अररिया में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के स्थान पर लाए गए नए ‘विकसित भारत गारंटी रोजगार और आजीविका मिशन अधिनियम बिल’ के विरोध में सैकड़ों मजदूरों ने प्रदर्शन किया। जन जागरण शक्ति संगठन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय और नरेगा संघर्ष मोर्चा ने संयुक्त रूप से यह प्रदर्शन आयोजित किया। अररिया बस स्टैंड से धरना स्थल तक एक रैली निकाली गई, जिसके बाद सभा हुई और जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा गया। सरकार को मनमाने ढंग से काम शुरू करने या रोकने की छूट प्रदर्शनकारियों ने नए कानून को मजदूर-विरोधी और संविधान-विरोधी बताया। उनका आरोप है कि मनरेगा में मजदूरों को काम की मांग पर 100 दिनों का गारंटीड रोजगार मिलता था, लेकिन नए कानून में यह अधिकार छीन लिया गया है। इसके तहत सरकार को मनमाने ढंग से काम शुरू करने या रोकने की छूट मिल गई है। कानून से मजदूरों की आजीविका होगी प्रभावित विरोध प्रदर्शन में यह भी कहा गया कि खेती के मुख्य सीजन में सालाना 60 दिनों तक काम रोका जा सकेगा, जिससे मजदूरों की आजीविका प्रभावित होगी। फंडिंग पैटर्न में भी बड़ा बदलाव किया गया है। पहले कुल खर्च का लगभग 90% केंद्र सरकार वहन करती थी, लेकिन अब 40% बोझ राज्यों पर डाला गया है। बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए यह हजारों करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय भार होगा। ग्राम सभाओं के अधिकारों में भी कटौती की गई है। अब काम की प्राथमिकता ग्राम सभा द्वारा नहीं, बल्कि ‘विकसित भारत स्टैक’ के अनुसार तय होगी। “संविधान बचाओ, मजदूर बचाओ” के लगे नारे सभा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने नए कानून की प्रतियां प्रतीकात्मक रूप से जलाईं और “मनरेगा पर हमला नहीं चलेगा”, “काम का अधिकार वापस करो”, “संविधान बचाओ, मजदूर बचाओ” जैसे नारे लगाए। ज्ञात हो कि संसद ने 18 दिसंबर की रात राज्यसभा में यह बिल पास किया था। हालांकि नए कानून में 125 दिनों के रोजगार की गारंटी का दावा किया गया है, लेकिन विरोधी इसे केवल दिखावा बता रहे हैं। बिहार में 50 लाख परिवार मनरेगा पर निर्भर जन जागरण शक्ति संगठन के अध्यक्ष कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण कानून को बिना व्यापक चर्चा के जल्दबाजी में पास करना सरकार की मनमानी है। उन्होंने बताया कि बिहार में 50 लाख और देश में 5 करोड़ परिवार मनरेगा पर निर्भर हैं। मांडवी देवी ने कहा कि यह अधिकार छीनकर सरकार दो महीने योजना बंद रखेगी, जिससे 100 दिनों का काम भी मुश्किल हो जाएगा। मायानंद ऋषिदेव ने सवाल उठाया कि अगर 125 दिन देने हैं तो कानून बदलने और महात्मा गांधी का नाम हटाने की क्या जरूरत? रैली में दीपनारायण पासवान, पवन कुमार सहित सैकड़ों मजदूर शामिल हुए। देशभर में इस बिल के खिलाफ विरोध तेज हो रहा है।
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