देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) का ऐतिहासिक ड्रिल स्क्वायर शनिवार को सिर्फ कदमताल और सलामी का गवाह नहीं बना, बल्कि पंजाब के गुरदासपुर से आए एक जवान की संघर्ष से सफलता तक की कहानी का मंच भी बना। 157वीं पासिंग आउट परेड में जब 491 युवा अधिकारी भारतीय सेना का हिस्सा बने, तब इन्हीं कतारों में खड़ा एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा- लेफ्टिनेंट हरप्रीत सिंह। हरप्रीत सिंह की कहानी इसलिए अलग रही, क्योंकि वे भारतीय सेना में कभी क्लर्क के पद पर भर्ती हुए थे। यूनिफॉर्म तो पहले भी पहनते थे, लेकिन कंधों पर सितारे सजाने का सपना अधूरा था। वर्षों की मेहनत, कई असफल प्रयासों और परिवार के मजबूत सहारे के बाद आखिरकार उन्होंने अफसर बनने का लक्ष्य हासिल कर लिया। परेड के दौरान एक और भावुक दृश्य देखने को मिला। पिपिंग सेरेमनी में लेफ्टिनेंट हरप्रीत सिंह और उनके बड़े भाई मेजर लवप्रीत सिंह के नन्हे बच्चे आर्मी की ड्रेस में नजर आए। बच्चों की मासूमियत और जोश ऐसा था कि खुद थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी भी खुद को रोक नहीं पाए और दोनों बच्चों के साथ तस्वीर खिंचवाई। अब पढ़िए हरप्रीत सिंह की कहानी…
क्लर्क की नौकरी, लेकिन सपना अफसर बनने का लेफ्टिनेंट हरप्रीत सिंह का चयन 2013 में भारतीय सेना में क्लर्क के पद पर हुआ था। उन्होंने 22 मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री यूनिट में अपनी सेवाएं दीं। यूनिट में काम करते हुए उनके मन में अफसर बनने का सपना लगातार मजबूत होता गया, लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था। उन्होंने कई बार चयन प्रक्रिया में हिस्सा लिया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। खास बात यह रही कि उन्होंने किसी कोचिंग संस्थान से तैयारी नहीं की। वे कहते हैं कि उनकी असली ताकत उनका आत्मविश्वास और परिवार का भरोसा रहा। बड़े भाई मेजर लवप्रीत सिंह बने सबसे बड़ा सहारा हरप्रीत सिंह के जीवन में सबसे अहम भूमिका उनके बड़े भाई मेजर लवप्रीत सिंह की रही। मेजर लवप्रीत सिंह खुद भारतीय सेना में अधिकारी हैं। उन्होंने बताया कि वे 2011 में टीएस एंट्री के जरिए सेना में आए थे और 2015 में उन्हें कमीशन मिला। मेजर लवप्रीत सिंह कहते हैं कि मैं हमेशा अपने छोटे भाई से यही कहता था कि कोशिश करते रहो, सफलता जरूर मिलेगी। असफलता सिर्फ एक पड़ाव होती है, मंजिल नहीं। आज मेरे लिए गर्व का दिन है कि मेरा भाई भी सेना में अफसर बना है। पिता हवलदार से रिटायर, अब दो पीढ़ियां सेना में अफसर लेफ्टिनेंट हरप्रीत सिंह के पिता तरसेम सिंह भी भारतीय सेना में हवलदार के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। बेटे के अफसर बनने पर वे भावुक नजर आए। उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह गर्व का पल है। पहले मैंने सेना में सेवा की और आज मेरे दोनों बेटे अफसर हैं। उन्होंने कहा कि यह परिवार के लिए दो पीढ़ियों की वर्दी का सफर है। उनके दोनों पोते अभी छोटे हैं, लेकिन वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि एक दिन उनके कंधों पर भी सितारे सजें और तीसरी पीढ़ी भी देश सेवा करे। पिपिंग सेरेमनी में बच्चों ने जीता दिल पिपिंग सेरेमनी के दौरान मेजर लवप्रीत सिंह और लेफ्टिनेंट हरप्रीत सिंह के नन्हे बच्चे भी परेड ग्राउंड पर आकर्षण का केंद्र बने। सिर पर पगड़ी और आर्मी की ड्रेस पहने दोनों नन्हें सरदार आर्मी की वेशभूषा पहने ये बच्चे ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते नजर आए। बच्चों का जोश और मासूमियत देखकर थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने उनके साथ तस्वीर भी खिंचवाई। यह दृश्य परेड में मौजूद लोगों के लिए सबसे यादगार पलों में से एक बन गया। 157वीं पासिंग आउट परेड में 525 कैडेट्स को कमीशन भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में आयोजित 157वीं पासिंग आउट परेड में कुल 525 अधिकारी कैडेट्स को भारतीय सेना में कमीशन प्रदान किया गया। इनमें 157वां रेगुलर कोर्स, 46वां टेक्निकल एंट्री स्कीम, 140वां टेक्निकल ग्रेजुएट कोर्स, 55वां स्पेशल कमीशंड ऑफिसर्स कोर्स और टेरिटोरियल आर्मी ऑनलाइन एंट्रेंस एग्जाम 2023 कोर्स के कैडेट्स शामिल रहे। इनमें से 491 भारतीय कैडेट्स भारतीय सेना में शामिल हुए, जबकि 14 मित्र राष्ट्रों के 34 विदेशी अधिकारी कैडेट्स ने भी कमीशन प्राप्त किया। हर कैडेट की अपनी अलग संघर्ष गाथा रही, लेकिन क्लर्क से अफसर बने लेफ्टिनेंट हरप्रीत सिंह की कहानी सबसे ज्यादा लोगों को छू गई।
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