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ट्रंप की प्राथमिकता रही ‘शांति स्थापना’, भारत-पाकिस्तान विवाद पर अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को का दावा

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष को सुलझाने का क्रेडिट अमेरिका 1000 से ज्यादा बार कर चुका है और भारत ने अमेरिका के हर दावे को नकार दिया है। अब एक बार फिर से  अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष का ज़िक्र किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि उन्होंने इस साल कई दूसरे मामलों के साथ सुलझाया है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी नेता ने “शांतिदूत बनना अपनी प्राथमिकता बनाया है।” ट्रंप अब तक करीब 70 बार भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष को रोकने का दावा दोहरा चुके हैं।

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रूबियो ने कहा कि अमेरिका दुनिया भर में जुड़ा हुआ है, जिसमें ऐसे संघर्ष भी शामिल हैं जो “शायद अमेरिका में रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए उतने ज़रूरी नहीं हैं।” रूबियो ने शुक्रवार को साल के आखिर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “राष्ट्रपति ने शांतिदूत बनना अपनी प्राथमिकता बनाया है और इसलिए आपने हमें रूस, यूक्रेन, या भारत और पाकिस्तान या थाईलैंड और कंबोडिया जैसे मामलों में शामिल देखा है, जो एक लगातार चुनौती है।”

रुबियो ने शुक्रवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘राष्ट्रपति ने शांतिदूत की भूमिका को प्राथमिकता दी है और इसलिए आपने हमें वर्तमान की चुनौतियों जैसे कि रूस, यूक्रेन, भारत और पाकिस्तान या थाईलैंड और कंबोडिया के संघर्षों को समाप्त करने की कोशिश में अहम भूमिका निभाते देखा है।’’
उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा सुलझाए गए कुछ संघर्षों की जड़ें ‘‘कई वर्षों पुरानी हैं, लेकिन हम इन्हें सुलझाने में सहायता करने के लिए तैयार हैं।’’

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जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकवादी हमले में 26 आम नागरिकों की मौत के बाद भारत ने छह-सात मई की दरमियानी रात को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया और पाकिस्तान एवं पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ढांचों को निशाना बनाया।
चार दिनों तक जारी रहे सीमा पार ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान 10 मई को संघर्ष को समाप्त करने के लिए सहमत हुए।

भारत ने संघर्ष के समाधान में किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप से लगातार इनकार किया है।
रुबियो ने चीन और जापान को लेकर संबंधों से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा, “हम समझते हैं कि उस क्षेत्र में संतुलन बनाए रखना जरूरी है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि हम जापान के साथ अपनी मजबूत और ठोस साझेदारी एवंगठबंधन को जारी रखते हुए, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीन सरकार के साथ भी मिलकर काम करने के व्यावहारिक और सकारात्मक रास्ते तलाश सकते हैं।”

उन्होंने कहा कि चीन एक समृद्ध और शक्तिशाली देश बना रहेगा और भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा।
उन्होंने कहा, “हमें उनके साथ संबंध रखने होंगे और उनसे बातचीत करनी होगी। हमें उन क्षेत्रों को तलाशना होगा, जिन पर हम मिलकर काम कर सकते हैं। मेरा मानना है कि दोनों पक्ष इतने परिपक्व हैं कि यह स्वीकार कर सकें कि अभी आने वाले समय में भी तनाव के कुछ बिंदु बने रहेंगे।”
उन्होंने कहा कि चीन और अमेरिका को मिलकर काम करने के अवसर तलाशने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने साझेदारों के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता को खतरे में डाले बिना या किसी भी तरह से कमजोर किए बिना ऐसा कर सकते हैं। इसमें केवल जापान ही नहीं, बल्कि दक्षिण कोरिया भी शामिल है और यदि और आगे बढ़ें तो भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अन्य सभी देश भी इसमें आते हैं।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या गाजा में शांति स्थापना के लिए सैनिक भेजने को लेकर अमेरिका को पाकिस्तान की सहमति मिली है, रुबियो ने कहा कि जिन देशों से वाशिंगटन ने जमीनी स्तर पर मौजूदगी को लेकर बातचीत की है, वे सभी यह जानना चाहते हैं कि विशिष्ट जनादेश क्या होगा और वित्तपोषण की व्यवस्था कैसी होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘हम पाकिस्तान के आभारी हैं कि उन्होंने इसमें शामिल होने की पेशकश की या कम से कम इस पर विचार करने की पेशकश की।

News Source- PTI- Press Trust of India  


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