उत्तराखंड चुनाव आयोग के आंकड़ों से एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इन आंकड़ों के मुताबिक राज्य की उन विधानसभा सीटों पर मतदाताओं में बड़ा उछाल आया है जो पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से सटी हुई हैं। हालांकि ये उछाल सिर्फ सीमा से सटी विधानसभा सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के मैदानी इलाकों की सीटों पर भी वोटरों की संख्या में हैरान कर देने वाला उछाल आया है। ये आंकड़े इसलिए भी दिलचस्प हैं क्योंकि ये मतदाताओं की बढ़ती संख्या के साथ ही इन इलाकों में आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ रही जनसंख्या का भी सबूत दे रहे हैं। 2012 से 2022 की बात करें तो 6 सीटें ऐसी हैं जहां सिर्फ 10 सालों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटर बढ़े हैं, वहीं 25 सीटें ऐसी हैं जहां ये इजाफा 30 प्रतिशत से ज्यादा हुआ है। 3 सीटों पर सबसे कम बढ़े मतदाता 70 में से सिर्फ 3 सीटें रानीखेत, चौबटिया व सल्ट ऐसी हैं जहां मतदाताओं की बढ़ोत्तरी 10 प्रतिशत से कम रही है, वहीं 18 सीटें ऐसी हैं जहां पर वोटरों की वृद्धि दर 10-20 प्रतिशत के बीच रही है, जिसे सामान्य कहा जा सकता है। बाकी बची 39 सीटों पर जो बदलाव देखने को मिला है वो सीधे डेमोग्राफी में बदलाव की तरफ संकेत देता है, और 6 सीटों पर 50 प्रतिशत तक मतदाता बढ़ना किसी असाधारण घटना से कम नहीं है।
10 सालों में कहीं-कम कहीं ज्यादा बढ़ी वोटरों की संख्या से दो सवाल सामने आते हैं… 1- क्या पहाड़ से लोग मैदान की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं? 2- क्या सीमा से सटे इलाकों में बाहरी राज्यों से लोग बस रहे हैं? इस पूरे मामले में विशेषज्ञ की क्या राय विशेषज्ञ मानते हैं कि, जनसंख्या वृद्धि के सामान्य आंकड़ों से ज्यादा बढ़ोतरी से जनसंख्या में बदलाव की कहानी सामने आती है, यह साधारण बात नहीं है कि किसी विधानसभा क्षेत्र में अप्रत्याशित रूप से मतदाता बढ़ जाएं। जबकि दूसरी कई विधानसभा क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी सामान्य बनी रहे। पहाड़ों से मैदानों की ओर पलायन से उन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी का भी इशारा नही करती है। यानी लोग दूसरी जगहों से आकर किसी खास क्षेत्र में बसावट कर रहें है, इसकी संभावना ज्यादा है। धर्मपुर में बढ़े सबसे ज्यादा मतदाता चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य की सबसे तेजी से मतदाता बढ़ने वाले विधानसभा क्षेत्र धर्मपुर में 2012 में 1,20,998 मतदाता थे, 2024 के लोकसभा चुनाव के समय लगभग 2,17,077 मतदाता हो गए। हालांकि यह शहरी इलाके की सीट है, इस दौरान देहरादून की शहरी आबादी तेजी से बढ़ी है। जबकि सबसे कम मतदाता वृद्धि वाले सल्ट विधानसभा क्षेत्र में 2012 में 90,303 मतदाता थे। 2024 के लोकसभा चुनाव के समय मतदाताओं की संख्या लगभग 98,703 ही थी। 2008 में अस्तित्व में आई धर्मपुर सीट देहरादून जिले में स्थित धर्मपुर सीट अनारक्षित है। यह 2008 के परिसीमन में अस्तित्व में आई थी। आधे धर्मपुर व रेसकोर्स इलाके वाली इस सीट पर अजबपुर, डिफेंस कॉलोनी, देहराखास, कारगी, बंजारावाला, टर्नर रोड, क्लेमेनटाउन, चंद्रबनी, पटेलनगर, मेहूंवाला जैसे बड़े इलाके शामिल हैं। भले ही ये सीट 2008 में अस्तित्व में आई लेकिन मौजूदा समय में उत्तराखंड के सर्वाधिक मतदाता इसी सीट पर हैं। जनसंख्या और वोटरों में वृद्धि से क्या असर मतदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित बदलाव का असर चुनाव परिणाम पर भी पड़ता है। लोकतंत्र में कई बार एक वोट से भी हार जीत तय होती है। वहीं एक विधायक की हार जीत सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाती है। इसे उत्तराखंड के 2012 विधानसभा चुनाव के रिजल्ट से आसानी से समझा जा सकता है। राज्य की 70 सीटों में से कांग्रेस 32 व भाजपा 31 सीटें जीती थी। इसके साथ बसपा व निर्दलीय 3-3 तथा उत्तराखंड क्रांति दल (पी) 01 सीट जीती थी। इस चुनाव में एक सीट से पिछड़ी भाजपा सरकार बनाने में नाकाम रही थी। जबकि दोनों पार्टियों के वोट प्रतिशत में भी मामूली अंतर था। कांग्रेस को 33.79 प्रतिशत और भाजपा को 33.13 प्रतिशत मत मिले थे। एक वोट से भी होती है हार जीत का फैसला देश में एक वोट से हार जीत की कई घटनाएं हुई हैं। ताजा मामला बिहार विधानसभा चुनाव में भी सामने आया, जिसमें आरा सीट पर जेडीयू के राधा चरण साह ने आरजेडी के दीपू सिंह को मात्र 27 वोटों से हराया। वहीं, 2008 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार सीपी जोशी तो मात्र एक वोट से हार गए थे। उत्तराखंड में बाहरी लोगों को लेकर चिंता उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बाहरी लोगों की घुसपैठ के सवाल को लेकर मंथन चल रहा है, लगातार सरकार डेमोग्राफी चेंज के मुद्दे पर सख्त कार्रवाई करने की बात कहती है। वोटरों की संख्या में जो बदलाव 2012 से 2022 के बीच हुआ है अगर वह अभी भी जारी है तो इसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव पर पड़ने की संभावना है। आसानी से जुड़ रहे नए वोटर पिछले कुछ दिनों के दौरान राज्य में फर्जी निवास प्रमाण पत्र के कई मामले सामने आए हैं। निवास प्रमाण पत्र के लचीले प्रावधान को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।देहरादून के सहसपुर के 28 गांवों में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक होने की रिपोर्ट सामने आने के बाद राज्य सरकार की चिंता बढ़ गई है। माना जा रहा है कि बाहरी राज्यों से आए लोग गांव के परिवार रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं। जिसके बाद मतदाता सूची में उनका नाम जोड़ना आसान हो गया है। राज्य के मौजूदा प्रावधान के अनुसार, जो कोई भी उत्तराखंड में पिछले 15 सालों से रह रहा है और उसके पास अचल संपत्ति है, उसे राज्य का मूल निवासी माना जा सकता है।
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