भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते होंगे मजबूत, मौलाना अरशद मदनी बोले- अमेरिका को मात देकर हासिल की आजादी

भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते होंगे मजबूत, मौलाना अरशद मदनी बोले- अमेरिका को मात देकर हासिल की आजादी

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलाना अमीर खान मुत्तकी ने शनिवार को जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात की. अफगान मंत्री से मुलाकात के बाद मौलाना ने मीडिया से बात करते हुए इस पर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि “अफगानिस्तान से हमारा केवल इल्मी और रूहानी (आध्यात्मिक) संबंध नहीं है, बल्कि इसके साथ हमारे तहजीबी और सांस्कृतिक रिश्ते भी रहे हैं.”

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि बात यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की आजादी की जंग से भी अफगानिस्तान का एक विशेष संबंध रहा है. आज की नई पीढ़ी शायद इस बात से परिचित न हो, लेकिन यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि आजादी की लड़ाई के दौरान दारुल उलूम देवबंद के प्रधान अध्यापक (सदर-उल-मुदर्रिसीन) शेख-उल-हिंद मौलाना महमूद हसन (रह.) के आदेश पर अफगानिस्तान में ही हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक जला-वतन (निर्वासित) सरकार कायम की थी. उस सरकार के राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली और विदेश मंत्री मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी (रह.) थे.

शक्तिशाली ताकतों को मात देकर हासिल की आजादी

मौलाना मदनी ने आगे कहा कि अफगानिस्तान की जनता ने भी विदेशी कब्जे से अपने वतन को आजाद कराने के लिए हमारे बुजुर्गों का ही तरीका अपनाया. हमने उस ब्रिटिश शासकों से लंबी जद्दोजहद के बाद आजादी हासिल की, जिसके बारे में कहा जाता था कि उनकी हुकूमत का सूरज कभी डूबता नहीं है. इसी तरह अफगानिस्तान की जनता ने रूस और अमेरिका जैसी बड़ी शक्तिशाली ताकतों को मात देकर आजादी हासिल की है. लेकिन दोनों में समानता यह है कि इसके लिए उन्होंने वही रास्ता अपनाया जो हमारे बुजुर्गों ने भारत को आजाद कराने के लिए अपनाया था.

1991 के बाद पहली बार आया अफगान का प्रतिनिधिमंडल

बता दें कि 1991 के बाद यह पहला मौका है जब अफगानिस्तान का कोई प्रतिनिधिमंडल विदेश मंत्री मौलाना अमीर खान मुत्तकी की अगुवाई में भारत के दौरे पर आया है. इस दौरे के कार्यक्रमों में दारुल उलूम देवबंद का दौरा भी शामिल था. अपने देवबंद दौरे के दौरान मौलाना अमीर खान मुत्तकी ने दारुल उलूम से अपनी निस्बत (संबंध) और अकीदत (श्रद्धा) का इजहार करते हुए बार-बार इसे मदर-ए-इल्मी और रूहानी मरकज (ज्ञान और आत्मा का केंद्र) कहकर संबोधित किया.

क्या थी देवबंद जाने की वजह?

इसकी वजह यह है कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मूल रूप से एक आलिम-ए-दीन (धार्मिक विद्वान) हैं और उन्होंने पाकिस्तान के उस मदरसे से शिक्षा प्राप्त की है, जिसकी नींव महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हुसैन अहमद मदनी (रह.) के एक शिष्य मौलाना अब्दुल हक (रह.) ने रखी थी. इसी विशेष संबंध के आधार पर देवबंद पहुंचने के बाद अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष और दारुल उलूम देवबंद के प्रधान अध्यापक मौलाना अरशद मदनी से विशेष भेंट भी की.

दारुल उलूम देवबंद में पढ़ते हैं अफगान युवा

मीडिया के सवालों के जवाब में मौलाना मदनी ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद की ख्याति विश्वव्यापी है, और यहां पूरी दुनिया से छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते हैं जिनमें अफगानिस्तान के छात्र भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि विदेशी और विशेष रूप से इस्लामी देशों से जो लोग भारत आते हैं, वे दारुल उलूम देवबंद को देखने की इच्छा अवश्य रखते हैं. अफगानिस्तान के विदेश मंत्री का देवबंद दौरा उसी क्रम की एक कड़ी है, लेकिन इसके पीछे इल्मी, रूहानी, सांस्कृतिक और तहजीबी कारक भी सक्रिय हैं.

भारत और अफगान के संबंध होंगे मजबूत

एक और सवाल के जवाब में मौलाना ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस दौरे से भारत और अफगानिस्तान के बीच आपसी संबंध और भी मजबूत होंगे. भारत के विदेश मंत्री ने काबुल में भारतीय दूतावास को पुनः सक्रिय करने की घोषणा की है, जिससे दोनों देशों के बीच शैक्षिक और व्यापारिक रिश्तों में और अधिक प्रगति होगी. मौलाना मदनी ने यह भी आशा व्यक्त की कि भारत और अफगानिस्तान के निकट आने से पूरे क्षेत्र में अमन और स्थिरता के कायम होने में मदद मिलेगी.

सुरक्षा कारणों से नहीं हुई जनसभा

इस दौरे के दौरान एक जनसभा भी होनी थी. मौलाना अमीर खान मुत्तकी को देखने और सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग बाहर से भी आए थे, मगर अफगानिस्तान प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली से विदेश मंत्रालय की जो टीम आई थी, उसने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए दौरे को संक्षिप्त कर दिया, जिसके चलते आम सभा नहीं हो सकी और लोगों में निराशा फैल गई.

विदेश मंत्री दारुल उलूम के दौरे से दिखे खुश

दारुल उलूम के दौरे से अफगानिस्तान के विदेश मंत्री बहुत खुश दिखाई दिए। जिस तरह यहां उनका उत्साहपूर्ण स्वागत हुआ और मेहमाननवाजी की गई, उसकी उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान खुलकर प्रशंसा की और इसके लिए उन्होंने उलमा-ए-देवबंद, तमाम तलबा (छात्रों) और अवाम (जनता) का शुक्रिया अदा किया.

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