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किशनगंज में गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवे बहादुरगंज की 25 पंचायतों से गुजरेगा:बिहार में लंबाई 417 किलोमीटर होगी; 38,645 करोड़ रुपए की लागत से 6 लेन का बनेगा

गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवे परियोजना सीमांचल क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यह महत्वाकांक्षी ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे अब किशनगंज के बहादुरगंज प्रखंड की 25 पंचायतों से होकर गुजरेगा। यह हाई-स्पीड कॉरिडोर बहादुरगंज, टेढ़ागाछ, ठाकुरगंज और पोठिया जैसे क्षेत्रों को राष्ट्रीय परिवहन नेटवर्क से जोड़ेगा। छह लेन का यह एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से शुरू होकर पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी तक जाएगा। यह बिहार के आठ जिलों – पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज से गुजरेगा। बिहार में इसकी लंबाई लगभग 417 किलोमीटर होगी, जबकि कुल लंबाई 568 किलोमीटर है। परियोजना की अनुमानित लागत 38,645 करोड़ रुपए है, जिसमें बिहार का हिस्सा 27,552 करोड़ रुपए होगा। यात्रा का समय 14-15 घंटे से घटकर 8-9 घंटे रह जाएगा एक्सप्रेसवे के निर्माण से गोरखपुर से सिलीगुड़ी की यात्रा का समय 14-15 घंटे से घटकर 8-9 घंटे रह जाएगा। दूरी भी 640 किलोमीटर से कम होकर 519 किलोमीटर हो जाएगी। 120 किलोमीटर प्रति घंटे की डिज़ाइन गति वाले इस एक्सेस-कंट्रोल्ड हाईवे पर गंडक, बागमती और कोसी जैसी प्रमुख नदियों पर पुल बनाए जाएंगे। बहादुरगंज सहित तीन प्रखंडों से गुजरेगा बहादुरगंज क्षेत्र के स्थानीय लोगों में इस परियोजना को लेकर उत्साह है। एक्सप्रेसवे से औद्योगिक गलियारे विकसित होने, रोजगार के नए अवसर पैदा होने और जमीन की कीमतों में वृद्धि की उम्मीद है। किशनगंज जिले में एक्सप्रेसवे का लगभग 72 किलोमीटर का हिस्सा अब बहादुरगंज सहित तीन प्रखंडों से गुजरेगा। रूट में हालिया संशोधन के बाद भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में तेजी आई है। मंत्री नितिन नवीन ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया बिहार के पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है। उन्होंने कहा कि यह एक्सप्रेसवे बिहार के परिवहन नेटवर्क को आधुनिक बनाएगा और व्यापार, पर्यटन तथा उद्योग को बढ़ावा देगा। केंद्र सरकार ने मार्च 2025 में इस परियोजना को मंजूरी दी थी। चुनाव के बाद अब भूमि अधिग्रहण और निर्माण कार्य में तेजी आने की उम्मीद है। परियोजना भारतमाला परियोजना का हिस्सा यह परियोजना भारतमाला परियोजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पूर्वी भारत को उत्तर-पूर्व से जोड़ना है। इससे नेपाल और उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा। स्थानीय स्तर पर किसानों, व्यापारियों और युवाओं के लिए नई संभावनाएं खुलने की उम्मीद है।


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