इथियोपिया में एक ज्वालामुखी 12 हजार साल बाद अचानक रविवार को फट गया। इस विस्फोट से उठने वाला धुआं करीब 15 किमी ऊंचाई तक पहुंच गया और लाल सागर पार करते हुए यमन और ओमान तक फैल गया। यह विस्फोट अफार इलाके में हेली गुब्बी ज्वालामुखी में हुआ। यह इतना पुराना और शांत ज्वालामुखी था कि आज तक इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था। इस घटना में किसी की मौत नहीं हुई है लेकिन यमन और ओमान की सरकार ने लोगों को सावधानी बरतने को कहा है, खासकर जिन्हें सांस की तकलीफ रहती है। आसमान में फैले राख की वजह से हवाई जहाजों को भी दिक्कत हो रही है। भारत के ऊपर भी राख आने की आशंका है, इसलिए दिल्ली-जयपुर जैसे इलाकों में उड़ानों पर नजर रखी जा रही है। अधिकारियों ने बताया कि ज्वालामुखी विस्फोट के कारण सोमवार को कोच्चि हवाई अड्डे से रवाना होने वाली दो अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर दी गईं। राख के कण इंजन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इस लिए इंटरनेशनल विमानन प्रोटोकॉल के तहत सतर्कता बरती जा रही है। DGCA ने गाइडलाइन जारी की अनुमान है कि राख का यह बादल सोमवार रात तक दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के इलाकों में भी पहुंच सकता है। इस बीच भारत के DGCA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने एयरलाइनों के लिए विस्तृत गाइडलाइंस जारी की हैं। निर्देशों में कहा गया है कि एयरलाइंस राख से प्रभावित क्षेत्रों और फ्लाइट लेवल्स से हर हाल में बचें, और ताजा एडवाइजरी के हिसाब से रूटिंग, फ्लाइट प्लानिंग और फ्यूल मैनेजमेंट में बदलाव करें। DGCA ने यह भी कहा है कि अगर किसी विमान को राख के संपर्क में आने का जरा भी संदेह हो, जैसे इंजन की परफॉर्मेंस में गड़बड़ी, केबिन में धुआं या बदबू तो एयरलाइन को इसकी जानकारी तुरंत देनी होगी। अगर राख हवाईअड्डे के संचालन को प्रभावित करती है, तो संबंधित एयरपोर्ट को रनवे, टैक्सीवे और एप्रन की तुरंत जांच करनी होगी। हेली गुब्बी ज्वालामुखी फटने से जुड़ीं 3 तस्वीरें… ज्वालामुखी में और विस्फोट होने की आशंका वैज्ञानिकों ने हजारों साल बाद ज्वालामुखी फटने की घटना को इस क्षेत्र के इतिहास की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक बताया है। गल्फ न्यूज के मुताबिक विस्फोट के साथ बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) भी निकला है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर को लेकर चिंता बढ़ गई है। एमिरात एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के चेयरमैन इब्राहिम अल जरवान ने कहा कि अगर ज्वालामुखी अचानक ज्यादा SO₂ छोड़ रहा है, तो यह बताता है कि अंदर दबाव बढ़ रहा है, मैग्मा हिल रहा है और आगे और विस्फोट हो सकता है। अल जरवान ने कहा, “यह घटना वैज्ञानिकों के लिए एक दुर्लभ मौका है, जिसमें वे एक ऐसे ज्वालामुखी को करीब से समझ सकते हैं, जो बहुत लंबे समय बाद जागा है।” हालांकि फिलहाल ज्वालामुखी शांत होता दिख रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि शील्ड वॉल्केनो में शुरुआती विस्फोट के बाद कभी-कभी दोबारा धमाके भी हो सकते हैं। ज्लालामुखी फटने का वैज्ञानिक महत्व जानिए हेली गुब्बी, अफार रिफ्ट का हिस्सा है। यह एक ऐसा इलाका जहां धरती की टेक्टॉनिक प्लेटें लगातार खिसक रही हैं। इस क्षेत्र के दूसरे ज्वालामुखी, जैसे एर्टा एले को पहले से ही लगातार मॉनिटर किया जाता है। ऐसे में हेली गुब्बी की अचानक सक्रियता इस बात पर सवाल उठाती है कि धरती के भीतर मैग्मा में कौन से गहरे बदलाव हो रहे हैं। यह घटना अंतरराष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली और सीमा पार जारी होने वाली राख संबंधी चेतावनियों के महत्व को भी सामने लाती है। ज्वालामुखी की राख हजारों किलोमीटर दूर तक जा सकती है, इसलिए कई देशों की एजेंसियां मिलकर इसकी ट्रैकिंग कर रही हैं। शोधकर्ता अब हेली गुब्बी को भविष्य के अध्ययन के एक प्रमुख स्थल के रूप में देख रहे हैं। वे यह समझने की कोशिश करेंगे कि हजारों साल शांत रहने के बाद यह ज्वालामुखी अब क्यों सक्रिय हुआ। इस तरह के अध्ययन टेक्टॉनिक रिफ्ट वाले इलाकों में स्थित शील्ड ज्वालामुखियों के व्यवहार के बारे में नए संकेत दे सकते हैं। वैज्ञानिक जब ऐसे दुर्लभ विस्फोटों का अध्ययन करेंगे, तो उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि उन ज्वालामुखियों का व्यवहार कैसा होता है जो टेक्टॉनिक रिफ्ट (जहां धरती की प्लेटें अलग हो रही होती हैं) वाले इलाकों में मौजूद हैं।
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