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उत्तराखंड की 7 बेटियों ने उठाई पिता की अर्थी:सीआईएसएफ में तैनात युवती ने मुंडन कराकर दी मुखाग्नि, हायर सेंटर ले जाते समय हुआ था निधन

उत्तराखंड में बेटे ही नहीं बेटियां भी आज के समय में बेटों की तरह माता-पिता के प्रति पूरा फर्ज निभा रही हैं। बेटों की ओर से की जाने वाली धार्मिक रस्मों को निभा रही हैं। समय के साथ समाज भी बेटियों के इन कदमों को स्वीकार करने के साथ ही उनका समर्थन करने लगा है। चीन-नेपाल सीमा से सटे पिथौरागढ़ की 7 बेटियों ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़कर न केवल पिता की अर्थी को कंधा दिया, बल्कि घाट पर जाकर चिता को मुखाग्नि भी दी। सीआईएसएफ में तैनात एक बेटी वर्दी पहनकर पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुई और मुंडन भी कराया। इन बेटियों को पुत्र जैसा फर्ज अदा करते देख सभी की आंखें नम हो गईं। पहले जानिए क्या है मामला?
पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट तहसील मुख्यालय से करीब आठ किमी दूर सिमलकोट ग्रामसभा के ऊकाला गांव निवासी पूर्व सैनिक किशन कन्याल का दो दिन पूर्व स्वास्थ्य खराब हो गया था। परिजन उन्हें सीएचसी गंगोलीहाट ले गए। हालत गंभीर होने पर डॉक्टरों ने उन्हें हॉयर सेंटर ले जाने की सलाह दी। हल्द्वानी ले जाते समय उन्होंने रास्ते में दम तोड़ दिया। सीआईएसएफ में तैनात बेटी ने कराया मुंडन
उनके निधन के बाद अंतिम संस्कार की बारी आई तो मृतक की सातों बेटियां आगे आईं और सभी रस्मों को उन्होंने पूरा करने का निर्णय लिया। दिवंगत कन्याल की सात बेटियों में तीसरे नंबर की बेटी किरन वर्तमान में सीआईएसएफ में तैनात हैं। पिता के निधन की सूचना मिलते ही वह घर पहुंची थीं। बहादुर बेटी ने मुंडन कराया और वर्दी में पिता की अर्थी को कंधा दिया। लोग हुए भावुक
इसके बाद सभी बहनें शव यात्रा में रामेश्वर घाट पहुंची। जहां पर किरन समेत अन्य पांच बहनों शोभा, चांदनी, नेहा, बबली व दिव्यांशी ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। एक अन्य बहन मंजू कुछ कारणों से श्मशान घाट नहीं आ सकीं, लेकिन पिता की अर्थी को उन्होंने कंधा जरूर दिया। बेटी होने के बावजूद बेटों की तरह कर्तव्य निभाने वाली इन बेटियों को देखकर सभी भावुक हो गए। लोगों ने कहा कि कन्याल परिवार की बेटियों ने यह कदम उठाकर पूरे समाज को एक बड़ा संदेश दिया है। जनप्रतिनिधि ने की सराहना
जिला पंचायत सदस्य राहुल कुमार ने दिवंगत किशन कन्याल ने बेटियों के असाधारण साहस और प्रेम की सराहना की। राहुल ने कहा कि कन्याल परिवार की बेटियों ने आज पूरे समाज को एक बड़ा संदेश दिया है। यह घटना सिर्फ अंतिम संस्कार नहीं है, बल्कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे को चरितार्थ करने वाली एक सच्ची मिसाल है।


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