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चाकूबाजी पीड़ित के परिवार पर केस वापस लेने का दबाव:सीवान में सब-इंस्पेक्टर को सौंपी गई थी जांच, पुलिस पर आरोपियों को बचाने का आरोप

सीवान में पुलिस की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल उठे हैं। महाराजगंज थाना क्षेत्र में 1 अक्टूबर को हुई चाकूबाजी की घटना के पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया है कि जांच अधिकारी आरोपियों को बचाने और पीड़ितों पर केस वापस लेने का दबाव बना रहे हैं। पुलिस अधीक्षक (एसपी) विक्रम सिहाग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के आदेश दिए हैं। परिजनों का दावा है कि जांच अधिकारी न केवल आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि उनसे सादे कागज पर जबरन हस्ताक्षर कराने का प्रयास भी किया गया। परिवार के पास इस संबंध में एक कॉल रिकॉर्डिंग भी है, हालांकि दैनिक भास्कर इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं करता। सब-इंस्पेक्टर को सौंपी गई थी जांच इस घटना के संबंध में महाराजगंज थाने में कांड संख्या 495/25 दर्ज की गई थी, और इसकी जांच सब-इंस्पेक्टर ओम प्रकाश सिंह को सौंपी गई थी। घायल प्रशांत कुमार के भाई ने बताया कि जांच अधिकारी लगातार केस वापस लेने का दबाव बना रहे हैं और फोन पर सादे कागज पर हस्ताक्षर करने की मांग कर रहे हैं। परिवार को धमकी दी गई है कि यदि उन्होंने केस वापस नहीं लिया, तो उन्हें दूसरे मुकदमे में फंसा दिया जाएगा। पीड़ित परिवार ने इस मामले में दो बार जनता दरबार में पहुंचकर पुलिस अधीक्षक विक्रम सिहाग से न्याय की गुहार लगाई है। अधिकारी के व्यवहार से थे डरे उन्होंने एसपी को कॉल रिकॉर्डिंग सहित अन्य साक्ष्य भी उपलब्ध कराए हैं, जिसके बाद यह मामला उच्च अधिकारियों के संज्ञान में आया। परिवार ने बताया कि जांच अधिकारी के व्यवहार से वे डरे हुए थे और न्याय की उम्मीद कम होती जा रही थी, इसलिए उन्होंने शीर्ष पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया। इस संबंध में जब एसपी विक्रम सिहाग से बात की गई, तो उन्होंने शिकायत को गंभीर बताया और जांच कराने की बात कही। उन्होंने स्पष्ट किया कि जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और इसमें कोई समझौता नहीं होगा। एसपी ने यह भी आश्वासन दिया कि घटना के नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी जल्द सुनिश्चित की जाएगी। दबाव और डराने-धमकाने का करना पड़ रहा सामना परिजनों का कहना है कि उन्हें न्याय की उम्मीद सिर्फ जिला पुलिस कप्तान से है, क्योंकि स्थानीय स्तर पर उन्हें लगातार दबाव और डराने-धमकाने का सामना करना पड़ रहा है। इस प्रकरण ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि जब खुद पुलिस ही आरोपियों को बचाने में लग जाए, तो आम नागरिकों को न्याय कैसे मिलेगा।


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