उत्तर बिहार के प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र किशनगंज में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और घना कोहरा छाया हुआ है। तापमान 8 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया है, इसके बावजूद चाय बागानों में पत्ती तोड़ने का काम जारी है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारतीय चाय बोर्ड (टी बोर्ड ऑफ इंडिया) ने सर्दियों में चाय उत्पादन बंद करने के संबंध में अब तक कोई स्पष्ट निर्देश जारी नहीं किया है। पिछले साल, टी बोर्ड ने 30 नवंबर से पहले ही असम, उत्तर बंगाल और बिहार के चाय बागानों को बंद करने का आदेश दिया था। इस फैसले से चाय उद्योग को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ था और पूरे क्षेत्र में भारी विवाद उत्पन्न हो गया था। पश्चिम बंगाल के नेताओं ने इसे केंद्र सरकार की ‘साजिश’ तक करार दिया था। बागान मालिक लेंगे उत्पादन बंद करने का निर्णय इस बार, वही टी बोर्ड इस मुद्दे पर खामोश है। सूत्रों के अनुसार, 2026 में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बोर्ड किसी नए विवाद से बचना चाहता है। इसलिए, इस बार उत्पादन बंद करने का निर्णय बागान मालिकों पर ही छोड़ दिया गया है, जैसा कि 8-10 साल पहले तक होता था। पड़ोसी पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, दुआर्स और तराई क्षेत्रों के कई बड़े चाय बागानों ने पिछले हफ्ते से ही शीतकालीन रखरखाव शुरू कर दिया है और वहां पत्ती तोड़ना लगभग बंद हो चुका है। हालांकि, बिहार के किशनगंज और ठाकुरगंज में अधिकांश बागानों में अभी भी मजदूर पत्ती तोड़ रहे हैं। ठाकुरगंज के एक बड़े चाय उत्पादक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “पिछले साल जल्दी बंद करने से हमें भारी नुकसान हुआ था। इस बार हम तब तक पत्ती तोड़ते रहेंगे, जब तक अच्छी गुणवत्ता वाली पत्तियां मिल रही हैं। हमें केवल बॉटलिफ फैक्टरियों पर नज़र रखनी होगी कि वे खराब या कचरा पत्तियां न खरीदें।” ठंड में कीट-पतंगों का बढ़ जाता है प्रकोप सर्दियों में चाय की पत्तियों पर कीट-पतंगों का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे चाय की गुणवत्ता गिर जाती है। यही कारण है कि हर साल दिसंबर से फरवरी तक पत्ती तोड़ने पर रोक लगाई जाती है। हालांकि, इस बार किसान कह रहे हैं कि अभी पत्तियां अच्छी आ रही हैं, इसलिए उत्पादन जारी रखना चाहिए। चाय उद्योग के जानकारों का मानना है कि पिछले साल समय से पहले उत्पादन बंद करने से बाजार में चाय की कमी हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप, केन्या और नेपाल से सस्ती चाय का आयात अचानक बढ़ गया था। बागान मालिकों के हाथ में फैसला इस बार उद्योग जगत नहीं चाहता कि वैसी गलती दोहराई जाए। ठाकुरगंज के चाय किसानों ने कहा, “चाय प्रकृति पर निर्भर है। जब तक मौसम अनुकूल है, उत्पादन चलना चाहिए। गुणवत्ता की निगरानी अलग से की जा सकती है।” फिलहाल चाय क्षेत्र टी बोर्ड के अगले कदम का इंतजार कर रहा है। लेकिन इतना साफ है कि इस बार दिल्ली से कोई सख्त आदेश आने की संभावना कम है। फैसला अब बागान मालिकों के हाथ में है।
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