बेंगलुरु मेट्रो का नाम बसवन्ना के नाम पर रखने की मांग, CM सिद्धारमैया ने कहा केंद्र से करेंगे सिफारिश
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने रविवार (5 अक्टूबर) को कहा कि वह केंद्र से बेंगलुरु के नम्मा मेट्रो का नाम बदलकर 12वीं सदी के लिंगायत नेता बसवन्ना के नाम पर बसव मेट्रो रखने की सिफारिश करेंगे. यह प्रस्ताव राज्य में बसवन्ना की विरासत को याद करने के लिए सरकार की चल रही पहलों को रेखांकित करता है.
‘बसवा संस्कृति अभियान-2025’ के समापन समारोह में अपने प्रस्ताव की घोषणा करते हुए सीएम सिद्धारमैया ने कहा, ‘मैं केंद्र सरकार से हमारी मेट्रो का नाम ‘बसवा मेट्रो’ रखने की सिफारिश करूंगा. अगर यह पूरी तरह से राज्य सरकार की परियोजना होती, तो मैं आज ही इसे ‘बसवा मेट्रो’ के रूप में घोषित कर देता’. सीएम ने कहा ‘मेट्रो परियोजना राज्य और केंद्र सरकार दोनों की है. हमारा (राज्य का) हिस्सा 87 प्रतिशत और केंद्र का 13 प्रतिशत हो सकता है, लेकिन फिर भी केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना हम कुछ नहीं कर सकते. मैं यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के समक्ष रखूंगा’.
‘केंद्र से लेनी होगी मंजूरी’
सभा को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा, ‘आपको बसवन्ना के बारे में हमसे कुछ करने की मांग करने की जरूरत नहीं है. अगर यह परियोजना पूरी तरह से हमारी सरकार की होती, तो मैं अभी अपनी मंज़ूरी दे देता, लेकिन चूंकि यह राज्य और केंद्र सरकार, दोनों की संयुक्त परियोजना है, इसलिए मैं अभी मंजूरी नहीं दे सकता. मुझे केंद्र को पत्र लिखकर उनकी मंजूरी लेनी होगी. इसके साथ ही सीएम सिद्धारमैया ने यह घोषणा भी की सरकार ने बसव दर्शन के अध्ययन के लिए समर्पित वाचना विश्वविद्यालय की स्थापना को मंजूरी दे दी है, जिसकी स्थापना अगले वर्ष की जाएगी.
कौन थे बसवन्ना ?
बसवन्ना, जिन्हें विश्वगुरु बसवन्ना के नाम से भी जाना जाता है, 12वीं सदी के लिंगायत दार्शनिक, कवि और राजनेता थे. उन्होंने दुनिया की पहली लोकतांत्रिक आध्यात्मिक सभा, अनुभव मंडप की स्थापना की और जाति-भेद के विरुद्ध एक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे एक वर्ग-विहीन और जाति-विहीन समाज का निर्माण हुआ. वह समानता और सामाजिक सुधार के पक्षधर थे. कर्नाटक सरकार ने राज्य की पहचान और सामाजिक मूल्यों पर उनके स्थायी प्रभाव को मान्यता देने के लिए जनवरी 2024 में उन्हें आधिकारिक तौर पर ‘कर्नाटक का सांस्कृतिक नेता’ घोषित किया था.
‘मुझे बसवन्ना के सिद्धांतों में आस्था है’
अपने संबोधन में सीएम सिद्धारमैया ने कहा, ‘मैं बसवन्ना का प्रशंसक हूं. मुझे बसवन्ना के सिद्धांतों में आस्था और प्रतिबद्धता है. मेरा मानना है कि बसवन्ना के सिद्धांत शाश्वत और प्रासंगिक हैं न केवल अतीत में, न केवल आज, बल्कि हमेशा के लिए’. उन्होंने कहा ‘बसवन्ना ने जीवन भर सह-अस्तित्व और सहिष्णुता का उपदेश दिया और मैं भी इसी का पालन करता हूं. बसव जयंती के दिन जब मैंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, मैंने सभी को समान जीवन जीने के अवसर प्रदान करने की बसवन्ना की आकांक्षाओं को पूरा करने का संकल्प लिया था’.
बसवन्ना के सिद्धांतों से प्रेरित सरकार की पहलों पर जोर
मुख्यमंत्री ने बसवन्ना के सिद्धांतों से प्रेरित सरकार की पहलों पर ज़ोर दिया. उन्होंने कहा, ‘अनेक कल्याणकारी योजनाओं और गारंटियों के माध्यम से, मैंने सभी जातियों और धर्मों के गरीबों के लिए अवसर सुनिश्चित किए हैं. इसी कारण से मैंने सभी सरकारी कार्यालयों में बसवन्ना का चित्र लगाना अनिवार्य कर दिया है. उन्हें कर्नाटक का सांस्कृतिक नेता घोषित करके पूरी सरकार ने बसवन्ना को श्रद्धांजलि अर्पित की है’. सीएम ने बसवन्ना के एकता और समावेशिता के संदेश पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘हमारे बीच कई जातियां और कई धर्म हैं. चतुर्वर्ण व्यवस्था में हमें चौथे स्थान पर रखा गया है. शूद्र चाहे किसी भी जाति के हों, हमें यह समझना होगा कि हम सब एक हैं’.
‘मैं बसवन्ना का अनुयायी रहा हूं’
वहीं बसवन्ना के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों का ज़िक्र करते हुए सिद्धारमैया ने कहा, ‘कानून के छात्र होने के दिनों से ही मैं बसवन्ना का अनुयायी रहा हूं. सीएम ने बसवन्ना की शिक्षाओं को भारत के संवैधानिक मूल्यों से जोड़ते हुए कहा कि दोनों समानता, बंधुत्व और न्याय के समान आदर्शों को साझा करते हैं. उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने भी अपने संविधान में बसवन्ना की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित किया. इस प्रकार संविधान और शरण संस्कृति एक ही हैं. उन्होंने कहा संविधान के आदर्श स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व हैं, बसवन्ना ने भी बंधुत्व पर आधारित जातिविहीन, वर्गविहीन समाज के निर्माण के लिए कार्य किया. इसलिए, बसवन्ना सदैव प्रासंगिक रहेंगे. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार संविधान की प्रस्तावना पढ़ने के लिए एक अभियान चला रही है’.
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