दुश्मनों का काल… नौसेना के पास कितनी सबमरीन, कौन सबसे ज्यादा पावरफुल? INS एंड्रोथ की एंट्री चर्चा में
भारतीय नौसेना को नया पनडुब्बी रोधी युद्धपोत (एंटी सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट) एंड्रोथ मिल गया है. इसके जरिए तटीय समुद्र में सामने आने वाले खतरों से निपटने की भारतीय वायुसेना की क्षमता बढ़ेगी. एंड्रोथ की खासियत है कि इसमें 80 फीसदी से अधिक सामग्री स्वदेशी है. इसका निर्माण जीआरएसई कोलकाता में किया गया है. यह भारतीय नौसेना का दूसरा एंटी सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट है. इसी बहाने आइए जान लेते हैं कि भारतीय नौसेना के पास कितनी सबमरीन है और ये कितनी हाइटेक हैं?
समुद्र में अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए भारत लगातार नौसेना की जरूरतों को पूरा कर रहा है और इसे हाइटेक बनाने पर जोर दे रहा है. इसकी असली वजह हैं पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान. खासकर चीन के कारण भारत के सामने अपनी समुद्री सीमाओं को सुरक्षित रखना एक चुनौती है. इसको ध्यान में रखते हुए भारत न सिर्फ अपने युद्धपोतों का बेड़ा बढ़ा रहा है, बल्कि सबमरीन पर भी खास ध्यान दे रहा है.
देश के पास फिलहाल करीब 17 सबमरीन हैं. इनमें से 15 सबमरीन पारंपरिक ईंधन क्षमता वाली हैं. ये डीजल या इलेक्ट्रिक ईंधन का उपयोग कर संचालित की जाती हैं. इसके अलावा दो परमाणु सबमरीन भी भारत के पास हैं. भारत इन सबमरीन की संख्या लगातार बढ़ा रहा है और साल 2027 तक भारतीय नौसेना के पास इनकी संख्या 24 करने की योजना है.

एंड्रोथ की खासियत है कि इसमें 80 फीसदी से अधिक सामग्री स्वदेशी है.
कितनी तरह की सबमरीन?
1- सिंधुघोष कैटेगरी की सबमरीन
भारतीय नौसेना का पारंपरिक सबमरीन का बेड़ा सिंधुघोष कैटेगरी की डीजल अथवा इलेक्ट्रिक सबमरीन पर आधारित है. इसके साथ ही भारतीय नौसेना के पास स्कॉर्पीन कैटेगरी की भी सबमरीन हैं. इनके जरिए भारत अपनी समुद्री सीमाओं की निगरानी करता है. सिंधुघोष कैटेगरी की सबमरीन वास्तव में किलो कैटेगरी की सबमरीन हैं. इनका निर्माण रूस की मदद से प्रोजेक्ट 877 के अंतर्गत किया गया था.
भारतीय नौसेना में इन्हें संस्कृत नाम दिए गए हैं. ये सबमरीन मुख्यत: टारपीडो और क्लब/3एम-54ई एंटी शिप क्रूज मिसाइलों से लैस रहती हैं. ये सबमरीन समुद्र में लगातार 45 दिनों तक रह सकती हैं और सतह पर आने की जरूरत नहीं पड़ती. इनमें 53 लोगों की टीम एक साथ रह सकती है. समुद्र के भीतर इसकी रफ्तार 18 समुद्री मील प्रति घंटे तक होती है.

INS वेला स्कॉर्पीन क्लास की एक डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बी है.
2-स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन
भारतीय नौसेना में स्कॉर्पीन क्लास की छठवीं सबमरीन नौ जनवरी 2025 को भारतीय नौसेना में शामिल की गई है. इसका निर्माण भारतीय पनडुब्बी निर्माता कंपनी Mazagon Dock Shipbuilders Limited (MDL) ने फ्रांसीसी शिपबिल्डर ग्रुप की सहायता से किया है. यह पी-75 प्रोजेक्ट का हिस्सा है. 2000 टन की इस पारंपरिक सबमरीन को सभी तरह के मिशन जैसे सरफेस वेसल वारफेयर, एंटी सबमरीन वारफेयर, लॉन्ग रेंज स्ट्राइक्स, स्पेशल ऑपरेशंस और इंटेलीजेंस के लिए तैयार किया गया है. मेक इन इंडिया नीति के तहत तैयार यह सबमरीन 67.5 मीटर लंबी है. इसकी ऊंचाई 12.3 मीटर है और इन्हें 360 बैटरी सेल से लैस किया गया है.
परमाणु पनडुब्बियां
भारतीय नौसेना के पास दो परमाणु पनडुब्बियां (न्यूक्लियर सबमरीन) भी हैं. ये किसी भी स्थिति में दुश्मनों का खात्मा करने में सक्षम हैं. आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात नामक भारतीय नौसेना की परमाणु पनडुब्बियां काफी लंबे समय तक समुद्र के भीतर रह सकती हैं, क्योंकि ये परमाणु ऊर्जा से संचालित होती हैं.
ऐसे में इनको ईंधन के लिए बार-बार सतह पर नहीं आना पड़ता. ये पनडुब्बियां पारंपरिक हथियारों के अलावा बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस की गई हैं. भारतीय नौसेना के लिए छह और परमाणु पनडुब्बियां बनाने पर भी काम चल रहा है.

INS अरिघात भारतीय नौसेना की वो परमाणु पनडुब्बी है जो काफी लंबे समय तक समुद्र के भीतर रह सकती है.
INS अरिहंत से भी ज्यादा सक्षम INS अरिघात
आईएनएस अरिहंत पहली परमाणु पनडुब्बी थी, जिसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था. इसके बाद आई आईएनएस अरिघात जो आईएनएस अरिहंत से भी अधिक सक्षम है. आईएनएस अरिघात में लंबी दूरी की मिसाइलों के साथ ही उच्च गुणवत्ता वाले स्वदेशी सामान भी जोड़े गए हैं.
INS अरिघात को ऐसी मिसाइलों से लैस किया गया है, जिनसे 3500 किमी से भी ज्यादा दूरी तक लक्ष्य पर तगड़ा प्रहार किया जा सकता है. वहीं इसके पहले की परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत से करीब 750 किमी की दूरी तक लक्ष्य पर वार किया जा सकता है.
दुनिया के चुनिंदा देशों में शामिल भारत
भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिनके पास परमाणु पनडुब्बियां हैं. भारत के अलावा जिन देशों के पास परमाणु पनडुब्बियां हैं, उनमें अमेरिका और रूस के साथ ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के नाम शामिल हैं. दरअसल, परमाणु पनडुब्बी बनाने की तकनीक हर देश के पास नहीं है. सबसे पहले अमेरिका ने साल 1954 में परमाणु पनडुब्बी बनाई थी. तबसे यह तकनीक अमेरिका के अलावा केवल पांच देश ही विकसित कर पाए हैं, जिनमें भारत भी है. अमेरिका ने ही परमाणु पनडुब्बी की अपनी तकनीक ब्रिटेन को दी थी.
परमाणु पनडुब्बियों की सबसे बड़ी विशेषता होती है इनका अथाह ईंधन भंडार. दरअसल, परमाणु रिएक्टर युक्त ये पनडुब्बियां परमाणु ऊर्जा से संचालित होती हैं. इसलिए महीनों समुद्र के भीतर पानी में रह कर दुश्मन पर नजर बनाए रख सकती हैं.
यह भी पढ़ें: जॉर्जिया में कैसे हुआ शराब का जन्म, यहां की वाइन क्यों पॉपुलर?
Curated by DNI Team | Source: https://ift.tt/Jo0u8Eh
Leave a Reply