गाजा युद्ध के 2 साल: ताकतवर लेकिन ‘अकेला’ इजराइल, पश्चिमी देशों का साथ खोने का खतरा?

गाजा युद्ध के 2 साल: ताकतवर लेकिन ‘अकेला’ इजराइल, पश्चिमी देशों का साथ खोने का खतरा?

दो साल पहले 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले ने मिडिल ईस्ट में जो युद्ध शुरू किया, वह आज कहां खड़ा है? जवाब है- इजराइल पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर है, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा अलग-थलग भी है. हम एक ऐसे विरोधाभास की बात कर रहे हैं, जो पूरी दुनिया की राजनीति को हिला रहा है. इजराइल की सैन्य विजय और राजनीतिक अलगाव का यह कॉकटेल इजराइल के लिए क्या मायने रखता है? आइए समझते हैं.

सैन्य मोर्चे पर इजराइल की जीत का आकलन

पिछले दो सालों में इजराइली रक्षा बल (IDF) ने हमास और उसके सहयोगी गुटों पर भारी सैन्य हमले किए हैं. शुरुआती सदमे से उबरने के बाद, इजराइली सेना ने अपने सभी रणनीतिक विरोधियों को करारा झटका दिया है. गाजा पट्टी में हमास के हजारों लड़ाकों को मार गिराया गया है और उसके कमांड सेंटर, सुरंगों के नेटवर्क (Metro) को तबाह करने का दावा किया गया है.

वॉल स्ट्रीट जर्नल की हालिया रिपोर्ट बताती है कि सैन्य रूप से, इजराइल अब इस क्षेत्र का निर्विवाद ‘हेगेमोन’ यानी वर्चस्ववादी शक्ति बनकर उभरा है. उसने ईरान समर्थित समूहों को भी पंगु बना दिया है, जिसमें लेबनान का हिज़्बुल्लाह (Hezbollah) भी शामिल है, जिसे भारी नुकसान हुआ है.

रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं – “इजराइल ने अपने विरोधियों को जो सैन्य जवाब दिया है, वह उसकी निवारक शक्ति (deterrence power) को मजबूत करता है. इजराइल ने यह साफ कर दिया है कि 7 अक्टूबर जैसी घटना दोबारा बर्दाश्त नहीं की जाएगी.” कुछ विशेषज्ञ ये भी मानते हैं कि यह सब इजराइल की अल्पकालिक जीत है. लेकिन इस जीत की एक बहुत बड़ी कीमत भी है.

राजनीतिक अलगाव की बढ़ती खाई

अपनी सैन्य जीत के समानांतर ही, इजराइल राजनीतिक रूप से तेजी से अलग-थलग पड़ रहा है. गाजा में बड़े पैमाने पर हुए नागरिक नुकसान (आंकड़ों के अनुसार 69,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी मौतें) और मानवीय संकट ने वैश्विक जनमत को इजराइल के खिलाफ कर दिया है.

संयुक्त राष्ट्र में विरोध: इजराइल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बार-बार युद्धविराम के प्रस्ताव लाए गए, और हर बार अमेरिका को वीटो (Veto) का इस्तेमाल करना पड़ा. इसका मतलब है कि दुनिया के 14 देश इजराइल के रुख के खिलाफ खड़े हैं, और सिर्फ अमेरिका का समर्थन उसे बचा रहा है. यह अलगाव साफ़ दिखता है.

पश्चिमी सहयोगियों का मोहभंग: इजराइल का अस्तित्व पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के मजबूत समर्थन पर टिका रहा है. लेकिन गाजा युद्ध के बाद, यूरोप और अमेरिका में इजराइल के खिलाफ माहौल बना है. कई अमेरिकी सांसदों और यूरोपीय नेताओं ने नेतन्याहू सरकार की नीतियों की खुली आलोचना की है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था – “गाज़ा एक हत्या का मैदान है—और यहां नागरिक अंतहीन मौत के चक्र में फंसे हुए हैं.” वहीं स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ का बयान है – “इज़राइल अपनी रक्षा नहीं कर रहा है, बल्कि एक निहत्थी आबादी का सफाया कर रहा है.”

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी गाजा पर इजराइली हमलों का विरोध जताते रहे हैं, खासकर पिछले महीने फ़्रांस की तरफ से फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दिए जाने के बाद, वो इस मुद्दे पर लगातार मुखर होते जा रहे हैं. उन्होंने अगस्त 2025 में गाज़ा शहर में सैन्य अभियानों का विस्तार करने के इज़राइल के फैसले को एक “आने वाली आपदा” बताया था, जो एक “वास्तविक तबाही” का कारण बनेगी.

ब्रिटेन और तुर्किये भी खिलाफ

ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने बार-बार इज़राइल के कामों की निंदा की है और ब्रिटेन की नीति में बदलाव किया है, जिसके नतीजे में सितंबर 2025 में फिलिस्तीनी राज्य को आधिकारिक मान्यता दी गई है. जुलाई 2025 के अंत में, स्टारमर ने कहा था कि “फिलिस्तीनी लोगों को भुखमरी में रखना और मानवीय सहायता से वंचित करना, चरमपंथी समूहों की बढ़ती हिंसा और गाजा में इज़राइल की अनुपातहीन सैन्य बढ़ोतरी, ये सभी माफ़ी के लायक नहीं हैं.’

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने सितंबर 2024 में कहा था कि गाज़ा में जो कुछ हो रहा है, उससे “पश्चिमी मूल्य ख़त्म हो रहे हैं, इजराइल को अपनी रक्षा करने का अधिकार है, लेकिन यह नरसंहार की कीमत पर नहीं हो सकता.” यह अलगाव इजराइल के दीर्घकालिक हितों के लिए बड़ा खतरा है.

दीर्घकालिक पश्चिमी समर्थन का जोखिम

इजराइल की सबसे बड़ी चिंता उसका दीर्घकालिक पश्चिमी समर्थन है. सैन्य उपकरणों, खुफिया जानकारी और राजनयिक सुरक्षा के लिए इजराइल अमेरिका पर निर्भर है. लेकिन गाजा में बढ़े विनाश और मानवीय संकट की वजह से अमेरिकी और यूरोपीय जनता में इजराइल विरोधी भावनाएँ भी बढ़ रही हैं. अगर अमेरिका और यूरोप में राजनीतिक नेतृत्व बदलता है, या जनमत का दबाव बढ़ता है, तो इजराइल के लिए समर्थन जारी रखना मुश्किल हो सकता है.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं – “इजराइल ने सैन्य मोर्चे पर हमास को हराया होगा, लेकिन वो दुनिया के ‘दिमाग और दिल’ की लड़ाई हार गया है. पश्चिमी दुनिया में, इजराइल को अब ‘पीड़ित’ के बजाय ‘अत्याचारी’ के रूप में देखा जा रहा है. यह उसके दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए एक रणनीतिक खतरा है.”

इस बढ़ते अलगाव के बीच, मिस्र में बंधकों की रिहाई और युद्धविराम के लिए चल रही बातचीत ही एकमात्र उम्मीद की किरण है, ताकि इजराइल इस राजनीतिक दलदल से बाहर निकल सके.

नेतन्याहू की अंदरूनी चुनौतियां और आगे की राह

इस बाहरी दबाव के अलावा, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अंदरूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. बंधकों के परिवारों का विरोध, सेना के शीर्ष नेतृत्व के साथ मतभेद और इस मुद्दे पर देश के विभाजन ने उनकी कुर्सी को खतरे में डाल दिया है.

इजराइल अब एक चौराहे पर खड़ा है. उसके पास सैन्य ताकत है, लेकिन राजनीतिक पूंजी कम हो रही है. आगे की राह सिर्फ कूटनीति और क्षेत्रीय सहयोग से ही निकल सकती है. इजराइल को यह तय करना होगा कि उसे सिर्फ सैन्य ताकत से सुरक्षित रहना है, या राजनीतिक स्वीकार्यता के साथ.

तो, सैन्य ताकत से लबरेज इजराइल आज राजनीतिक रूप से इतना अकेला क्यों है? क्योंकि युद्ध के नियमों और मानवीय मूल्यों के बीच के संतुलन को खोना, किसी भी देश के लिए सबसे महंगी हार साबित हो सकता है. गाजा युद्ध ने सिर्फ मध्य पूर्व का भूगोल ही नहीं बदला है, बल्कि इसने इजराइल और पश्चिमी जगत के बीच के रिश्ते पर भी सवालिया निशान लगा दिया है.

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