अवैध रूप से रहने वालों के लिए स्वर्ग बना भारत… सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी?
सुप्रीम कोर्ट ने भारत में रह रहे एक इजराइली नागरिक की याचिका खारिज करते हुए कहा कि भारत अवैध रूप से समय से ज्यादा रहने वाले विदेशियों के लिए एक स्वर्ग बन गया है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गोवा में एक रूसी साथी के साथ रह रहे इजराइली नागरिक को कड़ी फटकार लगाई और उसकी दो नाबालिग बेटियों को रूस वापस भेजने से रोकने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है.
दरअसल इजराइली नागरिक ने याचिका में अपनी दो नाबालिग बेटियों को रूस वापस भेजने के आदेश को रोकने की मांग की थी. ये दोनों रूसी लड़कियां अपनी मां के साथ अवैध रूप से गोवा की एक गुफा में रह रही थी, जिन्हें गोवा पुलिस ने वहां से निकाला.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने ड्रोर श्लोमो गोल्डस्टीन की ओर से दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिन्होंने दोनों लड़कियों के पिता होने का दावा किया था. बैंच ने इसे तुच्छ मुकदमा करार दिया है.
अवैध रूप से रहने वालों के लिए स्वर्ग बना भारत
सुनवाई के दौरान बैंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह देश हर तरह के लोगों के लिए स्वर्ग बन गया है. कोई भी यहां आता है और हमेशा के लिए बस जाता है. साथ ही इजराइली नागरिक से बैंच ने पूछा कि भारत में अपना गुजारा वह कैसे कर रहा है और उसकी आजीविका का सोर्स किया है.
गोल्डस्टीन के वकील दीपक प्रकाश ने सुनवाई स्थगित करने की मांग की, ताकि यह साफ किया जा सके कि क्या बच्चों को पहले ही वापस भेज दिया गया है और याचिका की एक प्रति केंद्र को भी दी जाए, जिस पर अदालत ने पूछा, “आप इजराइली होने के बावजूद भारत में क्यों हैं? आपकी आजीविका का स्रोत क्या है? हम आपकी गतिविधियों पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन आप गोवा में कैसे गुजारा कर रहे हैं?”
भारत में अवैध रूप से रह रहे लाखों
इजराइली नागरिक गोल्डस्टीन का पहला मामला नहीं है. भारत में ऐसे लाखों लोग हैं, जो अपने समय से ज्यादा भारत में ही रह रहे हैं. सोमवार को सुनवाई के एक अलग मामले में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सूडानी नागरिक यूसुफ हारून यागूब मोहम्मद की याचिका पर विचार करते हुए इसी तरह की चिंता जाहिर की थी. यूसुफ ने कथित तौर पर भारत में निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने की वजह से अपने और अपने परिवार के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा की मांग की थी.
मोहम्मद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस मुरलीधर ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल के पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) द्वारा जारी एक शरणार्थी कार्ड है और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में शरण के लिए आवेदन किया है. उन्होंने निर्धारित समय से अधिक समय तक रहने वाले विदेशियों के खिलाफ चल रहे अभियान पर भी चिंता व्यक्त की.
इस मामले में कोर्ट ने वकील को बताया कि भारत UNHCR शरणार्थी कार्ड को मान्यता नहीं देता है, क्योंकि देश ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन या इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर साइन नहीं किए हैं.
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