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गयाजी की हवा में मिला खतरा:बस स्टैंड पर धूल में धातु की मात्रा लिमिट से ज्यादा, CSUB टीम की स्टडी में बड़ा खुलासा

गयाजी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार (CUSB) की एक ताजा शोध रिपोर्ट ने शहर की हवा और सड़क धूल से जुड़ी हकीकत सामने रखी है। पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेश कुमार रंजन और उनकी टीम की स्टडी में पहली बार खुलासा हुआ है कि गया के 8 मेन और सबसे बिजी बस स्टैंडों की सड़क के पास भारी धातुओं की मौजूदगी सामान्य स्तर से अधिक है। यह रिपोर्ट एरेबियन जर्नल ऑफ जियोसाइंसेज (स्प्रिंगर) में प्रकाशित भी हुई है। शहर के पर्यावरण की वर्तमान स्थिति समझने के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। धूल में कॉपर, लेड, जिंक और निकल की मात्रा ज्यादा सीयूएसबी के पीआरओ के अनुसार, शोधकर्ताओं ने सड़क धूल में कॉपर (Cu), लेड (Pb), जिंक (Zn) और निकल (Ni) की मात्रा की जांच की। यह सभी धातुएं वाहन उत्सर्जन, टायर घिसने, निर्माण कार्यों और भारी आवाजाही से निकलने वाली धूल में पाई जाती हैं। अध्ययन में सामने आया कि जिंक और कॉपर का स्तर प्राकृतिक मानक से ज्यादा है। यह इस बात का संकेत है कि लगातार बढ़ रहे ट्रैफिक और मानवीय गतिविधियों से धातुओं का दबाव सीधे शहर की हवा पर पड़ रहा है। हालांकि, प्रदूषण फिलहाल कम से मध्यम श्रेणी में है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह आगे के लिए चेतावनी है। सफर करने वाले यात्री इस प्रदूषण से प्रभावित प्रो. रंजन के मुताबिक बुजुर्ग, स्कूल के बच्चे, सड़क किनारे दुकान लगाने वाले लोग और रोजाना बस से सफर करने वाले यात्री इस प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। व्यस्त चौराहों और स्टैंडों के आसपास खड़े रहने या गुजरने के दौरान वे धूल सीधे सांस के साथ अंदर ले लेते हैं। अभी स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव सीमित है, लेकिन बिना नियंत्रण उपायों के शहर के विस्तार और ट्रैफिक के बढ़ने के साथ जोखिम बढ़ सकता है। टीम का यह अध्ययन नीति-निर्माताओं और प्रशासन के लिए अहम आधार देता है। रिपोर्ट साफ तौर पर इशारा करती है कि शहर में सड़क सफाई की व्यवस्था मजबूत करने, धूल नियंत्रण तकनीक अपनाने, वाहनों के उत्सर्जन की नियमित जांच और नियमित पर्यावरणीय मॉनिटरिंग जैसे कदम जल्द उठाए जाने चाहिए। कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह, कुलसचिव प्रो. नरेंद्र कुमार राणा और CUSB के अन्य संकाय सदस्यों ने इस अध्ययन के लिए प्रो. रंजन और शोधार्थी कुमारी सौम्या और अल्विया असलम को बधाई दी है। अध्ययन की सबसे खास बात यह है कि गया के उन बस स्टैंडों को चुना गया, जहां रोजाना हजारों वाहन और यात्री गुजरते हैं और जहां धूल का दबाव सबसे अधिक रहता है।


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