ऑपरेशन सिंदूर में ऐसे ध्वस्त किए गए थे पाकिस्तान के आतंकी ठिकाने… डीजीएमओ घई का खुलासा
भारतीय सेना के महानिदेशक (सैन्य अभियान) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और पाकिस्तान के अंदर हुए सटीक हमलों को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने बताया कि 7 मई की सुबह तड़के भारतीय वायुसेना (IAF) ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर जबरदस्त कार्रवाई की, जिसमें 100 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया.
जनरल घई ने बताया, अगर हम मुरिदके की बात करें यह लश्कर-ए-तैयबा का मुख्य आतंकी अड्डा है. स्क्रीन पर दिख रही तस्वीरें भारतीय वायुसेना की स्ट्राइक की हैं. पहले और बाद की सैटेलाइट इमेज में साफ दिखता है कि कई हाई-वैल्यू टारगेट्स (उच्च मूल्य वाले लक्ष्य) पूरी तरह नष्ट कर दिए गए. उन्होंने आगे बताया, बहावलपुर में भी एयर स्ट्राइक की गई. मैक्सर (Maxar) सैटेलाइट की पहले और बाद की तस्वीरों में साफ दिखता है कि रॉकेट और मिसाइलें अपने लक्ष्यों को भेद चुकी हैं.
आतंकवाद और पाकिस्तानी सेना के बीच खुलेआम गठजोड़
DGMO ने कहा, इन इलाकों में आतंकवाद और पाकिस्तानी सेना के बीच खुलेआम गठजोड़ दिखा. यह इतना स्पष्ट था कि हमें भी हैरानी हुई कि उन्होंने किसी तरह की सावधानी नहीं बरती. तस्वीरों में साफ दिखता है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकी एक प्रार्थना सभा की अगुवाई कर रहा था और उस कार्यक्रम में पाकिस्तान सेना के वरिष्ठ अधिकारी, यहां तक कि 4 कॉर्प्स के GOC (जनरल ऑफिसर कमांडिंग) भी मौजूद थे.
जनरल घई के मुताबिक, यह सबूत इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान की जमीन पर आतंकवाद और सेना के बीच गहरा गठजोड़ आज भी जारी है और ऑपरेशन सिंदूर ने उसी नेटवर्क को निशाना बनाया. भारतीय सेना पूरी तरह तैयार थी और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया पहले से अनुमानित थी. जनरल घई ने कहा, मीडिया में कई बार यह सुनने को मिलता है कि हमने केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया और पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थे.
उन्होंने कहा, मैं साफ कहना चाहता हूं यह बेहद गलत सोच है. भारतीय सेना जैसी पेशेवर फोर्स कभी भी बिना तैयारी के कोई ऑपरेशन नहीं करती. हमने पहले से चार से पांच कदम आगे तक की संभावित स्थितियों का वॉर-गेमिंग (युद्ध परिदृश्य अभ्यास) किया था. हमें पता था कि पाकिस्तान किस तरह की प्रतिक्रिया देगा. इसलिए हमने पहले ही उनकी सेकंड लेयर यानी दूसरे स्तर की रक्षा स्थिति पर हमला किया जिसकी उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं थी.
अप्रत्याशित जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तान को भारी नुकसान
DGMO ने कहा, इसी अप्रत्याशित जवाबी कार्रवाई के कारण पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ और उनके कई जवान मारे गए. लेफ्टिनेंट जनरल घई के इस बयान से साफ है कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक जवाबी हमला नहीं, बल्कि एक रणनीतिक रूप से योजनाबद्ध सैन्य अभियान था, जिसमें भारतीय सेना ने हर संभावित स्थिति के लिए पहले से तैयारी कर रखी थी.
लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की जड़ों और ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि पर बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या 1980 के दशक के अंत में शुरू हुई थी और तब से अब तक 28,000 से अधिक आतंकवादी घटनाएं हो चुकी हैं. 1990 के दशक से अब तक एक लाख से अधिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जम्मू-कश्मीर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं, जिसमें करीब 60,000 परिवार शामिल हैं.
इस दौरान 15,000 से अधिक निर्दोष नागरिकों और 3,000 से अधिक सुरक्षा बलों के जवानों ने अपनी जान गंवाई है. उन्होंने कहा, यह स्पष्ट है कि आतंकवाद की यह लहर कहां से उत्पन्न हो रही है. ऐसा नहीं है कि ऑपरेशन सिंदूर अचानक लिया गया फैसला था. जनरल घई ने याद दिलाया कि 2001 में संसद हमले के बाद भारत को सीमाओं पर सैनिक तैनाती करनी पड़ी थी और सेना लगभग एक वर्ष तक मोर्चे पर रही थी.
2019 में हमने नियंत्रण रेखा पार कर सटीक हवाई हमला किया था
उन्होंने आगे कहा, 2016 में हमारे सैनिकों पर बर्बर हमला हुआ, उनके टेंट जलाए गए, तब हमने एलओसी के नजदीक जवाबी कार्रवाई की. 2019 में हमने नियंत्रण रेखा पार कर सटीक हवाई हमला किया लेकिन उसे सीमित रखा गया. मगर इस बार घटनाओं की तीव्रता और व्यापकता इतनी अधिक थी कि निर्णायक कदम उठाना आवश्यक हो गया. ऑपरेशन सिंदूर किसी एक घटना की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि वर्षों से जारी आतंकवाद के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीतिक कार्रवाई थी.
सेना के महानिदेशक (सैन्य अभियान) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि और अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल को आतंक एक बार फिर कश्मीर की वादियों में आया. नियंत्रण रेखा (LoC) पार से भेजे गए आतंकियों ने पहलगाम में 26 निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या कर दी. उन्हें पहचान कर उनके समुदाय के बारे में पूछकर उनके परिवार और प्रियजनों के सामने ठंडे दिमाग से गोली मार दी गई.
जनरल घई ने बताया, हमले के तुरंत बाद कुछ आतंकी संगठनों ने इसे अपनी शौर्यगाथा बताकर जिम्मेदारी ली थी. शुरुआत में कश्मीर रेज़िस्टेंस फ्रंट (KRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली लेकिन जल्द ही जब उन्हें एहसास हुआ कि मामला उनके नियंत्रण से बाहर जा चुका है, तो उन्होंने अपना दावा वापस ले लिया. हर कोई जानता था कि भारत की ओर से जवाबी कार्रवाई तय है, लेकिन हमने जल्दबाजी नहीं की. थलसेना प्रमुख ने भी मीडिया से बातचीत में स्पष्ट किया था कि सशस्त्र बलों को पूरी स्वतंत्रता दी गई है कि वे अपनी योजना के अनुसार कार्रवाई करें.
हम अपने लक्ष्यों की प्राथमिकता तय कर रहे थे
DGMO ने बताया कि 22 अप्रैल से लेकर 6-7 मई की रात तक ऑपरेशन सिंदूर के तहत कार्रवाई की तैयारी चल रही थी. हम अपने लक्ष्यों की प्राथमिकता तय कर रहे थे. सीमाओं पर कुछ एहतियाती तैनातियां की गईं ताकि दुश्मन को चेतावनी मिल सके. इस दौरान तीनों सेनाओं कई सरकारी विभागों और खुफिया एजेंसियों के बीच बेहद सटीक और समन्वित तालमेल बना रहा.
जनरल घई ने यह भी बताया कि इस पूरे समय एक सुव्यवस्थित और आक्रामक सूचना युद्ध (Information Warfare) अभियान भी साथ-साथ चलाया जा रहा था, ताकि दुश्मन को भ्रमित किया जा सके और भारत की रणनीतिक बढ़त कायम रखी जा सके. सेना के शीर्ष अधिकारी के इस बयान से स्पष्ट है कि ऑपरेशन सिंदूर कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि ठोस खुफिया जानकारी, सैन्य समन्वय और रणनीतिक धैर्य का परिणाम था.
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