड़ी खड़ी करने के लिए पुलिस पैसा लेती है बालू की डील करने के दौरान विजय ने खुलासा किया कि पुलिस थाने के पास गाड़ी खड़ी करने का पैसा लेती है। विजय ने कहा – देखिए बिंदौल, मछुआर, पनकापुर और महुआर से बालू यहां आता है। बड़ी गाड़ियों से बालू लाकर हम प्लॉट पर गिरा देते हैं। इसके बाद हम लोग यहां से बिना पेपर के ही बेचते हैं। बस खदान से निकलने वाले ट्रक का पेपर रहता है। विजय की बातचीत में यह साफ हो गया कि घाट पर ही नियम कानून है, बाकी का पूरा खेल पुलिस की सेटिंग से चल रहा है। रिपोर्टर – कितना फाइन लगता है? विजय – एक फीट पर एक लाख का फाइन है। रिपोर्टर – फाइनल रेट बताइए विजय – आप तो 55 सौ रुपए ट्राली दे दीजिएगा, हम गिरा देते हैं। रिपोर्टर – बालू गिराने में पुलिस का कोई डर है क्या। विजय – देखिए यहां बालू वाला ट्रैक्टर खड़ा करने में 100 रुपया थाना को देना पड़ता है। रिपोर्टर – किस लिए देना पड़ता है? विजय – ये पैसा हमलोग दे कर ही यहां थाना के पास गाड़ी लगाते हैं। रिपोर्टर – पुलिस मैनेज है तो फिर बालू गिरवा दीजिए। विजय – आप सिर्फ अपने प्लॉट पर पुलिस को मैनेज कर लीजिए बालू गिर जाएगा। रिपोर्टर – पुलिस से सेटिंग नहीं हुई तो क्या होगा? विजय – मैनेज नहीं कीजिएगा तो पुलिस धर लेगी। रिपोर्टर – क्या करना होगा हमको? विजय – सब हो जाता है, थाना पर जाकर मिल लीजिएगा। रिपोर्टर – बाकी रास्ते में पकड़ा तो क्या होगा? विजय – रोड पर हम लोग मैनेज करेंगे, प्लॉट पर आपको मैनेज करना है। दीघा में ही हमारी मुलाकात एजेंट सनोज से हुई। सनोज ने दावा किया कि पेपर की कोई जरूरत नहीं है। बस साइट दिखा दीजिए बालू गिर जाएगा। बालू के लिए कागज नहीं सेटिंग की जरुरत है। मामला सेट हो गया तो जितना चाहिए बालू मिल जाएगा। रिपोर्टर – अधिक संख्या में बालू चाहिए। सनोज – आप टेंशन मत लीजिए, जब जितना बालू चाहिए, भेज देंगे। रिपोर्टर – पेपर दीजिएगा ना? सनोज – पेपर की क्या जरूरत है, आप साइट दिखा दीजिए, बालू गिराना मेरा काम है। रिपोर्टर – पैसा कैसे लेंगे लोग सनोज – जैसे देना है दीजिए ना, मेरा नंबर ले लीजिए जब बोलिएगा बालू गिर जाएगा। रिपोर्टर – पुलिस का कोई टेंशन तो नहीं होगा ना? सनोज – वह सब हम लोगों का टेंशन है, देखिए कैसे बालू पहुंच जाएगा। रिपोर्टर – आप लोगों की सेटिंग होती है क्या पुलिस वालों से? सनोज – यहां कागज नहीं पूरा काम सेटिंग से होता है। बालू के एजेंट मनोज ने भी पुलिस की सेटिंग का दावा किया। मनोज के मुताबिक बालू का पूरा कारोबार सेटिंग पर हो रहा है। कागज से बालू नहीं बिक रहा है। सेटिंग नहीं हो तो किसी का भी घर नहीं बन पाएगा। मनोज के मुताबिक पटना में बालू बिना पेपर के ही मिल रहा है। रिपोर्टर – अधिक संख्या में बालू चाहिए? मनोज – चलिए दो गाड़ी ले चलिए, हम गिरा देंगे। रिपोर्टर – कागज वाला बालू चाहिए, नहीं तो पुलिस परेशान करेगी। मनोज – कागज के साथ यहां बालू कोई नहीं दे पाएगा। रिपोर्टर – क्यों, बालू निकालते होंगे तो कागज मिलता होगा ना? मनोज – यहां लाने में ही बहुत खर्चा है, 500 रुपया भी ट्रैक्टर वाला नहीं लेगा तो काम कैसे होगा। रिपोर्टर – कैसे होगा तब? मनोज – देखिए सर अब रिस्क ज्यादा है, डर के मारे जल्दी उधर बालू देने की नहीं जाता है। रिपोर्टर – रोज आप लोगों का बिक जाता है। मनोज – कभी एक तो कभी कभी दो – दो ट्रेलर बिक जाता है। दीघा के पास ही रिपोर्टर की मुलाकात बालू के सप्लायर राहुल से हुई। राहुल ने बताया कि पुलिस की सेटिंग से ही पूरा काम हो रहा है। बालू को गाड़ियों में लोडकर दीघा थाना के पास ही लगाते हैं। थाना के पास से ही हर दिन बालू की डील होती है। रिपोर्टर – बालू कहां का है? राहुल – सोन से आता है। हम लोग तो डिपो से लाते हैं। रिपोर्टर – खदान कौन लोग करते हैं? राहुल – हम लोग डायरेक्ट खदान नहीं जा रहे, वहां से महंगा पड़ रहा है। रिपोर्टर – बालू का चालान तो मिल जाएगा ना? राहुल – नहीं पेपर कोई नहीं मिलेगा, यहां कोई पेपर पर नहीं बेचता है। रिपोर्टर – हमें तो पेपर वाला चाहिए, लेकिन आप कह रहे हैं पेपर नहीं है। राहुल – हम लोग पहले जाते थे, लेकिन थाना से परेशानी होने लगी। रिपोर्टर – थाना पास में है, यहां लगाए हैं तो कोई दिक्कत? राहुल – कल ही ले लिया, थाना ने कल ले लिया था। रिपोर्टर – थाना भी पैसा लेता है क्या? राहुल – हां देना पड़ता है, बिना पैसा लिए काम करने देगी क्या? रिपोर्टर – ट्रक वाला कहां मिलेगा? राहुल – सगुना चले जाइए, वहां मिल जाएगा। रिपोर्टर – वहां भी थाना को पैसा देना होगा क्या? राहुल – नहीं, आपको नहीं देना होगा। गाड़ी वाला ही देता है। वहां भी पेपर नहीं मिलेगा। रिपोर्टर – वहां कागज तो मिल जाता है ना? राहुल – मुश्किल है, एक नंबर का काम नहीं है, कागज पर कोई बालू नहीं देगा। रिपोर्टर – घाट पर तो चालान का कागज मिलता होगा? राहुल – कागज का क्या कहें, एक कागज पर तीन-तीन बार बालू ढोया जाता है। रिपोर्टर – बालू आ कहां से रहा है? राहुल – कोइलवर से आ रहा है। रिपोर्टर – आप लोग कहां से ला रहे हैं? राहुल – हम लोग तो डिपो से ला रहे हैं। रिपोर्टर – डिपो क्या है? राहुल – बड़ी गाड़ियां खाली जगह पर आकर गिरा देती हैं। वहीं से हम लेकर आते हैं। रिपोर्टर – कितना आप लोगों को मिलता है? राहुल – 300 रुपए की कमाई हो जाती है। बालू के एजेंटों की पड़ताल के दौरान ही दीघा में हमें राजेश मिला। उसने भी बालू के लिए बड़े-बड़े दावे किया। राजेश ने बताया- पुलिस वालों को हम डील कर लेंगे आप तो ऑर्डर दीजिए। रिपोर्टर – कितना CFT बालू है? राजेश – फ्रेश बालू है। रिपोर्टर – हमको तो 10 ट्रॉली से अधिक चाहिए। राजेश – ठीक है, हो जाएगा। रिपोर्टर – रेट बताइए, क्या लग जाएगा। राजेश – कहां गिराना है? रिपोर्टर – नेपाली नगर में गिराना है। राजेश – गिर जाएगा, लेकिन 65 सौ रुपया लगेगा। रिपोर्टर – पेपर दीजिएगा ना? राजेश – पेपर नहीं मिलेगा, पेपर काहे होगा? रिपोर्टर – अगर पुलिस वाले मांगेंगे तो पेपर दिखाना होगा ना। राजेश – उसकी चिंता छोड़ दीजिए, हम हैं ना, बालू गिरा देंगे। रिपोर्टर – नहीं, बिना पेपर का कैसे होगा? राजेश – हम हाइवा वाला चालान दे देंगे। रिपोर्टर – ट्रैक्टर से गिर रहा है तो हाइवा वाला चालान का क्या होगा? राजेश – सब हो जाएगा, आप चिंता ना करें। कहां गिराना है बस ये बताइए। दीघा में हमारी मुलाकात एजेंट रमेश से हुई। रमेश बालू का सप्लायर है। वह अवैध खनन कर लाई गई बड़ी गाड़ियों का बालू ट्रैक्टर से सप्लाई करता है। रमेश ने भी पुलिस को सेट करने की बात कही है, वह बोला पुलिस सेट हो जाती है। रिपोर्टर – 20 ट्राली से अधिक बालू चाहिए? रमेश – मिल जाएगा, कहां गिराना है बताइए? रिपोर्टर – बिल तो मिल जाएगा ना? रमेश – नहीं बिल कहां मिलेगा। रिपोर्टर – तब पुलिस को क्या दिखाएंगे, प्लाट पर भी जांच कर रही है। रमेश – बोल दीजिएगा, हाइवा से गिरवाए हैं। रिपोर्टर – नहीं भाई, कोई परेशानी हुई तो क्या होगा?रमेश – कुछ नहीं होगा, एक बार गिर गया तो कोई परेशानी नहीं।रिपोर्टर – थाना पुलिस आएगा तो क्या होगा?रमेश – वह हम समझ लेंगे, उसकी चिंता नहीं। अपना तो रोज़ ही गिरता है। रात में लगती है बालू की अवैध मंडी हर दिन रात में पटना के अलग-अलग इलाकों में बालू की मंडी लगती है। बालू भरे ट्रैक्टरों की लाइन दीघा और शगुना में लग जाती है। दीघा में थाना के आस पास 100 से अधिक बालू लोड ट्रैक्टर लगते हैं। रात में ही सड़क के किनारे बालू लदे ट्रैक्टर लग जाते हैं, सुबह होते ही सब साफ हो जाता है। भोर में 3 बजे से ही ग्राहक थाना के आस पास पहुंचने लगते हैं। सुबह 5 बजे तक 90 प्रतिशत ट्रैक्टरों का बालू बिक जाता है। जो बच जाते हैं, उन्हें थोड़ा साइड में खड़ा कर दिया जाता है। बिना नंबर वाले ट्रैक्टर से चल रहा पूरा धंधा पुलिस और बालू माफियाओं की सेटिंग ऐसी है कि बालू लदे किसी भी ट्रैक्टर पर रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं होता है। पूरा खेल बिना नंबर वाली गाड़ियों सेहोता है। जबकि घाट पर जहां चालान कटता है, वहां गाड़ी के नंबर से ही पूरा पेपर तैयार होता है। थाना के आस पास बिना नंबर वाली गाड़ियों से हो रहे कारोबार पर पुलिस भी सवालों में है। बालू के कारोबार में जितनी भी गाड़ियां पटना में सप्लाई में लगी हैं, इसमें 95 प्रतिशत गाड़ियों में आगे पीछे नंबर प्लेट नहीं होती है। ऐसे में इन गाड़ियों की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इस वजह से यह समझना भी मुश्किल होता है कि बालू कहां से लाया जा रहा है, किसके नाम पर गाड़ी है और बिक्री कैसे हो रही है। यह पूरा कारोबार थाना के आस पास खुलेआम चल रहा है। ऐसे में यह बात साफ है कि गृहमंत्री सम्राट चौधरी और डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के दावों का भी पुलिस पर कोई असर नहीं है। जिस पुलिस के दम पर सम्राट चौधरी बालू माफियाओं के खिलाफ सदन में दावे कर रहे हैं, वही पुलिस बालू माफियाओं से सेटिंग कर बालू का खेल करा रही है।
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