सहरसा के राजेन्द्र मिश्र महाविद्यालय में शिक्षा संकाय और आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (IQAC) के संयुक्त तत्वावधान में एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का विषय “इंडियन नॉलेज सिस्टम : रिवाइवल ऑफ भारतीय ज्ञान परंपरा” था। इस सेमिनार का उद्घाटन भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कुलपति प्रो. डॉ. विमलेन्दु शेखर झा ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. डॉ. अशोक कुमार ठाकुर, महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो. डॉ. गुलरेज रौशन रहमान और आयोजन सचिव डॉ. ललित नारायण मिश्र मंच पर उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. डॉ. विमलेन्दु शेखर झा ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 भारत की पहली स्वदेशी शिक्षा नीति है। यह पाश्चात्य मॉडल से हटकर भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा कि माता प्रथम गुरु होती है और प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था अनुभवात्मक एवं व्यावहारिक ज्ञान पर आधारित थी। यह व्यवस्था समग्र व्यक्तित्व विकास में सहायक थी। उन्होंने महाविद्यालय परिसर में महापुरुषों के साथ-साथ कोसी क्षेत्र के पं. मंडल मिश्र, विदूषी भारती, संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं और कारू खीरहरि जैसी विभूतियों के चित्र लगाने की आवश्यकता पर भी बल दिया। शैक्षणिक सत्र में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के डीडीई विभागाध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार मिलन ने बीज वक्ता के रूप में प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षक-शिष्य संबंधों की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने आधुनिक शिक्षा में इसे अपनाने की आवश्यकता बताई। संसाधन विशेषज्ञ के रूप में जेडएचटीटी कॉलेज, दरभंगा के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. एम. ए. हासमी ने कहा कि समय के साथ हमने शिक्षा के मूल्यों को खो दिया है, जिन्हें पुनः स्थापित करना आवश्यक है। इग्नू, सहरसा के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. मिर्जा निहाल अहमद बेग ने भारतीय परंपराओं और संस्थाओं को पाठ्यक्रम से जोड़ने पर जोर दिया। बी.एन.एम.यू., मधेपुरा के शिक्षा संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सुरेन्द्र कुमार ने नई शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान परंपरा के समावेशन को और मजबूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। प्रधानाचार्य प्रो. डॉ. गुलरेज रौशन रहमान ने कहा कि हमारी प्राचीन शिक्षा में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगिकी और जीवन मूल्यों के तत्व निहित हैं, जिन्हें पुनर्जीवित करने की जरूरत है। इसी अवसर पर प्रधानाचार्य द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन कुलपति के करकमलों से किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शुभ्रा एवं डॉ. लक्ष्मीकुमार कर्ण ने संयुक्त रूप से किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अक्षय कुमार चौधरी ने किया। सेमिनार में विभिन्न महाविद्यालयों के प्राचार्य, शिक्षक, शोधार्थी एवं बड़ी संख्या में शिक्षाविद उपस्थित रहे।
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