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जल्द बिहार भाजपा को मिलेगा नया अध्यक्ष, 4 नाम आगे:8 साल बाद सवर्ण कार्ड खेल सकती है पार्टी, संघ के करीबी से लेकर शाह के भरोसेमंद तक रेस में

तारीख-19 नवंबर की देर रात बिहार भाजपा अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल को फोन आता है। बोला जाता है-तैयार रहिए। इस पर संगठन में ही काम करने की बातें कहते हैं, लेकिन उधर से बोला जाता है आपको मंत्री बनना है। और अगली सुबह करीब 11.30 बजे उन्होंने मंत्री पद की शपथ ले ली। इस संबंध में उन्होंने कहा- यह केंद्र और शीर्ष नेताओं का निर्णय है। मैं संगठन के हर निर्देश का पालन करूंगा। उनके शपथ लेते ही चर्चा शुरू हो गई कि अब बिहार को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलेगा। चूंकि, पार्टी में एक व्यक्ति, एक पद की व्यवस्था है। खबर है कि पार्टी को नए साल में नया बिहार अध्यक्ष मिल जाएगा। आज की डेट में प्रदेश अध्यक्ष की रेस में नेताओं के सियासी गलियारे में घूम रहे हैं। मंडे स्पेशल स्टोरी में जानिए, बिहार भाजपा अध्यक्ष पद की रेस में कौन-कौन नेता हैं। उनकी ताकत और कमजोरी क्या हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद बिहार में होगा बदलाव भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है। वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। वह केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। उम्मीद है कि पार्टी कभी भी अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा कर सकती है। भाजपा के भीतर चर्चा है कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के आने के बाद प्रदेश स्तर पर बदलाव होगा। बिहार में नए साल में नए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चुने जा सकते हैं। तब तक दिलीप जायसवाल पद संभालेंगे। 8 साल से लगातार OBC के हाथ में कमान पिछले 8 साल से लगातार पिछड़ा वर्ग से आने वाले नेता को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिल रही है। अबकी बार इस बात की चर्चा तेज है कि किसी सवर्ण को प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिल सकती है। हालांकि विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम और अवधेश नारायण सिंह को विधान परिषद का सभापति बनाने के बाद भूमिहार और राजपूत जाति के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना कम दिख रही है। किसी ब्राह्मण को यह जिम्मेदारी मिल सकती है। भास्कर ने पार्टी के कई सीनियर नेताओं से बात कर नए प्रदेश अध्यक्ष कौन होंगे, यह समझने की कोशिश की, लेकिन फिलहाल कोई भी नेता इस पर खुलकर बात नहीं कर रहे हैं। कैसे होगा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव? भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव जिला स्तर पर फीडबैक के आधार पर होगा। इसके लिए ‎जिलावार नेताओं से अध्यक्ष के नाम को लेकर प्रस्ताव मांगा जाएगा। इसके बाद उन प्रस्तावों की जांच होगी। 3 नामों को चुनकर दिल्ली हाई कमान के पास भेजा जाएगा। दिल्ली में इन तीनों नेताओं का इंटरव्यू होगा। इसके बाद पार्टी नेतृत्व द्वारा तय किया जाएगा कि बिहार का नया प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा। चुनाव में सक्रियता है आधार बिहार में डेढ़ वर्ष के दौरान लोकसभा‎ और विधानसभा चुनाव हुए। लोकसभा चुनाव ‎में पार्टी को उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली। विधानसभा में उम्मीद से अधिक सफलता मिली। ऐसे में पार्टी अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी को ध्यान में रखते हुए नया प्रदेश अध्यक्ष चुनेगी। प्रदेश अध्यक्ष की रेस में 4 नाम, जानिए… मिथिलेश तिवारीः संगठन के बड़े नेता प्रदेश अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे मिथिलेश तिवारी का नाम चल रहा है। उनकी गिनती संगठन के अनुभवी और बड़े नेता के रूप में होती है। संघ के करीबी हैं। संगठन में प्रदेश स्तर के कई अहम पदों पर रह चुके हैं। इनके पास पार्टी के भीतर कई बड़े पदों पर काम करने का अनुभव है। मिथिलेश भाजपा के प्रदेश मंत्री, प्रदेश महामंत्री और प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके हैं। बैकुंठपुर से चुनाव जीतकर फिलहाल विधायक हैं। इसे पहले बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। मिथिलेश तिवारी की कमजोरी- दो चुनाव हारे मिथिलेश तिवारी दो चुनाव हार चुके हैं। पार्टी इन्हें बक्सर से अश्विनी चौबे का टिकट काटकर कैंडिडेट बनाया, लेकिन जीत न सके। इससे पहले 2020 में बैकुंठपुर विधानसभा से भी चुनाव हार चुके हैं। प्रदेश स्तर पर इन्हें नित्यानंद राय के खेमे का माना जाता है। ऐसे में अन्य खेमा नहीं चाहेगा कि ये प्रदेश अध्यक्ष बनें। ब्राह्मण कोटे से ये भी रेस में- अगर ब्राह्मण कोटे से प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो मिथिलेश तिवारी के साथ संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मृत्युंजय झा और पूर्व मंत्री व झंझारपुर के विधायक नीतीश मिश्रा भी रेस में हैं। विवेक ठाकुर- संगठन के माहिर नेता, अमित शाह के करीबी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में नवादा के सांसद विवेक ठाकुर का नाम भी चल रहा है। विवेक ठाकुर बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी ठाकुर के बेटे हैं। केंद्र और राज्य की सियासत में अपनी अलग पहचान बनाई है। लोकसभा चुनाव जीतने से पहले यूपी विधानसभा चुनाव में सह प्रभारी थे। यूपी चुनाव में अहम भूमिका निभाई। इनकी गिनती शाह के भरोसेमंद नेता के रूप में होती है। विवेक ठाकुर 24 साल की उम्र से पार्टी में एक्टिव हैं। भारतीय जनता दल युवा मोर्चा (भाजयुमो) के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे और बाद में राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य भी रह चुके हैं। भाजयुमो प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर रहते हुए विवेक ठाकुर गुजरात, बंगाल और हिमाचल प्रदेश के प्रभारी भी रहे। 2014 में एक साल के लिए बिहार विधान परिषद के सदस्य बने थे। इसके बाद इन्हें 2020 में राज्यसभा सांसद बनाया गया था। लोकसभा चुनाव 2024 में नवादा से लड़े और जीतकर सांसद बने। 2015 के विधानसभा चुनाव में बक्सर के ब्रह्मपुर सीट से हार गए थे। विवेक ठाकुर की कमजोरी- भूमिहार चेहरा से हो सकता है नुकसान विवेक ठाकुर भूमिहार चेहरा हैं। अभी पार्टी का पूरा फोकस गैर यादव ओबीसी, ईबीसी और दलित वोटर्स को अपने पाले में करने की है। अगर ऐसा होता है विवेक ठाकुर रेस में पिछड़ सकते हैं। संजीव चौरसिया- संगठन का अनुभव, संघ से हैं संजीव चौरसिया की सबसे बड़ी ताकत उनका संघ से होना है। इनकी संघ में मजबूत पैठ मानी जाती है। 2015 से लगातार तीसरी बार दीघा से विधायक चुने गए हैं। उनके पिता गंगा प्रसाद को बिहार बीजेपी का फाउंडर मेंबर माना जाता है। वे सिक्किम के राज्यपाल भी रह चुके हैं। संजीव चौरसिया के पास संगठन के लिए काम करने का अनुभव है। विद्यार्थी परिषद से इन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत की। इसके बाद युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय महामंत्री रहे। वह प्रदेश उपाध्यक्ष, महामंत्री, सचिव के पद पर रह चुके हैं। चौरसिया संगठन की हर गतिविधियों से सीधे तौर पर जुड़े रहे हैं। हर कद के व्यक्ति के साथ इनके अच्छे संबंध हैं। ऐसे में इन्हें अध्यक्ष पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। चौरसिया अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इस लिहाज से भी ये इस पद के लिए फिट बैठते हैं। अति पिछड़ा वोट बैंक नीतीश कुमार के साथ रहा है। अब सभी पार्टियां तेजी से पिछड़ा-अति पिछड़ा समाज में अपनी पैठ बनाने में जुटी हैं। भाजपा भी गैर यादव ओबीसी नेताओं का कद बढ़ा रही है। चौरसिया की कमजोरी- सॉफ्ट छवि से हो सकता है नुकसान पॉलिटिकल एक्सपर्ट की माने तो संजीव चौरसिया एग्रेसिव पॉलिटिक्स की जगह सॉफ्ट पॉलिटिक्स के लिए जाने जाते हैं। मौजूदा समय में पार्टी को अग्रेसिव नेता की जरूरत है। प्रदेश अध्यक्ष पर नीतीश कुमार से बेहतर रिश्ते बनाए रखने के साथ तेजस्वी यादव से मुकाबला करने की जिम्मेदारी होगी। बीजेपी अब गठबंधन में छोटा भाई की जगह बराबर की हिस्सेदार है। हालांकि एक्सपर्ट कहते हैं कि संजीव चौरसिया सॉफ्ट भले हों, लेकिन उनकी गिनती संगठन के तेज-तर्रार नेता के रूप में होती है। जनक राम-भाजपा का दलित चेहरा, सरकार और संगठन का अनुभव BJP प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जिस दूसरे नेता के नाम की चर्चा तेजी से हो रही है, वो हैं जनक राम। इनके पास संगठन से लेकर सरकार में काम करने का अनुभव है। संगठन में महामंत्री से लेकर मुख्य प्रवक्ता तक की जिम्मेदारी निभाई है। NDA सरकार में मंत्री थे। पिछले साल हुए प्रदेश अध्यक्ष चुनाव में भी ये रेस में थे, लेकिन आखिरी समय में इनका नाम कट गया। ऐसे में ये माना जा रहा है कि संगठन में इन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। जनक राम की गिनती भाजपा के दलित चेहरे के रूप में होती है। दलितों की आबादी बिहार में लगभग 20 फीसदी है। पार्टी का आरक्षित सीटों पर परफॉर्मेंस भी बेहतर रहा है। जनक राम गोपालगंज सांसद रह चुके हैं। जनक राम की कमजोरी- मूल रूप से भाजपाई नहीं जनक राम की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि ये मूल रूप से भाजपाई नहीं हैं। दिग्गज दलित नेता कांसीराम से प्रभावित होकर राजनीति में आए थे। लंबे समय तक बिहार में बहुजन समाजवादी पार्टी के विस्तार पर काम किया। 2013 में नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हुए। अभी तक खुद को दलित लीडर के रूप में स्थापित नहीं कर पाए। इनकी सियासी पकड़ बस उत्तर बिहार तक ही सीमित है।


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