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अखिलेश पर भड़के धनंजय, कहा- सपा सांसदों से माफी मंगवाऊंगा:कोडीन भैया कहने पर अभय सिंह को चैंलेज, दम हो तो नाम लें

‘कफ सिरप के अंतरराष्ट्रीय अवैध कारोबार को देखते हुए मैंने CBI जांच की मांग की है। संसद में सपा सांसदों ने कफ सिरप का मुद्दा उठाते हुए झूठे तथ्य रखे। मैं इसे लेकर लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिख रहा हूं, जिसमें सपा सांसदों के झूठे तथ्य की ओर ध्यान दिलाकर सदन में उनसे माफी की मांग करूंगा। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव वन डिस्ट्रिक, वन माफिया की बात कर रहे हैं। क्या उन्हें अपना कार्यकाल याद नहीं, जब उन्होंने वन डिस्ट्रिक वन नकल माफिया पैदा कर दिया था। प्रदेश के लाखों युवाओं का भविष्य खराब कर दिया था।’ यह बात दैनिक भास्कर से विशेष इंटरव्यू में धनंजय सिंह ने कही। यूपी से लेकर बांग्लादेश तक फैले कोडीन कफ सिरप मामले में पहली बार धनंजय ने खुलकर किसी मीडिया हाउस से बात की। उन्होंने बताया कि कफ सिरप मामले में गिरफ्तार आलोक सिंह और अमित सिंह टाटा को कैसे जानते हैं? गोसाईंगंज के विधायक अभय सिंह, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और सीएम योगी को लेकर भी खुलकर बात की। साथ ही जिला पंचायत और विधानसभा चुनाव को लेकर अपने पत्ते खोले। पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल : आपने कफ सिरप मामले की जांच CBI से कराने की मांग की थी?
धनंजय सिंह : कफ सिरप मामला अंतरराष्ट्रीय हो चुका है, क्योंकि इसमें बांग्लादेश का भी नाम आया है। इसी वजह से मैंने CBI जांच की मांग की। साथ ही इस केस में मनी लॉन्ड्रिंग को देखते हुए ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) से भी जांच कराने की मांग की थी। क्योंकि, ये पूरा मामला ही तस्करी से जुड़ा है। केस भी मनी लान्ड्रिंग का है। सवाल : अमित टाटा, आलोक सिंह को कैसे जानते हैं? आप पर सियासी हमले भी किए जा रहे?
धनंजय सिंह : कुछ मसखरा टाइप के लोग इस तरह की बात कर रहे। मैं आलोक को बचपन से जानता हूं। उनके भाई पुलिस सब-इंस्पेक्टर हैं और हमारे मित्र हैं। जहां आलोक सिंह रहते हैं, वहां मेरी मौसी का घर है। मैं बचपन से आता-जाता रहा हूं। इस वजह से मेरी पहचान है। मैंने कभी भी इन संबंधों को खारिज नहीं किया। अब आलोक सिंह क्या करते हैं, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं। इस मामले में सरकार की ओर से बनी एसआईटी, एसटीएफ और ईडी जांच कर रही है। सारी सच्चाई जनता के सामने आ जाएगी। अमित सिंह टाटा, आलोक के मित्र हैं। कहीं से रिश्ते में भी आते हैं। साथ ही जौनपुर के रहने वाले हैं। हालांकि, ये बात मुझे बाद में पता चली। वाराणसी में सीनियर वकील शशिकांत राय के ये जूनियर रहे हैं। मेरा बनारस में एक केस चल रहा था। उसके सिलसिले में रेगुलर बनारस जाता था, तब इनसे मुलाकात होती थी। सवाल : अखिलेश यादव ने वन डिस्ट्रिक, वन माफिया कहते हुए तंज कसा, क्या कहेंगे?
धनंजय सिंह : सपा मुखिया को यह शोभा नहीं देता। जो व्यक्ति खुद एक अखबार के दफ्तर पर हमला करवा चुका हो, वो क्या नैतिकता की बात करेगा? ये वही सपा है, जिसने नकल अध्यादेश समाप्त किया था। सवाल : गोसाईंगंज विधायक अभय सिंह ‘कोडीन भैया’ बोलकर पूर्वांचल के बाहुबली पर कटाक्ष कर रहे?
धनंजय सिंह : यह सवाल तो आपको अभय सिंह से करना चाहिए। इसका जवाब वहीं दे सकते हैं कि उनका इशारा किसकी ओर था? मैं तो कह रहा हूं कि किसी में साहस हो तो नाम लेकर पूछे। सवाल : सपा सांसदों ने लोकसभा में कफ सिरप से काली कमाई और मौत का मुद्दा उठाया, क्या कहेंगे?
धनंजय सिंह : आप सड़क पर तो मसखरापन और मिमिक्री कर सकते हैं, लेकिन सदन में इस तरह का हल्का वक्तव्य नहीं देना चाहिए। सपा के तीनों सांसदों ने सदन में झूठे तथ्य रखे। साहस था, तो मेरा नाम लेकर बोलते। यूपी सरकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस पर क्लियर किया है। इससे साफ है कि कोडीन सिरप से यूपी में कोई मौत नहीं हुई। ऐसे में तीनों सपा सांसदों को सदन में माफी मांगनी चाहिए। सवाल : अभय ने आप पर अपने करीबी सरायरासी गांव के संतोष सिंह की हत्या कराने का आरोप लगाया है?
धनंजय सिंह : बहुत अच्छा सवाल पूछा आपने। गुड्‌डू मुस्लिम, जो अभी पुलिस का वांटेड है। उसके साथ मिलकर अभय ने 15 जनवरी, 1992 को जौनपुर के महाराजगंज में पेट्रोल पंप पर 13 हजार की लूट की थी। इसमें वह अरेस्ट रहे और जौनपुर जेल में बंद रहे। इनका एक कॉलेज है। उसके मैनेजमेंट को लेकर सरायरासी गांव के लोगों से इनकी रंजिश थी। अभय सिंह ने इसी मामले में उन लोगों को फंसाने के लिए गुड्‌डू मुस्लिम की मदद से संतोष सिंह की हत्या कराई और मेरा नाम उछाल दिया। सवाल : एक मर्डर अभिषेक सिंह का हुआ था, यूनिवर्सिटी में किसी टेंडर का मामला था?
धनंजय सिंह : अभय सिंह ने झूठ बोला है। उस घटना के कई चश्मदीद जीवित हैं। आप खुद इसकी एफआईआर निकालें। इन्होंने समझौते किए हैं। खुद हत्या कराई। इन्होंने लाशों पर समझौते कराए। यूनिवर्सिटी के कई क्षत्रीय लड़के मरे हैं। एक आजमगढ़ के अजय सिंह थे। वो हबीबउल्ला हॉस्टल में रहते थे। उनकी हत्या अपने खास शूटर धनंजय फौजी से कराई और मुझे बदनाम किया। सवाल : अभय सिंह कहते हैं कि धनंजय का लक्ष्य हमेशा से धन लोलुपता का रहा?
धनंजय सिंह : लखनऊ यूनिवर्सिटी में इंट्रेंस टेस्ट होता था। मैंने इलाहाबाद-लखनऊ के इंट्रेंस टेस्ट को क्वालीफाई किया। लेकिन, मैंने और मेरे साथियों ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया। 1992 में इन्होंने बस्ती में अपने मामा मदन सिंह के साथ लूट की थी। यूनिवर्सिटी में आए तो एक-दो रुपए के लिए झगड़ा करते थे। हमारे एक साथी थे कालीचरण, उन्हें लेकर बाइक से एग्जाम दिलाने गए और वहां झगड़ा कर लिया। कट्‌टे से गोली चला दी। 307 का मुकदमा दर्ज हुआ। हमारे परिवार के आदेश सिंह वकील रहे हैं। पहला मुकदमा इन पर दर्ज हुआ। हर घटना में वही सरगना और गैंग लीडर रहे हैं। मैं इस व्यक्ति के ऊपर कुछ बोलना नहीं चाहता था, लेकिन इसने मुझे मजबूर किया। सवाल : 2002 में बनारस पर आप पर जानलेवा हमला हुआ। आपने अभय सिंह को आरोपी बनाया, क्यों?
धनंजय सिंह : मुझे विश्वास नहीं कि मेरे ऊपर अभय सिंह हमला करा सकते हैं। कई लोग मुझसे ऐसा कह रहे थे, लेकिन मैं भरोसा नहीं कर पा रहा था। क्योंकि, मैंने उसकी जान बचाई थी। ये बात 1995 की है। एक स्कूल में सीनियर सुनील गुप्ता को लेकर अभय गए थे। सुबह 7 बजे की बात है। मुझे जगाकर ले गया था। वहां उसने कट्‌टे से गोली चला दी। पब्लिक ने पकड़ लिया और मारने लगे। उसके सभी साथी भाग गए थे। मैंने किसी तरह लड़ते-झगड़ते भीड़ से बचाकर इसे निकाला था। मेरे भी बच्चे हैं और उनके भी बच्चे हैं, कसम खाकर पूछ सकते हैं। बहुत सी बातें हैं, मैंने खोला, तो समाज में बेनकाब हो जाएंगे। सवाल : बनारस जानलेवा हमले से जुड़े मामले में आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया?
धनंजय सिंह : ये अनोखा केस है। गैंगस्टर में गैंग लीडर अभय सिंह थे। पुलिस की जांच में गैंग लीडर ही केस से निकाल दिया जाता है। ये 2002 में ये बसपा से चुनाव लड़े थे, हालांकि हार गए थे। इन्होंने बनारस में मेरे ऊपर गोली चलाई थी। उनका साला भी था। मेरे हाथ में चोट आई और मेरे साथी की आंख चली गई। फिर 11 अक्टूबर, 2002 में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। किसी भी समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया। हमने समर्थन वापस ले लिया। मैं निर्दलीय विधायकों का प्रवक्ता था। सरकार के खिलाफ पहला बयान दिया था। इस कारण सरकार हम लोगों से नाराज थी। अचानक 13 अक्टूबर को अभय सिंह ने बनारस के मेरे प्रकरण में नाटकीय ढंग से आत्मसमर्पण कर दिया। उसने झूठे तथ्य बनाने के लिए अपना और अपने साले का एक्सीडेंट दिखा दिया। दोनों एक सरकारी पीएचसी में भर्ती हो गए। आप सोच सकते हैं, जो विधानसभा का चुनाव लड़ा हो और उसका एक्सीडेंट हो जाए तो किसी को पता न चले। उनके पिता को भी इस एक्सीडेंट का पता नहीं चला। फिर बनारस पुलिस ने अभय सिंह के पिता को गिरफ्तार कर लिया। मैंने ही पुलिस को बोलकर उन्हें छुड़ाया। क्योंकि, वे लखनऊ हॉस्टल आते रहते थे। मैं आज भी उनका सम्मान करता हूं। मुझे पता था कि कोई पिता अपने बेटे को गोली चलाने के लिए नहीं कहेगा। वह फर्जी कागज तैयार करने के लिए अस्पताल में भर्ती हुआ था। सवाल : अभय सिंह आरोप लगाते हैं कि उन पर ज्यादातर मुकदमे धनंजय सिंह के दबाव में हुए?
धनंजय सिंह : झूठ बोलते हैं। वो हमेशा सरकार के करीबी रहे। मैं 2002 में विधायक बना। कुछ समय बाद ही सरकार से समर्थन वापस लेने पर मेरे, राजा भैया और कुंवर अक्षय प्रताप पर कई फर्जी मुकदमे लाद दिए गए। मुख्तार अंसारी और ये लोग उस समय सरकार का समर्थन कर रहे थे। हमारे ऊपर कई मुकदमे जौनपुर में दर्ज कराए। 2003 में सपा की सरकार बनी। 2004 में लोकसभा चुनाव को लेकर मेरी सरकार से अनबन हो गई। सरकार का समर्थन करने वाले सभी निर्दलीयों को मंत्री बनाया गया था। मैंने 2004 में लोकसभा का टिकट मांगा था। मुलायम सिंह ने इसका आश्वासन भी दिया था। बाद में बोला गया कि सपा से लड़ जाइए। मैं तैयार हुआ, लेकिन टिकट नहीं मिला। मैं लोजपा से लोकसभा चुनाव में उतर गया। सरकार विरोध में आ गई। फिर 2007 में जेडीयू से विधायक बना। 2009 में बसपा से सांसद चुना गया। लेकिन, 2011 में विवाद के चलते बसपा से निकाल दिया गया। मुझे जेल भेज दिया गया। बहनजी से मेरे अच्छे संबंध थे। मैंने अपने जिले में पार्टी को मजबूत भी किया था। लेकिन, कुछ लोगों ने बहनजी को मिसगाइड कर दिया था। इसके चलते उन्होंने मुझे पार्टी से निलंबित कर दिया। मैं तो बसपा पार्टी के डी रजिस्ट्रेशन के लिए चुनाव आयोग में भी गया था। क्योंकि कोई पार्टी जाति-धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकती। लेकिन, चुनाव आयोग से पता चला कि वह रजिस्ट्रेशन तो कर सकती है। डी रजिस्ट्रेशन का पावर उसके पास नहीं है। बाद में मैंने चुनाव आयोग को सशक्त बताने के लिए संसद में मामला भी उठाया था। सवाल : मुलायम सिंह और मौजूदा अखिलेश यादव में तुलनात्मक रूप से कौन ज्यादा अच्छा है?
धनंजय सिंह : दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। मुलायम सिंह वैसे नेता थे, जिनका पार्टी लाइन से बाहर भी आदर-सम्मान था। अयोध्या में रामसेवकों पर गोलीकांड के बाद भी उनकी हर पार्टी के लोगों में इज्जत थी। सदन में भी वे पक्ष-विपक्ष के विधायकों के लिए समान रूप से हैंडपंप और सड़कों का काम कराते थे। सवाल : मौजूदा सीएम योगी पर ठाकुरवाद का आरोप लगता है, क्या कहेंगे?
धनंजय सिंह : क्षत्रीय कभी जाति की राजनीति नहीं करता। मैं तो अक्सर पूर्व पीएम चंद्रशेखर जी का उदाहरण देता हूं। जब उन पर भी यही आरोप लगा, तो उन्होंने कहा था कि मैंने इसी कारण नाम से टाइटल हटा दिया। साथ में यह भी कहा कि मैं क्षत्रियों का नेता होता तो पूरे देश की स्थिति कुछ और होती। क्षत्रिय पूरे समाज को लेकर चलता है। उसे जब भी मौका मिला, चाहे वो वीपी सिंह हों, जिन्होंने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर ओबीसी को आरक्षण दिया। या फिर अर्जुन सिंह हों, जिन्होंने उच्च शिक्षा में आरक्षण लागू कर गरीब और समाज के उपेक्षित तबकों को अवसर दिया। सत्ता मिलने पर क्षत्रियों ने हमेशा ही न्याय किया है। क्षत्रियों की कोई ऐसी पार्टी नहीं, जो प्राइवेट लिमिटेड कंपनी या फैमिली लिमिटेड कंपनी हो। लोगों को पढ़ना चाहिए। क्षत्रियों का त्याग भी देखना चाहिए। सिर्फ आलोचना नहीं करनी चाहिए। आजादी के बाद राजपूत राइफल्स में कितने लाेग शहीद हुए, इसे भी देखना चाहिए। सवाल : मायावती, अखिलेश और सीएम योगी में से किसका कार्यकाल अच्छा लगा?
धनंजय सिंह : तीनों मुख्यमंत्रियों के दौर का समय अलग-अलग था। आज सोशल मीडिया का जमाना है। इससे परसेप्शन बन जा रहा है। बात ट्रांसपेरेंसी के रूप में काम करने की करें, तो इसमें मौजूदा सीएम योगी के कार्यकाल अच्छा मानूंगा। साथ ही बहन मायावती का भी कार्यकाल अच्छा रहा था। लेकिन, सबसे ज्यादा सवाल सपा के कार्यकाल में उठा। हमारे प्रदेश में आज भी किसान चाहता है कि उसका बच्चा पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी पा जाए। इसके लिए वो अपने बच्चों को इलाहाबाद, लखनऊ भेजकर यूपीएससी की तैयारी कराता है। हमने देखा है उस दौरान में जिन्होंने यूपीएससी के इंटरव्यू दिए, आज वो सरकारी स्कूल में टीचर बनकर पढ़ा रहे। हर साल 40-50 लाख छात्र यूपीएससी की परीक्षा देते हैं। लेकिन, सपा के कार्यकाल में यूपी सर्विस पब्लिक कमीशन को एक व्यक्ति का कमीशन बना दिया गया था। 2012 से 2017 के बीच में ऐसे-ऐसे यूपीएससी के सेंटर बनाए गए, जहां बोर्ड के सेंटर नहीं बनते थे। पारदर्शी सरकारें जनहित का काम करती थीं। यही कारण रहा कि सपा की 2014 और 2017 में दुर्दशा हुई। कोई भी सरकार किसी जाति विशेष या पार्टी विशेष की नहीं होती। प्रदेश के सभी लोगों की होती है। पद मिलता है और प्रदेश के मुखिया बनते हैं। इसलिए प्रदेश के हित में काम करना चाहिए। मायावती जी ने अच्छा काम किया। योगी आदित्यनाथ भी कर रहे। जरा भी गड़बड़ी हुई, तो परीक्षा कैंसिल करके फिर से कराई गई। सवाल : लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ने गए थे, क्या लक्ष्य लेकर गए थे?
धनंजय सिंह : मेरे दो ही लक्ष्य थे। पहला सपना कम्बाइंड डिफेंस सर्विस में जाने का था। सोचा था कि 8-10 साल फौजी के रूप में काम करूंगा। फिर आकर चुनाव लड़ूंगा। ये मेरा डे फर्स्ट से लक्ष्य तय था। मेरे पिता जीवित हैं। चाहें, तो आप पूछ सकते हैं। पहला सपना तो नहीं पूरा हुआ। लेकिन, कोशिश है कि ट्यूटोरियल आर्मी के तौर पर भर्ती होकर ये इच्छा पूरी करूंगा। सवाल : बाहुबली का तमगा कैसे लगा? क्या आपको ये तमगा पसंद है?
धनंजय सिंह : बाहुबली मीडिया का दिया हुआ तमगा है। मुकदमों की बात करें, तो बसपा सरकार में मुलायम सिंह पर विवेकाधीन कोष के दुरुपयोग पर एक दिन में 42 मुकदमे दर्ज हो गए। सरकार से समर्थन वापस लेने पर एक महीने के अंदर मुझ पर 12 मुकदमे लाद दिए गए थे। राजा भैया के पिता की अवस्था 75 साल थी, उन पर पोटा लगा दिया था। उनके घर से एके-47 की बरामदगी दिखा दी गई। जब सत्ता से लड़ रहे होते हैं, तो ऐसी एफआईआर दर्ज होती रहती हैं। सवाल : धनंजय का अगला सियासी कदम क्या होगा?
धनंजय सिंह : विधानसभा 2027 की तैयारी चल रही है। हालांकि, मेरे मामले में एक पेंच है। मेरा एक केस कोर्ट में लंबित है। फैसला आने पर ही कुछ तय होगा। इससे पहले जिला पंचायत का चुनाव है। मेरी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। सामान्य सीट रही तो वो फिर से चुनाव लड़ेंगी। सवाल : आपकी हर गाड़ी का नंबर 9777 है। इसकी कुछ खास वजह?
धनंजय सिंह : इसका भी एक बड़ा कारण है। 2007 की बात है, मैं तिरुपति के दर्शन करने गया था। वहां मैंने देखा कि तिरुमला ट्रस्ट की गाड़ियों का नंबर 9777 था। इसके बाद मैंने 2011 में 3 गाड़ियां खरीदीं। जब नंबर की बात आई, तो तिरुमला ट्रस्ट की गाड़ियों के आधार पर नंबर चुन लिया। तब से इसी सीरीज का नंबर लेता रहा हूं। । सवाल : आपकी और अभय सिंह की दोस्ती की कोई अच्छी यादें, जो याद हो?
धनंजय सिंह : अभय सिंह ने एक बात तो सही बोली कि छात्रावास आवंटन में उनकी भूमिका थी। उन्होंने मुझे मौसी का लड़का बोलकर हॉस्टल दिलाया था। हम लोगों से पहले वो यूनिवर्सिटी में अकेले थे। हम 3-4 लोग पहुंचे, तो एक अच्छा ग्रुप बन गया। हमारे वार्डन यूडी मिश्रा थे। मैं झूठ नहीं बोलूंगा, मेरे और अभय सिंह के बीच की कई अच्छी यादें थीं। मैं झूठ से बचता हूं। क्योंकि एक झूठ को छिपाने के लिए 10 झूठ बोलने पड़ते हैं। सवाल : इतनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद कैसे खुद को फिट रखते हैं?
धनंजय सिंह : मैं नियमित तौर पर व्यायाम करता हूं। नशे से दूर रहिए। स्वस्थ जीवन ही स्वस्थ मानसिकता का लक्षण है। मैं कभी भी अपने जीवन में विचलित नहीं हुआ। चाहे कितनी ही कठिनाई क्यों नहीं आई। कई बार सरकारों से लड़ा हूं। सवाल : प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवाओं की आर्थिक मदद करते हैं?
धनंजय सिंह : किसी को नौकरी मिल जाए, ये उसका भाग्य। हमारे साथ पढ़े लड़कों ने चार-चार बार इंटरव्यू दिए, लेकिन सिलेक्शन नहीं हुआ। शिक्षा ज्ञान के लिए होनी चाहिए, सिर्फ नौकरी के लिए नहीं। मैं मानता हूं कि हमारे जीवन में कुछ गलतियां हुई होंगी। युवा विद्रोही होता है। युवाओं से कहना चाहता हूं कि उन्हें धैर्य रखना चाहिए। सवाल : खाना बनाना आता है?
धनंजय सिंह : हां, मैं आज भी दाल-चोखा बना लेता हूं। अच्छी सब्जी भी बना लेता हूं। जब नॉनवेज खाता था तो बढ़िया बना लेता था। कुछ समय पहले नॉनवेज छोड़ दिया। सवाल : आपका झुकाव धार्मिक गतिविधियों की ओर हुआ। क्या ये पत्नी का प्रभाव है?
धनंजय सिंह : मैं जन्म से सनातनी हूं। 5-6 बार द्वादश ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर चुका हूं। ये बात जरूर है कि जब घर में सुख-शांति होती है तो उस तरह का वातावरण बनता है। वैसे भी गृहिणी लक्ष्मी होती है। उनकी पूजा-पाठ में रुचि रहती है। इसका असर भी दिखता है। ———————— ये खबर भी पढ़ें- कफ सिरप कांड में धनंजय सिंह का नाम क्यों, आरोपी अमित-आलोक से क्या संबंध योगी सरकार के ‘ऑपरेशन क्लीन’ ने यूपी में कोडीन युक्त कफ सिरप (फेंसिडिल) के देश के सबसे बड़े अवैध नेटवर्क की कमर तोड़ दी है। प्रदेश के 40 जिलों में ये नेटवर्क चल रहा था। अब तक सोनभद्र, गाजियाबाद और रांची से 3.50 लाख से ज्यादा शीशियां जब्त हो चुकी हैं। 128 एफआईआर दर्ज हैं। 1166 ड्रग लाइसेंस निरस्त किए गए। पढ़िए पूरी खबर…


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