भास्कर न्यूज | चौसा प्रखंड क्षेत्र के फुलौत में चार दिवसीय ऐतिहासिक बाबा जय सिंह मेला शुक्रवार से शुरू हो गया है। बाबा की प्रतिमा स्थापित होते ही मेले का विधिवत शुभारंभ हुआ। यह मेला 8 दिसंबर तक चलेगा। यह आयोजन फुलौत की सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। बच्चों के लिए विशेष रूप से कई रोमांचक खेल-तमाशे के स्टॉल लगाए गए हैं। मेला में झूले और नाव झूला, ड्रेगन ट्रेन, टावर झूला, जादूगर के शो लगे हैं। बड़े-बुजुर्गों के लिए भी आकर्षक स्टॉल और विविध गतिविधियां मेले का प्रमुख आकर्षण होंगी। सांस्कृतिक कार्यक्रम और रोमांचक महिला कुश्ती मुकाबले शनिवार से शुरू होंगे। इस वर्ष का मुख्य आकर्षण अंतर-राज्यीय महिला कुश्ती प्रतियोगिता होगी, जिसे देखने के लिए दूरदराज से लोगों के जुटने की उम्मीद है। मेला कमेटी के अध्यक्ष जयप्रकाश चौधरी ने बताया कि श्रद्धालुओं और आगंतुकों की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा गया है। उन्होंने जानकारी दी कि भव्य पंडाल, पर्याप्त रोशनी और लाउडस्पीकर की व्यवस्था कर ली गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को देखते हुए पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाओं सहित सभी आवश्यक इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं। किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचने और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पुलिस प्रशासन भी तैनात रहेगा। मेला कमेटी ने सभी क्षेत्रवासियों से अपील की है कि वे इस ऐतिहासिक आयोजन में शामिल होकर इसका आनंद लें और क्षेत्र की इस गौरवशाली परंपरा को बनाए रखने में सहयोग करें। भास्कर न्यूज |सहरसा एसएनएसआरकेएस महाविद्यालय के छात्र छात्राओं का एक संयुक्त शैक्षणिक भ्रमण दल शुक्रवार को विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार सिंह के नेतृत्व में कंदाहा सूर्य मंदिर, महिषी तारा स्थान एवं मटेश्वर स्थान का सर्वेक्षण एवं भ्रमण किया। भ्रमण दल में प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के शिक्षक डॉ सरफराज आलम, डॉ मुकेश कुमार, डॉ कुमारी प्रीति सिंह, डॉ.विभूति कुमार एवं डॉ. गोरी कुमारी सम्मिलित थी। भ्रमण एवं सर्वेक्षण में विभागाध्यक्ष ने इन पुरातात्विक स्थलों का इतिहास, इनकी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्राचीन काल से वर्तमान समय तक के इतिहास को रेखांकित किया। सूर्य मंदिर की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डालते हुए इसे वासुदेव कृष्ण के पुत्र सांब से संबंधों की जानकारी ली। महिषी तारा स्थान के संबंध में बताया कि बुद्ध यहां अपने 12000 शिष्यों के साथ आए थे और उसके बाद यह पूरा इलाका बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गया था और पुनः मंडन मिश्र के आगमन और शास्त्रार्थ के बाद इस इलाके के लोगों ने हिंदू धर्म को अपनाया। उन्होंने तारा देवी की प्रतिमा के पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व पर भी प्रकाश डाला। मटेश्वर स्थान की ऐतिहासिक विवरण पर भी छात्र-छात्राओं को विस्तृत जानकारी दी गई।
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