क्यों नहीं है ऑटोइम्यून बीमारियों का इलाज, क्या नोबेल प्राइज जितने वाले वैज्ञानिकों की खोज से मिलेगा रास्ता?
2025 का मेडिसिन क्षेत्र में नोबेल प्राइज तीन वैज्ञानिकों को मिला है. इन्होंने Peripheral Immune Tolerance पर रिसर्च की थी. इनकी खोज से यह पता चला है कि इम्यून सिस्टम को कैसे कंट्रोल किया जाए जिससे यह शरीर के अंगों पर हमला न करे. अब इसी के आधार पर इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी से होने वाली बीमारियों (ऑटोइम्यून डिजीज) के इलाज की तरफ एक कदम बढ़ा है. ऐसा इसलिए क्योंकि आजतक इनका कोई इलाज नहीं है. लेकिन क्या अब वैज्ञानिकों की रिसर्च के बाद आने वाले समय में ट्रीटमेंट मुमकिन हो पाएगा?
पहले ये जान लेते हैं कि ऑटोइम्यून बीमारियां क्या होती हैं? जब किसी व्यक्ति के शरीर का इम्यून सिस्टम खुद अपनी सेल्स पर हमला करने लगती है तो इस स्थिति में जो बीमारियां होती हैं उनको ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं. आमतौर पर हमारा इम्यून सिस्टम बीमारियों से लड़ता है, लेकिन जब यह गलती से शरीर के ही स्वस्थ सेल्स को दुश्मन समझकर उनको खत्म करने लगता है तो इससे ऑटोइम्यून बीमारियां होने लगती हैं.
रूमेटॉयड आर्थराइटिस, टाइप-1 डायबिटीज, ल्यूपस ये सभी बीमारी इसी कारण होती हैं, दुनिया में करोड़ों लोग हर साल इन इनका शिकार होते हैं, लेकिन आजतक इनका कोई परमानेंट इलाज नहीं है. नोबेल जितने वाले वैज्ञानिकों ने यही पता लगाया है कि इम्यून सिस्टम को कैसे कंट्रोल किया जा सकता है जिससे ये शरीर की अच्छी सेल्स पर हमला करे ही नहीं.
आजतक ऑटोइम्यून बीमारियों का इलाज क्यों नहीं है?
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एंड एसोसिएट हॉस्पिटल्स में मेडिकल सुपरीटेंडेट डॉ. एल. एच घोटेकर बताते हैं कि अब तक मेडिकल साइंस यह पूरी तरह नहीं समझ पाई थी कि इम्यून सिस्टम अपने ही टिश्यू और सेल्स पर क्यों हमला करने लगता है. इसी वजह से इलाज के तौर पर सिर्फ इम्यून सिस्टम को कमजोर करने वाली दवाएं दी जाती हैं ताकि हमला रोका जा सके, लेकिन इन दवाओं से लंबे समय के लिए कोई खास आराम नहीं मिलता था. हद से हद बीमारी कंट्रोल होती थी, लेकिन पूरा इलाज नहीं हो पाता था.
नोबेल प्राइज वैज्ञानिकों की खोज से क्या फायदा होगा?
डॉ. घोटेकर कहते हैं कि नोबेल प्राइज जितने वाले वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि इम्यून सिस्टम को कैसे कंट्रोल किया जाए जिससे यह शरीर के अंगों पर हमला न करे और ऑटो इम्यून बीमारियां न हो, यह खोज बताती है कि शरीर में एक सेकंड लेयर इम्यून कंट्रोल सिस्टम होता है जो शरीर को अपनी कोशिकाओं पर हमला करने से रोकता है. लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि इन सेल्स का काम सही ढंग से कैसे समझा जाए.
हालांकि रिसर्च की मदद से आने वाले समय मेंडॉक्टर ऐसे ट्रीटमेंट बना सकते हैं जो ऑटोइम्यून बीमारियों की जड़ पर काम करेंगे और इन बीमारियों का परमानेंट इलाज हो सकेगा, हालांकि इस समय में कितना समय लगेगा इस बारे में साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.
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