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अनंत सिंह के बेटे नीतीश-ललन से मिले, राजनीति में आएंगे:जेल से बेटों को पॉलिटिक्स की दे रहे ट्रेनिंग, क्यों राजनीति छोड़ सकते हैं बाहुबली

बाहुबली विधायक अनंत सिंह के बेटे क्या राजनीति में आने वाले हैं। यह चर्चा CM नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से उनके परिवार की मुलाकात के बाद होने लगी है। साथ ही दुलारचंद यादव हत्याकांड में दो महीने से जेल में बंद अनंत सिंह के बाहर आने की अटकलें भी लगने लगी हैं। उनके समर्थक जल्द बाहर आने का दावा कर रहे हैं। अनंत सिंह क्या अपनी राजनीतिक विरासत बेटे को सौंपने वाले हैं। वह अपनी राजनीतिक पारी को क्यों खत्म कर सकते हैं। मतलब बेटे को क्यों सौंप सकते हैं। जानेंगे, आज के एक्सप्लेनर बूझे की नाही में…। अनंत सिंह के बेटे के राजनीति में आने के 2 संकेत 1. पहले ललन सिंह, फिर नीतीश कुमार से मिलना 26 दिसंबर को अनंत सिंह की पत्नी और पूर्व विधायक नीलम देवी अपने दोनों बेटों अंकित और अभिषेक के साथ पटना में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह से मुलाकात की। खास बात है कि दोनों की मुलाकात के कुछ घंटे बाद उसी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ललन सिंह के घर पहुंचे। 15 मिनट तक दोनों नेताओं की बातें हुई। 2. जेल गए अनंत तो बेटे ने संभाली प्रचार की कमान 1 नवंबर की आधी रात को पटना पुलिस ने अनंत सिंह को दुलारचंद यादव हत्याकांड में गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद से अनंत सिंह जेल में बंद हैं। उनकी गिरफ्तारी वोटिंग के 5 दिन पहले हुई थी। जैसे ही अनंत सिंह जेल गए, चुनाव प्रचार की कमान उनके बेटों ने संभाल ली। अंकित और अभिषेक ने ललन सिंह के साथ चुनाव प्रचार किया और अनंत सिंह चुनाव जीत गए। 3 पॉइंट में अनंत सिंह क्यों विरासत बेटे को सौंप सकते हैं… 1. बढ़ती उम्र और कानूनी पचड़ा चुनावी हलफनामे के मुताबिक, अनंत सिंह 64 साल के हो चुके हैं। 28 क्रिमिनल केस पेंडिंग हैं। अगर तय समय पर अगला विधानसभा चुनाव हुआ तो 2030 में होगा। तब तक अनंत सिंह 69 साल के हो जाएंगे। सीनियर जर्नलिस्ट रमाकांत चंदन कहते हैं, ‘अगले चुनाव तक अनंत सिंह की उम्र ज्यादा हो चुकी होगी। अब बेटों की उम्र भी 25 साल हो गई है। इसलिए वह बहुत सलीके से आगे की चाल चल रहे हैं। वह जेल जाने से पहले ही धीरे-धीरे बेटों को पब्लिक के बीच करने लगे थे। कभी घोड़े की सवारी कराते थे तो कभी साथ-साथ घूमाते थे।’ रमाकांत चंदन कहते हैं, ‘अनंत सिंह जानते हैं कि हम कभी भी किसी केस में फंस सकते हैं। इसलिए समय रहते सेकंड लाइन तैयार करनी चाहिए। यही कारण है कि वह बेटों को लोगों के साथ-साथ नेताओं से भी मिला रहे हैं।’ रमाकांत चंदन कहते हैं, ‘अनंत सिंह की पहचान बाहुबली और विवादित नेता की रही है। इसलिए वह बेटों को सामने लाकर कोशिश कर सकते हैं कि नई पीढ़ी, नया चेहरा। उनकी तुलना में बेटों की इमेज सॉफ्ट है। इससे नए वोटर जुड़ सकते हैं और JDU को भी आलोचना का सामना नहीं करना पड़ेगा।’ दुलारचंद हत्याकांड में हो सकती है उम्रकैद 2. बाढ़-मोकामा में परिवार की पकड़ को बनाए रखना बीते 35 साल में मोकामा विधानसभा में अनंत सिंह परिवार का दबदबा है। सिर्फ एक बार 2000 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। परिवार का असर सिर्फ मोकामा ही नहीं, बाढ़ और इससे सटे मुंगेर, तारापुर, जमालपुर, शेखपुरा, बरबीघा, लखीसराय और सूर्यगढ़ा विधानसभा सीटों पर भी है। 3. भविष्य की राजनीतिक सुरक्षा चुनावी हलफनामे के मुताबिक, अनंत सिंह पर 28 क्रिमिनल केस है। बिहार यूनिवर्सिटी के प्रो. प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘अनंत सिंह राजनीति की शक्ति को जानते हैं। राजनीति में परिवार का कोई सदस्य रहने से मुश्किल समय में राजनीतिक संरक्षण मिल सकता है। प्रशासन तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। घर का कोई राजनीति में रहेगा तो पार्टी नेतृत्व से संपर्क बना रहेगा।’


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