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गोपाष्टमी महोत्सव के मंच पर फूट-फूटकर रोया युवा गायक:मधेपुरा जिला प्रशासन पर भेदभाव और उपेक्षा का आरोप, पर्याप्त समय नहीं मिलने से नाराजगी

मधेपुरा में शनिवार की रात राजकीय गोपाष्टमी महोत्सव के मंच पर स्थानीय युवा गायक रौशन कुमार फूट-फूट कर रो पड़े। रोते हुए उन्होंने जिला प्रशासन और कला संस्कृति विभाग पर उपेक्षा और भेदभाव का आरोप लगाया। रौशन ने भावुक होते हुए कहा कि हम पूरे बिहार में कार्यक्रम करते हैं, जिले के लिए मेडल लाते हैं, लेकिन अपने ही घर में उपेक्षित होते हैं। उन्होंने कहा कि हमसे नीचे स्तर के कलाकारों को ‘ख्याति प्राप्त’ बताकर लाखों की निकासी होती है। हमें न तो समय मिलता है, न सम्मान, न मानदेय। तीन दिवसीय राजकीय महोत्सव में उद्घाटन के बाद कोई भी वरीय अधिकारी मौजूद नहीं रहा। उद्घाटन के बाद निकल गए अधिकारी उद्घाटन के समय प्रभारी डीएम सहित कुछ अधिकारी आए और कुछ ही देर में निकल गए। उसके बाद पूरे महोत्सव की जिम्मेदारी सिर्फ कला संस्कृति पदाधिकारी के भरोसे छोड़ दी गई। जब मंच पर कलाकार रोने लगे और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तब जिला आपूर्ति पदाधिकारी शंकर शरण महोत्सव स्थल पर पहुंचे, लेकिन पांच मिनट में ही लौट गए। बाहर से बुलाए गए सिर्फ 3 कलाकार स्थानीय कलाकारों की पीड़ा और प्रशासन की चुप्पी से नाराज लोगों ने पंडाल में जिला प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाए। बताया जाता है कि इस बार करीब 25 लाख रुपए के बजट वाले गोपाष्टमी महोत्सव में मात्र तीन कलाकार बाहर से बुलाए गए। जिसमें सारेगामापा फेम सहरसा निवासी जय झा, गायिका श्यामा शैलजा और इंडियन आइडल फेल राधा श्रीवास्तव शामिल थी। जबकि इसी बजट में पूर्व वर्षों में बॉलीवुड गायक मो. अजीज, चंदन दास, सपना अवस्थी जैसे राष्ट्रीय स्तर के कलाकार मंच साझा करते थे। पंडाल में सांसद, विधायक, मंत्री और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी रहती थी। लेकिन इस बार कोई भी विधायक तक नहीं पहुंचे। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह सब विभागीय मनमानी का नतीजा है। कलाकारों की उपेक्षा नहीं की जाएगी बर्दाश्त मधेपुरा यूथ एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल यादव ने खुलकर विरोध जताया। उन्होंने कहा कि स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हर बार ब्लू स्टार कंपनी को ही टेंडर क्यों मिलता है। यह जांच का विषय है। हम इस मामले को मंत्री तक ले जाएंगे। IPTA के राष्ट्रीय सचिव तुरबसु ने कहा कि विभाग महोत्सव का मतलब ही भूल चुका है। जो मन होता है, वही करता है। संस्कृति को तमाशा बना दिया गया है।जब इस पूरे मामले पर कला संस्कृति पदाधिकारी आम्रपाली कुमारी से सवाल किया गया, तो वे बिना कुछ जवाब दिए अपनी गाड़ी से निकल गई। यह रवैया जवाबदेही से भागने की


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