‘आपत्तिजनक’ पोस्ट मामले में एक्टर एजाज खान को अग्रिम जमानत, कोर्ट ने कहा- पासपोर्ट जमा करें
दिल्ली हाई कोर्ट ने अभिनेता एजाज खान को अग्रिम जमानत दे दी. दिल्ली पुलिस के साइबर थाने ने सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट को लेकर एक महिला और उसके बेटे, जो एक यूट्यूबर हैं, की शिकायत पर मुकदमा दायर किया था. इस मामले में जमानत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान द्वारा अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त ‘भाषण’ और ‘अभिव्यक्ति’ की स्वतंत्रता का इस्तेमाल उसके द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के दायरे में ही किया जाना चाहिए. जब भाषण अपमान, अपमान या उकसावे की सीमा पार कर जाता है, तो यह गरिमा के अधिकार से टकराता है.
जस्टिस रविंदर डुडेजा ने एजाज खान को इस शर्त पर अग्रिम जमानत दे दी कि अगर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है तो वह 30,000 रुपये का जमानत बांड और एक जमानत राशि जमा करेंगे. दिल्ली हाई कोर्ट ने एजाज खान को अग्रिम ज़मानत देते हुए कहा कि डिजिटल उपकरण पहले से ही बॉम्बे पुलिस के पास थे और याचिकाकर्ता ने जांच में सहयोग करने और FSL को अपनी आवाज़ का नमूना देने का वादा किया था, जिससे मामला उसके पक्ष में गया.
जस्टिस रविंदर डुडेजा ने 9 अक्टूबर को आदेश दिया कि गिरफ्तारी की स्थिति में याचिकाकर्ता को 30,000 रुपये के निजी मुचलके और उतनी ही राशि की ज़मानत देने पर रिहा किया जाएगा, जो गिरफ्तारी अधिकारी या जांच अधिकारी या SHO की संतुष्टि पर निर्भर करेगा. अग्रिम जमानत देते हुए कोर्ट ने कुछ शर्तें भी लगाईं, जिनमें यह भी शामिल है कि अभियुक्त को अपना पासपोर्ट जांच अधिकारी के समक्ष जमा करना होगा और निचली अदालत की पूर्व अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ना होगा.
जांच एजेंसी को सहयोग करना होगा
निर्देश मिलने पर उसे जांच एजेंसी को अपनी आवाज़ के नमूने उपलब्ध कराने में सहयोग करना होगा. याचिका का निपटारा करते हुए कोर्ट ने सोशल मीडिया का उपयोग सावधानी से करने की सलाह दी. जस्टिस डुडेजा ने कहा कि इंटरनेट ने अपने प्रसार को तीव्र करके ज्ञान को सहज सुलभ बना दिया है. इसके साथ ही इसने हर आयु वर्ग के एक बड़े दर्शक वर्ग को भी अपने साथ जोड़ लिया है.
इस प्रकार इंटरनेट पर कोई भी सामग्री पारदर्शी होती है और व्यापक दर्शक वर्ग के लिए सुलभ होती है. इंटरनेट पर प्रत्येक सामग्री को बहुत सावधानी से अपलोड किया जाना चाहिए, खासकर जब अपलोडर का दर्शक वर्ग बड़ा हो. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता का बेटा दोनों ही सोशल मीडिया पर प्रभावशाली हैं और उनके पास एक बड़ा दर्शक वर्ग है.
सोशल मीडिया का उपयोग सावधानी से करना चाहिए
दर्शक उनके द्वारा पोस्ट की गई सामग्री से प्रभावित हो सकते हैं और इसलिए अगर उनके द्वारा पोस्ट करने के बाद सामग्री हटा भी दी जाती है, तो भी वह बड़ी संख्या में दर्शकों तक पहुंचेगी, जिससे उसी सामग्री को पुनः प्रकाशित किया जाएगा/उनके अनुयायियों के बीच उस सामग्री पर बहस छिड़ जाएगी, जिसका असर अंततः पीड़ित पर पड़ेगा.
जस्टिस डुडेजा ने कहा कि इसलिए, किसी भी सामग्री को पोस्ट करने से पहले सोशल मीडिया का उपयोग सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि इससे न केवल उस व्यक्ति विशेष पर, बल्कि उसके संबंधित प्रशंसकों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. बता दें कि अभिनेता एजाज़ खान की अग्रिम ज़मानत याचिका वकील खालिद अख्तर और मोहम्मद शादान के माध्यम से दायर की गई थी. उनकी याचिका इससे पहले 5 अगस्त को निचली अदालत ने खारिज कर दी थी.
यह मामला याचिकाकर्ता द्वारा इंस्टाग्राम पर एक वीडियो को दोबारा पोस्ट करने के बाद सामने आया था, जिसे मूल रूप से शिकायतकर्ता के बेटे ने “ए डे विद नजयाज़ खान” शीर्षक से बनाया और यूट्यूब पर अपलोड किया था. यह कहा गया था कि उक्त वीडियो में याचिकाकर्ता के लिए कई आपत्तिजनक, मानहानिकारक और अश्लील संदर्भ हैं, जिनमें अपमानजनक टिप्पणियां, अश्लील इशारे और झूठे आरोप शामिल हैं.
खान को नोटिस जारी होने की जानकारी नहीं थी
याचिकाकर्ता ने न तो वीडियो बनाया, न ही उसकी स्क्रिप्ट लिखी और न ही उसका समर्थन किया, और यह दोबारा पोस्ट किए जाने से पहले ही सार्वजनिक डोमेन में था. याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने दोबारा पोस्ट की गई सामग्री को तुरंत हटा दिया. पुलिस ने एजाज खान को कई बार जांच में शामिल होने के लिए बुलाया, लेकिन वह नहीं आए.
यह भी कहा गया कि खान को पहले नोटिस जारी होने की जानकारी नहीं थी. उन्हें ट्रायल कोर्ट में बहस के दौरान ही इसकी जानकारी हुई. यह भी कहा गया कि दूसरे नोटिस के बाद खान ने ईमेल भेजकर पेश होने के लिए कुछ समय मांगा और वह ठाणे, महाराष्ट्र में दर्ज एक अन्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार जांच में शामिल हुए हैं.
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