अंदर नमाज, बाहर हमला… कौन हैं अहमदिया मुस्लिम, जिन पर पाकिस्तान में चली गोलियां?
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के खिलाफ जारी नफरत के बीच चेनाब नगर के बैतूल मेहदी पूजा स्थल के बाहर एक बंदूकधारी ने जमकर गोलीबारी की. इसमें सुरक्षा गार्डों समेत छह लोग घायल हो गए. हालांकि, पास में ही तैनात दो पुलिसकर्मियों ने जवाबी गोलीबारी में हमलावर मारा गया. इस घटना में घायल सभी लोग अहमदिया मुस्लिम समुदाय के बताए जा रहे हैं, जो हमेशा से पाकिस्तान में कट्टरपथियों के निशाने पर रहते हैं. सरकार भी इनका साथ नहीं देती है. इसी बहाने आइए जान लेते हैं कि मुस्लिम कितनी तरह के होते हैं और अहमदिया मुस्लिम कौन हैं?
वास्तव में इस्लाम को मानने वाले सभी लोग खुद को मुस्लिम कहते हैं पर इस्लामिक कानूनों और इस्लामिक हिस्ट्री की अपनी समझ के अनुसार ये मुस्लिम कई अलग-अलग पंथों में बंटे हैं. आमतौर पर मुस्लिम दो तरह के सुन्नी और शिया होते हैं. ये सुन्नी और सिया भी आगे कई पंथों में बंटे हैं. वैसे तो सुन्नी और शिया दोनों ही मानते हैं कि अल्लाह एक है. मोहम्मद साहब अल्लाह के दूत हैं और कुरान अल्लाह की भेजी किताब है. हालांकि, इन दोनों में पैगम्बर मोहम्मद साहब की मौत के बाद उनके उत्तराधिकार के मुद्दे को लेकर मतभेद है. साथ ही सुन्नी-शिया, दोनों के ही कानून भी अलग-अलग हैं.
सुन्नी मुस्लिम
पैगम्बर मोहम्मद साहब ने जिन तौर-तरीकों पर खुद अमल किया हो, उनको अपनाना सुन्नत या सुन्नी है. इन तरीकों को अपनाने वाले खुद को सुन्नी कहते हैं. एक अनुमान यह है कि दुनिया भर में करीब 80 फीसदी सुन्नी मुस्लिम हैं. सुन्नी मानते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद साहब के बाद उनके ससुर हजरत अबु बकर मुस्लिमों के नेता बने थे, जिनको खलीफा कहा गया. फिर अबु बकर के बाद हजरत उमर, हजरत उस्मान और हजरत अली उनके नेता बने. इनके बाद जो लोग आगे वे राजनीतिक रूप से ही मुस्लिमों के नेता कहे गए पर धार्मिक रूप से उनकी कोई खास अहमियत नहीं थी.

यूपी के दो स्थानों देवबंद और बरेली के नाम पर देवबंदी और बरेलवी नाम पड़ा.
पांच समूहों में बंटे
इस्लामिक कानूनों की व्याख्या के आधार पर सुन्नी मुख्यत: चार समूह में बंटे हैं. एक पांचवां समूह भी है, जो खुद को इन चारों से अलग मानता है. इन पांचों समूहों की आस्था में तो ज्यादा अंतर नहीं है पर मान्यता यह है कि इनके इमाम ने इस्लाम की सही व्याख्या की है. इनके चार अलग-अलग इमाम हुए इमाम अबू हनीफा, इमाम शाफई, इमाम हंबल और इमाम मालिक. इमाम अबू हनीफा को मानने वाले हनफी कहे जाते हैं. हालांकि हनफी मुस्लमि भी आगे दो समूहों में बंटे हैं. इनमें एक हैं देवबंदी और दूसरे बरेलवी.
देवबंदी और बरेलवी
यूपी के दो स्थानों देवबंद और बरेली के नाम पर देवबंदी और बरेलवी नाम पड़ा. 20वीं सदी के शुरू में मौलाना अशरफ अली थानवी और अहमद रजा खां बरेलवी ने अलग-अलग इस्लामिक कानून की व्याख्या की. अशरफ अली थानवी दारुल उलूम देवबंद मदरसे से संबंधित थे, जबकि अहमद रजा खां बरेलवी का संबंध बरेली से था. इनकी व्याख्या को मानने वाले हनफी सुन्नी मुस्लिम खुद को क्रमश: देवबंदी और बरेलवी मानते हैं.

इमाम मलिक के शिष्य शाफई सुन्नियों के एक और प्रमुख इमाम हैं.
मालिकी, शाफई और हंबली
सुन्नियों के एक और इमाम, इमाम मलिक के मानने वाले एशिया में कम पाए जाते हैं. इनकी महत्वपूर्ण किताब का नाम इमाम मोत्ता है. इमाम मलिक को मानने वाले उनके बताए नियमों को मानते हैं और ये ज्यादातर मध्य-पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका में मिलते हैं. इमाम मलिक के शिष्य शाफई सुन्नियों के एक और प्रमुख इमाम हैं. बड़ी संख्या में मुस्लिम उनके बताए नियमों को मानते हैं. ये भी ज्यादातर मध्य-पूर्व एशिया और अफ्रीकी देशों में मिलते हैं. इसी तरह से इमाम हंबल के नियमों को मानने वाले अपने आप को हंबली कहते हैं और ये कतर, कुवैत, सऊदी अरब, मध्य पूर्व और कई अफ्रीकी देशों में भी पाए जाते हैं.
सल्फी, वहाबी और अहले हदीस
सुन्नियों का एक समूह खासतौर पर किसी एक इमाम का अनुसरण नहीं करता. इनका मानना है कि शरीयत को समझने और ढंग से पालन करने के लिए सीधे कुरान व हदीस को पढ़ना चाहिए. इस मान्यता वाले लोगों को सल्फी, वहाबी और अहले हदीस आदि कहा जाता है. ये संप्रदाय इमामों के ज्ञान, शोध, अध्ययन और साहित्य की कद्र करते हैं पर इनका मानना है कि इन इमामों में से किसी एक का अनुयायी होना जरूरी नहीं है. सल्फी समूह ऐसे इस्लाम का प्रचार का इच्छुक है जो पैगम्बर मोहम्मद साहब के वक्त था. इस सोच को सेहरा इब्ने तैमिया और मोहम्मद बिन अब्दुल वहाबी ने आगे बढ़ाया था.
वहीं, भारत में गुजरात और महाराष्ट्र और पाकिस्तान के सिंध में मुस्लिम कारोबारियों के एक समूह को बोहरा कहा जाता है. बोहरा शिया भी होते हैं और सुन्नी भी. सुन्नी बोहरा जहां हनफी इस्लामिक कानून मानते हैं, वहीं दाऊदी बोहरा शिया समुदाय के करीब होते हैं.

पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम को आधिकारिक तौर पर इस्लाम से खारिज किया गया है.
अहमदिया मुस्लिम
ये हनफी इस्लामिक कानूनों का पालन करते हैं. भारत में पंजाब के कादियान में मिर्जा गुलाम अहमद ने इस समुदाय की स्थापना की थी. इसीलिए उनके नाम पर इन्हें अहमदिया कहा जाता है. इस पंथ के लोग मानते हैं मिर्जा गुलाम अहमद नबी का ही अवतार थे. वैसे मुस्लिमों के लगभग सभी समूह मानते हैं कि मोहम्मद साहब के बाद अल्लाब के दुनिया में भेजे गए दूतों का सिलसिला समाप्त हो गया पर अहमदिया मानते हैं कि मिर्जा गुलाम अहमद इस तरह के धर्म सुधारक थे, जो नबी का दर्जा पाते हैं. इसी मतभेद के कारण मुस्लिमों का एक बड़ा समूह अहमदिया को मुस्लिम नहीं मानता.
पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिम को आधिकारिक तौर पर इस्लाम से खारिज किया गया है. वैसे भारत और पाकिस्तान के अलावा ब्रिटेन में भी अहमदिया मुस्लिम अच्छी-खासी संख्या में हैं.
शिया मुस्लिम
शिया मुस्लिम पैगम्बर मोहम्मद साहब के बाद खलीफा नहीं, इमाम की नियुक्ति के समर्थक हैं. इनका मानना है कि पैगम्बर के बाद उनके असली उत्तराधिकारी उनके दामाद हजरत अली थे. पैगम्बर ने भी अली को वारिस घोषित किया था पर धोखे से हजरत अबू बकर को मुस्लिमों का नेता चुन लिया गया था. शिया मुस्लिम मोहम्मद साहब के बाद के पहले तीन खलीफा को अपना नेता ही नहीं मानते, बल्कि उनको गासिब यानी गड़पने वाला कहते हैं.
इस्ना अशरी, जैदिया, इस्माइली
शिया मुस्लिमों के भी सुन्नियों की तरह कई संप्रदाय हैं. इनमें सबसे बड़ा समूह है इस्ना अशरी, जो 12 इमामों को मानता है. विश्व के करीब 75 फीसदी शिया इसी समुदाय से संबंधित हैं. इनके पहले इमाम हजरत अली और 12वें इमाम जमाना यानी इमाम महदी हैं. जैदिया शियाओं का एक और बड़ा समूह है, जो केवल पांच इमामों को ही मानते हैं. इनके पहले के चार इमाम इस्ना अशरी शिया के ही हैं पर अंतिम यानी पांचवें इमाम हुसैन के पोते जैद बिन अली हैं. इन्हीं की वजह से इस समूह के लोग जैदिया कहलाए. वहीं, इस्माइली शिया केवल सात इमामों को मानते हैं और इनके अंतिम इमाम मोहम्मद बिन इस्माइल हैं. इसी के कारण इनको इस्माइली कहा जाता है.

शिया मुस्लिमों के भी सुन्नियों की तरह कई संप्रदाय हैं. इनमें सबसे बड़ा समूह है इस्ना अशरी, जो 12 इमामों को मानता है.
दाऊदी बोहरा, खोजा और नुसैरी
मुस्लिम कारोबारियों बोहरा के इस्माइली शिया कानूनों को मानने वाले दाऊदी बोहरा कहे जाते हैं. हालांकि, ये 21 इमामों को मानते हैं, इसीलिए इस्माइली शिया से अलग माने जाते हैं. इनके अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम माने जाते हैं. इनके बाद आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा मिलती है, जिन्हें दाई कहते हैं. इसी तरह से गुजरात के व्यापारियों के एक समूह ने कुछ सदी पहले इस्लाम को स्वीकार कर लिया था, जिन्हें खोजा कहा जाता है. खोजा भी बोहरा की ही तरह सुन्नी और शिया दोनों को मानने वाले हैं. हालांकि अधिकतर खोजा इस्माइली शिया कानून का पालन करते हैं पर बड़ी संख्या में इस्ना अशरी शिया धार्मिक कानून को मानने वाले खोजा भी हैं.
सीरिया और मध्य पूर्व में शिया मुस्लिमों का एक समूह नुसैरी भी पाया जाता है. इनको अलावी भी कहते हैं. इस समुदाय का मानना है कि अली दरअसल ईश्वर के अवतार थे. ये इस्ना अशरी कानून को मानते हैं पर विश्वास अलग है. वास्तव में नुसैरी मुस्लिम पुनर्जनेम में विश्वास रखते हैं. ईसाइयों की कुछ रस्में भी इनके धर्म का हिस्सा हैं. इन सबके अलावा भी इस्लाम में छोटे-छोटे कई पंथ मिलते हैं.
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