बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों से पिछले 6 महीनों में 100 से अधिक लड़कियों और महिलाओं के गायब होने का मामला मानवाधिकार आयोग पहुंच गया है। मानवाधिकार मामलों के वकील एसके झा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। वकील झा ने बताया कि मोतिहारी से सटे भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय तस्कर बड़ी संख्या में एक्टिव हैं। ये तस्कर लड़कियों को देश के अलावा नेपाल, चीन, ब्राजील और सऊदी अरब जैसे देशों में करोड़ों रुपए में बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये मामला काफी संवेदनशील और मानवता को शर्मसार करने वाला है। साथ ही ये पुलिस की कार्यशैली और प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। झा की ओर से आयोग से मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की गई है। राष्ट्रीय और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग में दी गई याचिका में क्या कहा? पटना स्थित राज्य मानवाधिकार आयोग में दी गई याचिका में झा की ओर से कहा गया है कि 30 नवंबर को दैनिक समाचार पत्र ‘दैनिक भास्कर’ के मोतिहारी एडिशन में “बॉर्डर क्षेत्र से 6 माह में 100 लड़कियां गायब” शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया गया, जिसका अवलोकन करने पर ये जानकारी हुई कि अपने देश के अलावा नेपाल, चीन, ब्राजील, सऊदी अरब में करोड़ों में ‘बेटियां’ बेची जा रही है। लड़कियों के गायब होने के मामले बॉर्डर इलाकों के अलग-अलग थानों में दर्ज हैं। रक्सौल, आदापुर, रामगढ़वा और हरपुर थाना क्षेत्र से लड़कियों के गायब होने के मामले सामने आए हैं। इनमें आदापुर के चैनपुर के एक ही परिवार की 4 लड़कियां गायब थीं, जिनका रेस्क्यू थानाध्यक्ष की तत्परता से हो गया। लेकिन अन्य स्थानों से गायब लड़कियों का रेस्क्यू अब तक नहीं हो सका है। हरैया थाना और रक्सौल थाना में दर्ज मामलों में विवाहित महिलाएं भी शामिल हैं। रामगढ़वा बाजार से गायब महिला का मायका रामगढ़वा में है, जबकि नेपाल में उसकी ससुराल है। महिला रामगढ़वा बाजार से तीन महीने पहले यानी 6 जून को गायब हुई थी। रक्सौल के रतनपुर के रहने वाले विजय पांडेय की बेटी के गायब होने का मामला 10 जून को रक्सौल थाना में दर्ज हुआ। सरोगेसी, शादी, बॉडी पार्ट्स की खरीद-फरोख्त के लिए लड़कियों की विदेशों में तस्करी बॉर्डर पर मानव तस्करी के खिलाफ काम करने वाली एनजीओ के अनुसार, सरोगेसी, शादी और बॉडी पार्ट्स की खरीद-फरोख्त के लिए भी लड़कियों की बड़े पैमाने पर विदेशों में तस्करी किए जाने का खुलासा हुआ है। 6 माह में सीमा क्षेत्र से 100 से अधिक लड़कियां गायब हो चुकी हैं। बॉर्डर पर सक्रिय अपने देश के अलावा नेपाल, चीन, ब्राजील, सऊदी अरब आदि देशों के मानव तस्करों के सिंडिकेट इन लड़कियों को ऊंचे मूल्य पर बेच कर लाखों-करोड़ों रुपए का मुनाफा कमाते हैं। पिछले दिनों इनमें से महज एक दर्जन लड़कियों को रेस्क्यू किया गया था, शेष अब भी लापता हैं। रेस्क्यू की गई लड़कियों में चार लड़कियां एक ही परिवार की थी। मानव तस्करी नियंत्रण के लिए बॉर्डर पर कार्यरत ‘स्वच्छ रक्सौल’ के अध्यक्ष रंजीत सिंह, ‘प्रयास’ संस्था की कोऑर्डिनेटर आरती और एसएसबी इंस्पेक्टर विकास कुमार ने बताया कि नशा कारोबारियों की ओर से लड़कियों का इस्तेमाल नशीले पदार्थ की तस्करी में किया जाता है। अब जानिए, किन तरीकों से मानव तस्कर लड़कियों को जाल में फंसाते हैं… पहला तरीका: प्यार के जाल में फंसा कर बॉर्डर पार कराते हैं जिन लड़कियों की तस्करी की जाती है या जिनके गायब होने का मामला सामने आया है, उनमें अधिकतर की उम्र 18 से 25 साल के बीच की होती है। ये लड़कियां नेपाल के रिमोट एरिया यानी दूर वाले गांव से आती हैं। मानव तस्करी गैंग में शामिल लड़के इन लड़कियों को सोशल मीडिया के जरिए टारगेट करते हैं। उन्हें लालच देकर, सपने दिखाकर प्यार के जाल में फंसाते हैं। फिर फ्यूचर की चकाचौंध दिखा कर बॉर्डर पार करा लेते हैं। बॉर्डर क्रॉस कराने के बाद कुछ लड़कियों से शादी कर ली जाती है, जबकि कुछ लड़कियों को रेड लाइट एरिया में जबरन बेच दिया जाता है। बॉर्डर पर काम कर रही मानव तस्कर विरोध संस्थाओं के मुताबिक, पहले इन लड़कियों को लड़के उनके एरिया में जाकर ले आते थे, लेकिन अब चलन बदल गया है। लड़कियों को अकेले बॉर्डर पर बुलाया जाता है, फिर उन्हें उनके सोशल मीडिया फ्रेंड बॉर्डर पार कराते हैं। अगर किसी को शक हुआ तो लड़के भाग जाते हैं। ज्यादातर मामलों में लड़के पकड़ में नहीं आते। दूसरा तरीका: जॉब का लालच देकर लड़कियों को फंसाते हैं नेपाल में ज्यादातर लड़कियां 10वीं, 12वीं पास होती हैं। कुछ की परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वे आगे की पढ़ाई कर पाए, कुल मिलाकर इनका फैमिली बैकग्राउंड आर्थिक तौर पर कमजोर होता है। ऐसी लड़कियां नौकरी करना भी चाहती हैं, लेकिन नेपाल में उन्हें मन मुताबिक जॉब नहीं मिल पाती। इसी का फायदा मानव तस्कर गैंग में शामिल लड़के उठाते हैं। सोशल मीडिया के जरिए ही ऐसी लड़कियों को टारगेट कर उन्हें नौकरी का झांसा दिया जाता है। गैंग में पहले से शामिल लड़कियों से वीडियो कॉल पर बातचीत कराई जाती है, ताकि इन लड़कियों को शक न हो। वीडियो कॉल पर बात करने वाली लड़कियां अच्छी कमाई का लालच देती हैं, इसलिए लड़कियां इनके झांसे में आ जाती हैं। तीसरा तरीका: परिवार से खरीदी जाती हैं लड़कियां नेपाल में पहाड़ी इलाकों में रहने वाले परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती है, ऐसे में कुछ परिवार अपनी बेटियों को मजदूरी के नाम पर ठेकेदारों को बेच देते हैं, इसके बदले में लड़कियों के माता-पिता को कुछ अच्छे पैसे मिल जाते हैं। इसके बाद लड़कियों के बदले उनके माता-पिता को रुपए देने वाले इन्हें कभी ईंट-भट्ठों पर, तो कभी ढाबों पर मोटी रकम लेकर उनका सौदा कर देते हैं। इसके बाद ये लड़कियां शारीरिक से लेकर मानसिक शोषण की शिकार हो जाती हैं। गरीबी और अशिक्षा… तस्करों की जाल में फंसने का एक प्रमुख कारण सोशल साइट के माध्यम से मानव तस्कर लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाकर शादी और नौकरी का झांसा देते हैं। इसके बाद उन्हें घर से भगाकर बॉर्डर पार ले जाते हैं और देसी-विदेशी एजेंटों को मोटी रकम लेकर बेच देते हैं। कई बार नशा खिलाकर भी उन्हें बेचा जाता है। इसके अलावा, इन लड़कियों की हत्या कर उनकी किडनी तक बेची जाती है। जिस अनुपात में लड़कियां गायब हो रही हैं, उसके मुकाबले उनका रेस्क्यू बेहद कम, करीब पांच प्रतिशत ही हो पा रहा है, जबकि बॉर्डर पर इसे रोकने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं। कैसे बच जाते हैं तस्कर बॉर्डर पर काम कर रहे NGO के सदस्यों का कहना है, अगर मानव तस्करी का कोई मामला आता है तो हम लोग लोकल पुलिस को कार्रवाई के लिए देते हैं। क्योंकि, हम कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते। कई बार जो बॉर्डर पार कराने आते हैं, उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई होकर रह जाती है। कई बार कार्रवाई नहीं भी होती है। ऐसे में इस सिंडिकेट के बड़े सरगना तक पहुंचने की कोशिश नहीं होती, जिससे ये कानून से बच जाते हैं।
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