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जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री-LG में टकराव, तबादले और नियुक्तियां अटकीं:असमंजस में अफसर; 2025 का पूरा साल शासन से ज्यादा सत्ता संघर्ष में खत्म हो गया

जम्मू-कश्मीर में पहली निर्वाचित सरकार बने एक साल से ज्यादा वक्त गुजर चुका है, लेकिन यह पूरा साल शासन से ज्यादा सत्ता संघर्ष में खप गया। 2019 में राज्य का दर्जा खत्म होने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद सितंबर-अक्टूबर 2024 में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे 8 अक्टूबर को आए थे। जनता ने लंबे अंतराल के बाद चुनी हुई सरकार से स्थिरता और जवाबदेही की उम्मीद की थी। 16 अक्टूबर 2024 को उमर अब्दुल्ला ने सीएम पद की शपथ ली, लेकिन इसके बाद का पूरा 2025 साल उनके और उपराज्यपाल (LG) मनोज सिन्हा के बीच अधिकारों की खींचतान, फाइलों की लड़ाई और फैसलों की रस्साकशी में उलझा रहा। इस टकराव का असर सीधे प्रशासन, अफसरशाही और आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर पड़ा। सचिवालय से लेकर जिलों तक अफसरों के सामने यह असमंजस बना रहा कि वे किसके आदेश को अंतिम मानें? निर्वाचित सरकार का या LG कार्यालय का। अफसर बोले- ट्रांसफर-नियुक्तियां महीनों तक अटके रहे कई वरिष्ठ अफसरों का कहना है कि दोहरी जवाबदेही ने फैसलों की रफ्तार तोड़ दी है। किसी फाइल पर दस्तखत से पहले यह देखा जाने लगा कि आदेश कहां से आया है। ट्रांसफर, नियुक्तियां, विकास परियोजनाएं और नीतिगत फैसले महीनों तक अटके रहे। एक तरफ निर्वाचित सरकार जनादेश की दुहाई देती रही, दूसरी तरफ LG संवैधानिक अधिकारों और पुनर्गठन अधिनियम का हवाला देते रहे। नतीजा यह हुआ कि बेरोजगारी, बुनियादी ढांचे की सुस्ती, स्वास्थ्य सेवाओं की खामियां और सर्दियों की तैयारियों जैसे जमीनी मुद्दे हाशिये पर चले गए। 5 मामले टकराव की भेंट चढ़े मुख्यमंत्री ने कहा- दोहरी सत्ता आपदा बन रही है सीएम उमर अब्दुल्ला का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में मौजूदा व्यवस्था ‘दोहरी सत्ता’ की है, जो शासन के लिए एक आपदा साबित हो रही है। उमर का आरोप है कि निर्वाचित मंत्रियों के पास अधिकार नहीं हैं और LG समानांतर सरकार चला रहे हैं। वे कहते हैं, ‘हमें जनता ने वोट दिया है, लेकिन फाइलें राजभवन में कैद हैं। सलाहकार नियुक्त नहीं करने दिए जा रहे और अफसर सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार कर रहे हैं। सीएम उमर के मुताबिक, जब तक पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल नहीं होता, सार्थक शासन असंभव है। LG बोले- शक्ति इस्तेमाल करें, बहाने नहीं LG मनोज सिन्हा ने सरकार के आरोपों को खारिज करते हुए इसे जिम्मेदारी से भागने का तरीका बताया है। उनका कहना है कि वे कड़ाई से ‘पुनर्गठन अधिनियम’ के दायरे में रहकर काम कर रहे हैं। सिन्हा ने कहा, ‘निर्वाचित सरकार के पास पर्याप्त शक्तियां हैं। राज्य का दर्जा न होने को काम न करने का बहाना नहीं बनाना चाहिए।’ राजभवन का तर्क है कि कानून-व्यवस्था और ब्यूरोक्रेसी का नियंत्रण केंद्र के पास है और सरकार को जनता के कल्याण के लिए उपलब्ध अधिकारों का उपयोग करना चाहिए, न कि लोगों को गुमराह करना चाहिए।


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