विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने आज जैविक हथियारों पर दुनिया की सुस्ती और असमानता पर करारा प्रहार करते हुए साफ कहा कि “यदि जैव सुरक्षा असमान है, तो वैश्विक सुरक्षा भी असमान होगी।” हम आपको बता दें कि Biological Weapons Convention (BWC) के 50 वर्ष पूरे होने पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि दुनिया के पास समय कम है, खतरे तेज़ी से बढ़ रहे हैं और अगर अब भी वैश्विक समुदाय नहीं जागा तो अगली जैविक आपदा किसी सीमा का सम्मान नहीं करेगी।
विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा कि तेज़ी से आगे बढ़ती जैव प्रौद्योगिकी, जीनोम एडिटिंग, सिंथेटिक बायोलॉजी और एआई आधारित डिजाइनिंग जैसे टूल अब इतने सुलभ हो चुके हैं कि उनका दुरुपयोग पहले से कहीं आसान है। उन्होंने कहा, “विज्ञान रफ्तार से दौड़ रहा है, लेकिन वैश्विक नियम घिसटते कदमों से पीछे चल रहे हैं।” COVID-19 महामारी को उदाहरण बनाते हुए उन्होंने कहा कि प्राकृतिक हो, आकस्मिक या जानबूझकर, जैविक खतरा किसी चेतावनी के इंतज़ार में नहीं बैठता। जयशंकर ने दो टूक कहा, “यह सीमाएँ नहीं मानता, यह प्रणालियों को ध्वस्त कर देता है। मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य ही असली सुरक्षा है।”
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हम आपको बता दें कि भारत ने इस मंच से ग्लोबल साउथ की आवाज़ बुलंद की। जयशंकर ने कहा कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अनेक देशों के सामने कमजोर स्वास्थ्य तंत्र, सीमित लैब क्षमताएँ, धीमी प्रतिक्रिया प्रणाली और दवाओं तक असमान पहुँच जैसी गंभीर चुनौतियाँ हैं। ये सिर्फ “विकास संबंधी कमियाँ” नहीं, बल्कि वैश्विक जोखिम हैं। उन्होंने साफ कहा, “ग्लोबल साउथ न केवल सबसे अधिक असुरक्षित है, बल्कि सबसे अधिक योगदान देने की क्षमता भी उसी में है। आने वाले 50 वर्षों को आकार देने का हक भी उसी का होना चाहिए।”
जयशंकर ने भारत की क्षमताओं को तथ्यों के साथ सामने रखते हुए कहा, दुनिया के 60% वैक्सीन भारत बनाता है, 20% जेनेरिक दवाएँ भारत से जाती हैं, अफ्रीका में 60% दवाएँ भारत से जाती हैं, 2014 में सिर्फ 50 से बढ़कर 11,000 बायोटेक स्टार्टअप हमारे यहां हो गये हैं, हमारे यहां उन्नत BSL-3 और BSL-4 लैब नेटवर्क है और डिजिटल हेल्थ में तेज़ी से विस्तार हो रहा है। उन्होंने बताया कि COVID-19 के दौरान भारत ने Vaccine Maitri के तहत 100 से अधिक देशों को लगभग 300 मिलियन डोज़ भेजीं जिनमें कई बिल्कुल मुफ्त थीं।
विदेश मंत्री ने BWC की कमज़ोरियों पर भी खुलकर उंगली उठाई। उन्होंने कहा, न कोई कॉम्प्लायंस सिस्टम, न कोई स्थायी तकनीकी निकाय, न विज्ञान-तकनीक की प्रगति पर निगरानी तंत्र। उन्होंने कहा कि गैर-राज्य तत्वों द्वारा जैविक हथियारों का दुरुपयोग “अब दूर की आशंका नहीं, बल्कि एक वास्तविक खतरा” है। उन्होंने आधुनिक समय के अनुरूप सत्यापन और अनुपालन को अनिवार्य बताया। उन्होंने कहा कि भारत ने एक National Implementation Framework का सुझाव दिया है, जिसमें हाई-रिस्क एजेंटों की पहचान, डुअल-यूज़ रिसर्च की निगरानी, घटना प्रबंधन और निरंतर प्रशिक्षण शामिल हैं।
जयशंकर ने दोहराया कि भारत न केवल BWC और CWC का जिम्मेदार सदस्य है, बल्कि वस्सनार अरेंजमेंट, MTCR और ऑस्ट्रेलिया ग्रुप जैसे प्रमुख निर्यात नियंत्रण ढाँचों में सक्रिय है। भारत अपने अनुभव को दुनिया विशेषकर ग्लोबल साउथ, के साथ साझा कर रहा है, जिसमें UNSC 1540 पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम भी शामिल है। अंत में उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि “मानवता ने 50 साल पहले एक फैसला किया था कि बीमारी को हथियार नहीं बनने देंगे। अब समय उस संकल्प को नया जीवन देने का है।”
देखा जाये तो डॉ. एस. जयशंकर का भाषण एक कठोर चेतावनी और नैतिक चुनौती दोनों है। BWC की 50वीं वर्षगांठ आत्मसंतोष का अवसर नहीं, बल्कि इस कड़वे सच को स्वीकार करने का क्षण है कि आज जैविक खतरे कहीं अधिक तेज़, सस्ते और अनियंत्रित हो चुके हैं। दुनिया की मौजूदा शक्ति संरचना, खासकर विकसित देशों की भूमिका, अब संदेह के घेरे में है। उन्होंने जैव सुरक्षा के ढाँचों को मजबूत करने से ज़्यादा अपने-अपने हितों को तरजीह दी है। परिणाम सामने है— BWC एक ऐसा समझौता बन चुका है जिसके पास दाँत ही नहीं हैं।
जयशंकर का यह कहना बिल्कुल सही है कि सुरक्षा की असमानता, खतरे की समानता को जन्म देती है। ग्लोबल साउथ सिर्फ पीड़ित नहीं, उसे भविष्य के नियम बनाने में बराबर की आवाज़ मिलनी चाहिए। भारत ने न सिर्फ क्षमता दिखाई है, बल्कि संकट में दुनिया की मदद कर यह सिद्ध किया है कि नेतृत्व केवल संसाधनों से नहीं, इरादों से आता है। अब सवाल दुनिया के सामने है- क्या हम जैविक सुरक्षा को नई परमाणु बहस बनने देंगे जहाँ नियम पुरातन और खतरे आधुनिक हों? या अगले 50 साल एक सुरक्षित, वैज्ञानिक और न्यायपूर्ण ढाँचे के साथ शुरू करेंगे? भारत ने तो अपना रुख साफ कर दिया है। अब विश्व समुदाय की परीक्षा है।
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