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टेम्प्रेचर कंट्रोल से 30 दिनों में तैयार होता है मशरूम:रोहतास के बिक्रमगंज के प्रगतिशील किसान प्रेमचंद की कहानी, बोले-कम्पोस्ट से धान-गेहूं की खेती भी एडवांस

रोहतास के दिनारा प्रखंड के सेमरी गांव के प्रगतिशील किसान प्रेमचंद पटेल ने मशरूम उत्पादन में ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे जहां सामान्य मशरूम को तैयार होने में 35 से 40 दिन लगते हैं। वहीं वे सिर्फ 30 से 35 दिनों में ही पूरी तरह तैयार मशरूम बाजार में उतार देते हैं। बेहतर तापमान नियंत्रण और अपने स्तर पर लगातार किए गए प्रयोगों ने उन्हें प्रदेश के प्रमुख मशरूम उत्पादकों की सूची में ला खड़ा किया है। तापमान नियंत्रण ही सफलता का राज प्रेमचंद बताते हैं कि परंपरागत तरीके से मशरूम उत्पादन में 40 से 45 दिन भी लग जाते हैं। लेकिन उनकी तकनीक में पहले 18 दिन तापमान 23-26°C रहता है। वहीं, अगले 12 से 15 दिन तापमान 16-18°C रखा जाता है। इस नियंत्रित तापमान की वजह से मशरूम तेजी से और बेहतर क्वालिटी में तैयार हो जाता है। उत्पादन के बाद बचा कम्पोस्ट वे धान और गेहूं की खेती में उपयोग करते हैं। इससे परंपरागत फसलों की पैदावार बढ़ी है। लागत करीब आधी रह गई है। कम्पोस्ट की वजह से खेत की मिट्टी भी उर्वर रहती है, इससे लंबे समय में रासायनिक दवाइयों पर निर्भरता कम हो जाती है। नौकरी नहीं मिली तो चुनी खेती Bsc एग्रीकल्चर करने के बाद प्रेमचंद की पहली पसंद नौकरी थी, लेकिन कोशिशों के बाद भी सफलता नहीं मिली। परिवार चलाने के लिए उन्होंने खेती की ओर रुख किया। धान-गेहूं की पारंपरिक खेती में लागत अधिक और मुनाफा कम था। तभी उन्होंने मशरूम उत्पादन शुरू करने का फैसला लिया। उन्होंने शुरुआत खुद की समझ से की, फिर कृषि विज्ञान केंद्र बिक्रमगंज, आत्मा, रोहतास और कृषि विश्वविद्यालय, सबौर से प्रशिक्षण लेकर इसे अगला स्तर दिया। उनके नवाचार और लगातार प्रयोगों को देखते हुए 15 अगस्त 2024 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें नवाचारी किसान के रूप में सम्मानित किया। स्थानीय किसानों के लिए भी बने मार्गदर्शक सफलता मिलने के बाद प्रेमचंद अब धान-गेहूं की खेती बिना कीटनाशक और रसायन के कर रहे हैं। इससे उनकी लागत कम और आय अधिक हो रही है।आस-पास के गांवों के किसान भी उनसे प्रशिक्षण लेने आते हैं और जैविक तरीके से खेती शुरू कर चुके हैं। पटना से लेकर यूपी-झारखंड तक मशरूम की भारी मांग आर्थिक तंगी का दौर झेल चुके प्रेमचंद की जिंदगी अब बदल चुकी है। मशरूम की खेती से उनकी सालाना आय 20-25 लाख रुपए तक पहुंच जाती है। उनके मशरूम की मांग पटना, स्थानीय बाजार, उ.प्र. के बनारस, झारखंड के रांची और डाल्टेनगंज तक है। लगेसी सीजन में तो स्थानीय बाजारों में भी इनके मशरूम की भारी डिमांड रहती है। प्रेमचंद कहते हैं, शुरुआत में कठिनाइयां बहुत थीं, लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने लगातार सहयोग किया। सही तकनीक अपनाई जाए तो खेती में असीमित संभावनाएं हैं।


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