डोनाल्ड ट्रंप को नहीं मिला नोबेल तो कमेटी पर भड़का व्हाइट हाउस, बयान- शांति पर राजनीति को तरजीह दी

डोनाल्ड ट्रंप को नहीं मिला नोबेल तो कमेटी पर भड़का व्हाइट हाउस, बयान- शांति पर राजनीति को तरजीह दी

नोबेल शांति पुरस्कार इस बार भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम नहीं हुआ. नोबेल कमिटी ने वेनेजुएला के विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को इस पुरस्कार के लिए चुना है. ट्रंप के पुरस्कार नहीं मिलने पर अमेरिका के व्हाइट हाउस ने प्रतिक्रिया दी है.

व्हाइट हाउस ने शुक्रवार यानी आज प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुनिया भर में शांति समझौतों को आगे बढ़ाने, युद्धों को खत्म करने और लोगों की जान बचाने के लिए लगातार काम करते रहेंगे.

व्हाइट हाउस ने क्या कहा, विस्तार से जानिए

व्हाइट हाउस के बयान में कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रंप दुनिया भर में शांति समझौते करते रहेंगे, युद्धों को खत्म करेंगे और लोगों की जान बचाते रहेंगे. उनके अंदर एक सच्चे मानवतावादी का दिल है. उनकी इच्छा-शक्ति इतनी मज़बूत है कि वे पहाड़ भी हिला सकते हैं. नोबेल समिति ने साबित कर दिया है कि वह शांति से ज़्यादा राजनीति को तरजीह देती है. व्हाइट हाउस के इस बयान को कई राजनीतिक विश्लेषक नोबेल कमेटी पर सीधा हमला बता रहे हैं. ट्रंप समर्थकों का कहना है कि मध्य पूर्व और एशिया में उनके शांति प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नजरअंदाज किया गया.

ट्रंप को नोबेल क्यों नहीं मिला?

डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले से लेकर दूसरे कार्यकाल तक ये कहते आए हैं कि वो नोबेल पुरस्कार के हकदार है. दरअसल 2025 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी 2025 थी. इस तारीख के बाद जो भी नामांकन आए उस पर विचार नहीं किया गया. ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की जिम्मेदारी 20 जनवरी 2025 को संभाली थी. यानी उनके दोबारा राष्ट्रपति बनने के सिर्फ 11 दिन बाद नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन बंद हो गया था. इतने कम दिन में ट्रंप के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं था जिसके लिए उन्हें नोबेल मिलता.

वेनेज़ुएला की माचाडो को क्यों मिला नोबेल?

वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला है. नोबेल कमेटी ने उन्हें यह सम्मान देश में तानाशाही शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक संघर्ष और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए दिया है. समिति ने कहा कि माचाडो ने व्यक्तिगत जोखिम उठाकर वेनेज़ुएला में लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत करने की दिशा में काम किया और दुनिया को दिखाया कि बदलाव हिंसा से नहीं, दृढ़ संकल्प से भी लाया जा सकता है.

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