औरंगजेब ने कैसे साजिश रचकर हैदराबाद का गोलकुंडा किला जीता?

औरंगजेब ने कैसे साजिश रचकर हैदराबाद का गोलकुंडा किला जीता?

भारत का मध्यकालीन इतिहास युद्धों, सत्तांतरण और किलों की रणनीतिक लड़ाइयों से भरा पड़ा है. दक्षिण भारत का गोलकुंडा किला, जो वर्तमान तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद में स्थित है, अपनी स्थापत्य, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है. यह किला राजनीतिक टकराव और साम्राज्य विस्तार की कहानी भी बयां करता है. औरंगजेब, जो मुगल साम्राज्य का छठवां शासक था, जिसने 17वीं शताब्दी में (30 सितम्बर 1687) गोलकुंडा किले को घेरकर विजय प्राप्त की. इस घटना ने न केवल मुगल साम्राज्य को विस्तार दिया, बल्कि दक्षिण भारत की राजनीतिक संरचना को भी बदल दिया.

गोलकुंडा की नींव मूल रूप से काकतीय राजवंश ने 13वीं सदी में रखी थी. बाद में इसे बहमनी सल्तनत और फिर कुतुबशाही वंश ने और विकसित किया. कुतुबशाही शासक विशेष रूप से इस किले को अपनी शक्ति का प्रमुख केंद्र मानते थे. हैदराबाद तथा गोलकुंडा हीरे-मोतियों के व्यापार के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध हो चुके थे.

कुतुबशाही शासक अब्दुल्ला कुतुब शाह और अब्दुल्ला के उत्तराधिकारी अबुल हसन कुतुब शाह (जो ताना शाह के नाम से प्रसिद्ध थे) के शासनकाल में गोलकुंडा अपनी आर्थिक शक्ति के शिखर पर था. यह संपन्नता स्वाभाविक रूप से मुगलों को आकर्षित करती थी, जो दक्षिण भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे.

औरंगजेब की दक्कन नीति

मुगल शासकों की दक्कन की ओर बढ़ने की नीति बाबर और अकबर के दौर से ही स्पष्ट थी, किन्तु सबसे अधिक आक्रामक रुख औरंगजेब ने अपनाया. वह चाहता था कि दक्षिण के स्वतंत्र मुस्लिम राज्यों- बीजापुर और गोलकुंडा को समाप्त कर मुगल साम्राज्य में मिला दिया जाए. बीजापुर पर आक्रमण करके औरंगजेब ने 1686 में उसे जीत लिया. इसके तुरंत बाद उसका ध्यान गोलकुंडा की ओर गया. संसाधनों से भरपूर यह राज्य उसके लिए आर्थिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था.

Golkonda Fort Mughal Connection

गोलकुंडा किला.

गोलकुंडा पर औरंगजेब का आक्रमण

अबुल हसन कुतुब शाह, जिन्हें तानाशाह कहा जाता था, अपने शासन के अंतिम दिनों में आंतरिक षड्यंत्रों और दरबारी विद्रोहों से कमजोर पड़ चुके थे. किले की विशाल और मजबूत दीवारें गोलकुंडा को अभेद्य बनाती थीं. उसमें गोपनीय रास्ते, ऊंचे बुर्ज और मजबूत फाटक थे.

औरंगजेब ने 1687 में इस किले का व्यवस्थित घेराव किया. ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, लगभग आठ महीने तक यह युद्ध चला. मुगलों ने संचार, रसद आपूर्ति और चारों ओर से गोलकुंडा को घेरकर तानाशाह की सेना को धीरे-धीरे कमजोर किया.

कहा जाता है कि किले के अंदर से लाचार सैनिकों और असंतुष्ट सरदारों ने विश्वासघात करके मुगलों के लिए फाटक खुलवा दिया. इस प्रकार, साल 1687 में मुगलों ने किला जीत लिया और अबुल हसन कुतुब शाह को बंदी बना लिया गया. उन्हें जीवन भर कैद में रखा गया और कुतुबशाही सल्तनत का अंत हो गया.

गोलकुंडा विजय के परिणाम

  1. राजनीतिक परिणाम: कुतुबशाही सल्तनत का अंत हुआ और उसका इलाका सीधे मुगलों के अधीन चला गया.
  2. आर्थिक परिणाम: गोलकुंडा की हीरों की खानें और संपत्ति मुगलों के नियंत्रण में आ गईं. कहा जाता है कि कोहिनूर समेत कई प्रसिद्ध हीरे इसी दौरान मुगलों के हाथ लगे.
  3. सैन्य परिणाम: इस विजय ने दक्षिण भारत में मुगलों की स्थिति मजबूत कर दी. हालांकि, मराठों का उभरता संघर्ष आगे चलकर औरंगजेब की शक्ति को निष्प्रभावी कर गया.
  4. सांस्कृतिक परिणाम: कुतुबशाही कला, स्थापत्य और साहित्य पर आघात पहुँचा. मुगलों ने राजनीतिक नियंत्रण तो पा लिया लेकिन हैदराबाद की विशिष्ट संस्कृति और आत्मा कुतुबशाहियों की देन रही.

क्यों कब्जा करने की योजना बनाई गई?

इस पूरे प्रसंग की जानकारी हमें विभिन्न इतिहासकारों और ग्रंथों से मिलती है. Mughal Administration in the Deccan के लेखक सतीश चंद्र ने औरंगजेब की दक्कन नीति को विस्तार से समझाया है. वे बताते हैं कि औरंगजेब की यह महत्वाकांक्षा केवल राजनीतिक नहीं बल्कि आर्थिक भी थी, क्योंकि दक्कन के राज्यों से प्राप्त धन मुगलों की उत्तर भारत में चल रही युद्ध-व्यवस्था को मजबूत करता था.

History of the Qutb Shahi Dynasty के लेखक H.K. Sherwani लिखते हैं कि कुतुबशाही वंश, उनकी प्रशासनिक नीतियों और सांस्कृतिक योगदान का गहरा वर्णन है. लेखक ने स्पष्ट किया है कि अबुल हसन कुतुब शाह का शासनकाल दरबारी षड्यंत्रों और अस्थिरता से ग्रस्त था, जिससे औरंगजेब को गोलकुंडा पर विजय पाने का अवसर मिला. The New Cambridge History of India और ख़ाफी ख़ान की मुन्तख़ब-उल-लबाब जैसी कृतियां भी इस घटना के विवरण प्रस्तुत करती हैं.

जीत मिली, लेकिन खजाना खाली हो गया

इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब अपनी दीर्घकालीन दक्कन नीति के कारण स्वयं मुगल साम्राज्य को कमजोर कर बैठा. एक ओर उसने गोलकुंडा और बीजापुर को जीतकर साम्राज्य का विस्तार किया. लेकिन दूसरी ओर, इतने लंबे दक्कन अभियानों ने खजाने को खाली कर दिया और सैनिकों का मनोबल गिरा दिया. मराठों की गुरिल्ला युद्ध पद्धति ने औरंगजेब को थका दिया और अंततः मुगल साम्राज्य उसके बाद कभी भी पहले जैसा शक्तिशाली न रह सका.

गोलकुंडा किले पर औरंगजेब का कब्ज़ा 17वीं शताब्दी की एक निर्णायक ऐतिहासिक घटना थी. यह विजय मुगल साम्राज्य की दक्षिण भारत में सबसे बड़ी सफलता थी लेकिन इसके दीर्घकालिक दुष्परिणामों ने साम्राज्य की नींव हिला दी. कुतुबशाही वंश का अंत हुआ, किंतु उनकी सांस्कृतिक छाप आज भी हैदराबाद और गोलकुंडा किले की दीवारों पर साफ झलकती है.

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