जब किसी चीज से डर ही नहीं लगता, किस दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे ब्रिटेन और अमेरिका के 2 लोग?

जब किसी चीज से डर ही नहीं लगता, किस दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे ब्रिटेन और अमेरिका के 2 लोग?

डर महसूस करना हमारे जीवन का एक सामान्य और जरूरी हिस्सा है. डर ही हमें खतरे से बचाता है और सतर्क करता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर किसी इंसान को डर ही न लगे, तो वह कैसा जीवन जिएगा? यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि कुछ लोगों की हकीकत है, जो एक दुर्लभ बीमारी के कारण डर महसूस नहीं कर पाते.

जोर्डी सरानिक की कहानी

ब्रिटेन के जोर्डी सरानिक को 2005 में कुशिंग सिंड्रोम नाम की बीमारी का पता चला. इस बीमारी में शरीर में तनाव पैदा करने वाला हार्मोन कॉर्टिसोल बहुत ज्यादा बनने लगता है. इलाज के लिए डॉक्टरों ने उनकी एड्रेनल ग्रंथियां निकाल दीं. इलाज सफल रहा, लेकिन इसके बाद जोर्डी के अंदर से डर का एहसास पूरी तरह गायब हो गया. वह 2012 में डिज्नीलैंड के रोलर कोस्टर पर गए, प्लेन से कूदे, ऊंचाई से रस्सी के सहारे नीचे उतरे. इस दौरान उसे कोई डर नहीं लगा. उसका दिल सामान्य गति से धड़कता रहा, न कोई बेचैनी, न घबराहट.

एस.एम.- दुनिया की सबसे अनोखी महिला

एक और मामला अमेरिका की महिला एस.एम. का है, जिसे एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी उरबाक-विएथे है. इस बीमारी को लिपोइड प्रोटीनोसिस भी कहा जाता है. इस बीमारी में दिमाग का एक हिस्सा (अमिग्डाला) नष्ट हो जाता है. अमिग्डाला ही वह हिस्सा है जो डर की भावना को नियंत्रित करता है. वैज्ञानिकों ने एस.एम. पर कई प्रयोग किए. उन्होंने उसे डरावनी फिल्में दिखाईं, भूतिया घरों में ले गए, सांपों और मकड़ियों के सामने रखा, लेकिन उसे कभी डर नहीं लगा. उल्टा, वह इन खतरनाक चीजों के और पास जाना चाहती थी.

डर का न होना भी एक तरह का खतरा

एस.एम. का व्यवहार काफी अलग है. वह लोगों के बहुत पास आ जाती है, चाहे वह अजनबी ही क्यों न हों. एक प्रयोग में जब उनसे पूछा गया कि वे कितनी दूरी पर किसी से सहज महसूस करती हैं, तो उन्होंने केवल 0.34 मीटर (लगभग एक फीट) बताया, जो सामान्य लोगों से बहुत कम है. इससे यह पता चलता है कि डर की भावना हमारे सामाजिक व्यवहार को भी नियंत्रित करती है.

कई बार एस.एम. को चाकू या बंदूक की नोक पर धमकियां मिलीं, लेकिन उन्हें कभी खतरा महसूस नहीं हुआ. ऐसे में वह कई बार मुश्किल हालात में फंस गईं.

डर की दो अलग-अलग प्रक्रियाएं

वैज्ञानिकों का कहना है कि डर 2 तरह से काम करता है. पहला- बाहरी खतरा (जैसे कोई जानवर या हमला) होने पर और दूसरा- आंतरिक खतरा (जैसे घुटन या सांस रुकना) होने पर. अमिग्डाला बाहरी खतरों को पहचानने में जरूरी है, लेकिन अंदरूनी घबराहट जैसे कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से होने वाली परेशानी, दिमाग के ब्रेनस्टेम हिस्से से नियंत्रित होती है.

एक प्रयोग में जब एस.एम. को कार्बन डाइऑक्साइड दी गई, तो पहली बार उन्हें भयानक घबराहट और डर महसूस हुआ. इससे साबित हुआ कि डर पूरी तरह से अमिग्डाला पर निर्भर नहीं होता.

क्या आज के समय में डर जरूरी है?

वैज्ञानिक फीनस्टीन कहते हैं कि एक जानवर अगर बिना अमिग्डाला के जंगल में छोड़ दिया जाए, तो वह कुछ ही दिनों में मर सकता है, क्योंकि वह खतरे पहचान नहीं पाता. लेकिन एस.एम. बिना अमिग्डाला के 50 साल से भी ज्यादा समय से जीवित हैं. इन दोनों ही मामलों से हमें पता चलता है कि डर न सिर्फ खतरे से बचाता है, बल्कि हमारे सामाजिक और भावनात्मक व्यवहार को भी गहराई से प्रभावित करता है.

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