उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में आदि कैलाश क्षेत्र में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) की 65 आरसीसी ग्रेफ ने 14,500 फीट की ऊंचाई पर 100 फीट का वैली ब्रिज सिर्फ 6 दिनों में तैयार कर दिया। यह ब्रिज पार्वती कुंड से निकलने वाले विंचिती नाले पर बनाया गया है। 40 टन क्षमता वाले इस बैली ब्रिज को 30 मजदूरों ने लगातार काम करके पूरा किया। ऊंचाई, मौसम और सीमित संसाधनों के बावजूद इतनी कम समय-सीमा में निर्माण पूरा होना बीआरओ के लिए बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। ब्रिज बनने से अब आदि कैलाश क्षेत्र में स्थानीय लोगों, सीमा पर तैनात जवानों और पर्यटन से जुड़े वाहनों की आवाजाही पहले से अधिक सुरक्षित और सुगम हो गई है। कर्नल ने बताया क्यों जरूरी था यह ब्रिज 765 बीआरटीएफ के कमांडर कर्नल प्रशांत सिंह ने कहा कि विंचिती नाले में बारिश के मौसम में पानी बढ़ने और मिट्टी धंसने से आवाजाही रुक जाती थी। जवानों की मूवमेंट, लॉजिस्टिक सप्लाई और स्थानीय लोगों की यात्रा में बार-बार दिक्कतें आती थीं। उन्होंने बताया कि 1.2 करोड़ की लागत से बना यह ब्रिज अब पूरे रूट को स्थायी और सुरक्षित कनेक्टिविटी देता है, जिससे वाहनों का संचालन निर्बाध हो गया है। ज्योलिंगकांग तक सड़क पूरी तरह पक्की, 36 किमी सफर अब 1 घंटे से कम वहीं, ज्योलिंगकांग आदि कैलाश तक भी अब पक्की सड़क बन चुकी है। गुंजी से कुटी होते हुए ज्योलिंगकांग तक 36 किलोमीटर की दूरी तय करने में पहले ढाई घंटे का समय लगता था। डामरीकरण होने के बाद अब यह सफर एक घंटे से भी कम समय में तय हो रहा है। आदि कैलाश आने वाले पर्यटकों, सीमा सुरक्षा में तैनात जवानों के साथ ही स्थानीय लोगों का आवागमन सुगम हुआ है। कुटी के ग्राम प्रधान नगेंद्र सिंह कुटियाल ने बताया कि जब तक सड़क नहीं थी उन्हें कुटी से आदि कैलाश जाने में पांच घंटे लगते थे। अब केवल 30 मिनट में पहुंच रहे हैं। अब आदि कैलाश के बारे में जानिए शिव का पुराना धाम है आदि कैलाश आदि कैलाश को भगवान शिव का प्राचीन धाम माना जाता है। इसे ‘छोटा कैलाश’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसका स्वरूप कैलाश पर्वत से मिलता-जुलता है। शिव–पार्वती मंदिर, पार्वती कुंड, गौरी कुंड और भीम की खेती यहां के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। रुंग समुदाय इसे अपनी विरासत और आस्था का केंद्र मानता है। 5 नवंबर को हो चुके कपाट बंद भगवान शिव-पार्वती मंदिर के कपाट इस साल 5 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विधि-विधान से बंद किए गए। पुजारी गोपाल सिंह कुटियाल और वीरेंद्र सिंह कुटियाल ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ परंपरा निभाई। कपाट बंद होने से पहले 500 से अधिक श्रद्धालुओं ने भजन-कीर्तन कर दर्शन किए। हल्की बर्फबारी के बीच कपाट बंदी की प्रक्रिया पूरी की गई। मंदिर के कपाट अब अगले साल मई में खोले जाएंगे। पुजारी भी बर्फबारी बढ़ने से पहले कुटी गांव लौट गए हैं। मौसम सामान्य होने और मार्ग साफ होने के बाद ही प्रशासन यात्रा की औपचारिक शुरुआत करता है। 35 हजार से ज्यादा भक्त पहुंचे इस साल 30 मई से शुरू हुई यात्रा में इस वर्ष 35 हजार से अधिक श्रद्धालु आदि कैलाश पहुंचे। श्रद्धालुओं ने आदि कैलाश पर्वत, ओम पर्वत, गौरी कुंड, पार्वती कुंड और भीम की खेती के दर्शन किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद सड़क सुधार और सुरक्षा प्रबंधन बेहतर हुआ है, जिससे पर्यटकों की संख्या में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
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