औरंगाबाद के मशरूम की डिमांड बिहार के अलावा झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश तक है। न्यू एरिया के रहने वाले परमानंद सिंह(42) ने दो दोस्तों के साथ मिलकर चार साल पहले इसकी खेती शुरू की थी। आज सालाना टर्नओवर 15 करोड़ के करीब है। 250 मजदूरों को रोजगार मिला है। परमानंद सिंह ने बताया कि मेरे चाचा पहले कोलकाता में छोटे स्तर पर मशरूम की खेती करते थे। इसलिए मुझे इस बिजनेस की जानकारी पहले से थी। कई साल पहले मेरे दिमाग में मशरूम उत्पादन का आइडिया आया था, लेकिन बिहार में क्लाइमेट कंट्रोल और बिजली की उपलब्धता बड़ी चुनौती थी। पहले यहां 8 से 10 घंटे ही बिजली मिलती थी, लेकिन अब व्यवस्था सुधर गई है। बिजली आपूर्ति सुधरने के बाद अब यह सपना साकार करना संभव हो पाया। परमानंद सिंह ने बताया कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान पारंपरिक कारोबार मंदा पड़ने लगा। तब मैंने तय किया कि अब मशरूम व्यवसाय शुरू करने का यही सही वक्त है। क्योंकि खाद्य सामग्री पर रोक नहीं लगती और इसकी मांग लगातार बढ़ रही थी। शहर के 2 दोस्त रविन्द्र सिंह और मंटू सिंह को आइडिया बताया। दोनों ने बिना देर किए इस प्रोजेक्ट में साझेदारी कर ली। तीनों ने मिलकर चार करोड़ रुपए के निवेश से एक छोटा प्लांट लगाया। शुरुआती सफलता के बाद उत्पादन बढ़ा, सप्लाई चेन बनी और कुछ ही वर्षों में छोटे से प्लांट ने बड़ा रूप ले लिया। आज औरंगाबाद से सटे यारी में चार एकड़ जमीन में फैली न्यूट्रीफ्रेश एग्रो कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 करोड रुपए हो गया है। 250 मजदूरों को मिल रहा रोजगार कंपनी के मैनेजर खगड़िया निवासी अमरजीत कुमार ने बताया कि प्लांट में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 250 से अधिक मजदूर काम कर रहे हैं। शादी के सीजन में मशरूम का डिमांड बढ़ जाती है। डिमांड बढ़ने पर दो शिफ्ट में काम चलता है। इस दौरान मजदूरों की संख्या बढ़ानी पड़ती है। प्लांट में काम करने वाली स्थानीय महिलाएं बताती हैं कि नौकरी मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति में बदलाव आया है। घर का काम निपटाने के बाद प्लांट में आकर 8 से 10 घंटे काम करती हैं। जिससे अच्छी आय हो रही है। अगर जिले में ऐसे दो चार प्लांट और खुल जाए तो बेरोजगारी बहुत हद तक घट जाएगी। रोजाना 30 क्विंटल उत्पादन पहले औरंगाबाद में बाहर से डिब्बे में पैक कराकर मशरूम मंगाया जाता था। आज औरंगाबाद के इस प्लांट से प्रतिदिन 30 क्विंटल मशरूम तैयार होकर बाजार में भेजा जाता है। बिहार के कई बड़े शहरों के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों में भी भेजा जा रहा है। उत्पाद की गुणवत्ता और प्रोसेसिंग इसे खास बनाती है। बाजार में इसकी कीमत 15-20 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। सरकार से नहीं मिला प्रोत्साहन परमानंद सिंह ने बताया कि इतना बड़ा उद्योग लगाने के बावजूद भी सरकार से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है। उद्यान विभाग की ओर से कुछ प्लास्टिक के कैरेट मुहैया कराए गए हैं। दूसरे प्रदेशों में उद्योग लगाने वालों को बिजली बिल में छूट दी जाती है लेकिन यहां उन्हें छूट नहीं मिल रही है। छोटे पैमाने पर उत्पादकों को सब्सिडी मुहैया कराया जा रहा वहीं, जिला उद्यान पदाधिकारी डॉ. श्रीकांत का कहना है कि औरंगाबाद में न्यूट्री फ्रेश एग्रो कंपनी मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर काम कर रही है। सरकार की ओर से छोटे पैमाने पर उत्पादकों को सब्सिडी मुहैया कराया जा रहा है। विभाग मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ट्रेनिंग और सब्सिडी दे रहा है। इस वर्ष जिले में 26 हजार अनुदानित मशरूम कीट वितरित किए जाएंगे। बटन, ऑयस्टर और बकेट मशरूम पर 75 से 300 रुपए प्रति कीट की सब्सिडी है। 90% तक सरकारी अनुदान का प्रावधान होने से छोटे किसानों और बेरोजगार युवाओं को भी बड़ी मदद मिल रही है। मशरूम उत्पादन से अच्छी कमाई की जा सकती है। इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। जिन किसानों ने प्रशिक्षण लिया है, उन्हें शीघ्र ही कीट उपलब्ध कराया जाएगा। मशरूम बनने में लगता है 60 दिन मशरूम उत्पादन एक अत्यंत वैज्ञानिक प्रक्रिया है। सबसे पहले गेहूं भूसी, चिकन मैन्योर, मुर्गी फार्म का वेस्टेज, सरसों खली, यूरिया और चोकर को मिलाकर विशेष टंकी में 7-10 दिनों तक गर्म किया जाता है। फिर इसे 10-10 किलो के बैग में भरकर 22 दिनों तक 26°C तापमान में रखा जाता है। दूसरे चरण में बैग में मशरूम का बीज डालकर 20 दिनों तक 16°C तापमान में रखा जाता है। तीसरे चरण में 18-20 दिनों की प्रोसेसिंग के बाद तैयार मशरूम काटकर पैक किया जाता है। मशरूम तैयार होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती है उसका बिक्री अगर फसल बाजार नहीं पहुंची तो खराब होने का खतरा रहता है, इसलिए सप्लाई चेन मजबूत होना जरूरी है। आज कई उद्यमी परमानंद सिंह को प्रेरणा का स्रोत मान रहे हैं। मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रहे हैं। शहर के प्रमुख व्यवसाय लक्ष्मी गुप्ता ने भी मशरूम उत्पादन का प्लांट लगवाया है। इसके अलावा गोह में भी बड़े पैमाने पर मशरूम उत्पादन का प्लांट लगाया गया है। यही नहीं जिले के कई प्रगतिशील किसान भी मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रहे हैं। मशरूम में प्रचुर मात्रा में मिलता है प्रोटीन मशरूम को शाकाहारी प्रोटीन का उत्कृष्ट स्रोत माना जाता है। इससे सब्जी, भूजिया से लेकर आचार और मोरब्बा तक कई चीजें बनती हैं। औरंगाबाद में धीरे-धीरे स्ट्राबेरी, ड्रैगन फ्रूट जैसी आधुनिक फसलों की तरह मशरूम भी अब किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है।
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