हाईकोर्ट व राजभवन ने मांगा जवाब
बिहार एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह की नियुक्ति पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। जनवरी 2025 में हुए चयन के दौरान आवेदन-पत्र में विभागीय कार्रवाई, विजिलेंस से जुड़ी जानकारी और पहले मिले दंड का विवरण देना जरूरी था। आरोप है कि इन महत्वपूर्ण बातों को इन्होंने छुपा लिया। इसी आधार पर एक अन्य उम्मीदवार डॉ. आर.के. बघेरवाल ने पटना हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। उनका आरोप है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की अनुशासनिक कार्रवाई और पंजाब–हरियाणा हाईकोर्ट के जमानती वारंट जैसी गंभीर बातों को आवेदन में छुपाया गया। लंबित कार्रवाई उनकी कुलपति नियुक्ति में दिए गए ‘क्लीन सर्विस रिकॉर्ड’ के दावे पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। हाईकोर्ट व राजभवन ने मामले में नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हाईकोर्ट से निष्पादित केस को प्रबंधन बोर्ड में लंबित दिखाकर औपबंधिक वेतन निर्धारण
पदोन्नति में पात्रता, तिथि और नियम विवाद डॉ. इंद्रजीत सिंह की प्रिंसिपल साइंटिस्ट पद पर पात्रता तब विवादित हुई जब CCS HAU (चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी) ने उनकी पदोन्नति की तिथि सरकार के निर्देश से 01.01.1996 से बदलकर 27.07.1998 कर दी। जिससे डॉ. सिंह 18.01.2000 तक आवश्यक 3 वर्ष की सेवा पूरी नहीं कर पाए और भर्ती नियमों के तहत अयोग्य घोषित हो गए। इसी आधार पर 19.08.2003 को ऑर्डर जारी हुआ कि उनकी नियुक्ति क्यों न रद्द की जाए। जिसे उन्होंने कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट की रोक के चलते वे 21 साल सेवा में बने रहे और ICAR से 2022 में रिटायर भी हो गए। ICAR की अनुशासनिक कार्रवाई छुपाने का आरोप
ICAR द्वारा 2003 में जारी शोकॉज नोटिस पर कार्रवाई आज भी जारी है। इसपर 25 अगस्त 2003 में हाईकोर्ट से अंतरिम रोक लगी थी। 8 जुलाई 2024 को हाईकोर्ट ने मामला निपटाते हुए कहा कि चूंकि डॉ. सिंह रिटायर हो चुके हैं, इसलिए अब ICAR तय करे कि कार्रवाई आगे बढ़े या उन्हें ‘वैध सेवानिवृत्ति और पेंशन लाभ’ दिए जाएं। दिसंबर 2024 से ICAR ने लंबित जांच प्रक्रिया जारी रखी है। पत्र भी लिखा है।
कुलपति का जवाब- ICAR ने हिसार यूनिवर्सिटी से पत्राचार किया है। मुझे अबतक कोई पत्र नहीं मिला। यह तो सिस्टम की गलती है।
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