मुगलों में सबसे ज्यादा शादियां करने का रिकॉर्ड किसके नाम, कितनी संतानें हुईं?
आज भी मुगलों की चर्चा किसी न किसी बहाने होती ही रहती है. कभी उनकी क्रूरता की तो कभी विलासिता की. उनकी शादियां और हरम पर इतिहास की किताबें भरी पड़ी हैं. 300 सालों से ज्यादा समय तक राज करने की वजह से मुगलों की अनेक निशानियां किसी न किसी रूप में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में आज भी मौजूद हैं.
आइए इस चर्चा के बीच जानने का प्रयास करें कि किस मुगल शासक ने सर्वाधिक शादियां की? उनसे संतानें कितनी हुईं? आगे उनका क्या हुआ? किसे मिली सत्ता की बागडोर और किसके हाथ रह गए थे खाली?
बादशाह अकबर ने की सबसे अधिक शादियां
इतिहास में यदि सबसे अधिक शादियां करने वाले मुगल शासक की बात होती है तो बादशाह अकबर का नाम आता है. हालांकि, मुगल शासकों में कई ने एक से अधिक शादियां कीं, लेकिन अकबर के वैवाहिक गठजोड़ सबसे व्यापक, राजनीतिक रूप से रणनीतिक और ऐतिहासिक रूप से दर्ज हैं. उनके विवाह केवल निजी जीवन की घटनाएं नहीं थे, बल्कि राजनैतिक स्थिरता, साम्राज्य-विस्तार, क्षेत्रीय गठजोड़ और सांस्कृतिक-धार्मिक सहअस्तित्व की परियोजनाएं भी थे. अकबर के लगभग 50 साल (15561605) के शासनकाल में विवाहों के बारे में समकालीन और बाद के स्रोतों में भिन्न-भिन्न संख्या मिलती है.

बादशाह अकबर.
अकबर ने क्यों की इतनी शादियां?
अबुल-फज़्ल की आइने-अकबरी और अकबरनामा, बदायूनी की मुन्तख़ब-उत-तवारीख़ और आगे चलकर फर्स्टन व ब्लंट, विन्सेंट स्मिथ, ई. जे. हॉवर्थ, और आर. सी. मजूमदार जैसे इतिहासकारों के संकलनों में अलग-अलग विवरण मिलते हैं. इनके अनुसार अकबर ने कई प्रमुख राजवंशों, विशेषकर राजपूताने की कुलीन घरानों से विवाह किए.
अकबर के औपचारिक विवाह (निकाह) और हरम में शामिल रानियां, मुख्य बीबियां एवं अन्य को मिलकर यह संख्या बड़ी थी लेकिन एक नंबर पर इतिहासकार एकमत नहीं है. कुछ ने कई दर्जन शादियों की चर्चा की है तो कुछ ने सैकड़ों लिख डाले हैं. अकबर की शादियां राजनीतिक संघों पर केंद्रित थीं. आमेर समेत कई राजपूत घरानों से गठजोड़ ने मुगल साम्राज्य को उत्तर-पश्चिम भारत में उसे मजबूती दी. अकबर के विवाह हमेशा रणनीतिक माने जाते थे?
शादियों से सत्ता संतुलन बनाता था अकबर
विवाह के जरिए अकबर राजनीतिक एकीकरण के सपने पूरा करता. राजपूत कुलीनता को सम्मान देना, उपाधियां वितरित करना, जागीरें और उच्च दरबारी पद देकर राजपूतों को मुगल प्रशासन में समाहित करना भी उसकी नीति का हिस्सा होता था. इसका लाभ वह सांस्कृतिक समन्वय में उठाता. धार्मिक सहिष्णुता (सुल्ह-ए-कुल), गैर-मुस्लिम कुलीनों के साथ घनिष्ठ रिश्ते, और दरबार की बहु-सांस्कृतिक पहचान बनाने में यह नीति कारगर रही.
ऐसे विवाहों से पैदा हुए राजकुमारों को राजपूत और मुगल दोनों प्रतिष्ठाओं की वैधता मिली, जो भविष्य के सत्ता-संतुलन में निर्णायक साबित हुईं. अकबर के अलावा जहांगीर (सलीम), शाहजहां और औरंगज़ेब के भी एक से अधिक विवाह किए थे, मगर वैवाहिक गठजोड़ों की संख्या और प्रभाव की दृष्टि से अकबर का पलड़ा सबसे भारी माना जाता है.

मुगल बादशाह अकबर का बेटा जहांगीर.
अकबर की संताने कौन-कौन, उनका क्या हुआ?
अकबर के कई पुत्र-पुत्रियां थीं; लेकिन उत्तराधिकार और इतिहास में प्रमुख रूप से तीन बेटों का उल्लेख विशेष रूप से मिलता है. जुलालुद्दीन मुहम्मद सलीम (जहांगीर), मुराद और दानियाल. इनके अलावा राजकुमारियां भी हुईं, जैसे आरज़ानी बेगम, खानज़ादा बानो आदि.
जहांगीर (मोहम्मद सलीम) की मां आमेर की राजकुमारी, जो मरियम-उज़-ज़मानी के नाम से चर्चित हैं. इन्हें जोधा बाई के नाम से भी दुनिया जानती है. जहांगीर का जन्म साल 1569 में हुआ. सलीम ने विद्रोही प्रवृत्ति अपनाई. बाद में पिता अकबर से सलीम का तनाव भी रहा. लेकिन कालांतर में साल 1605 में अकबर की मृत्यु के बाद वही सम्राट बना.
जहांगीर ने साल 1627 तक राज किया. बड़ा बेटा होने के साथ-साथ जहांगीर को दरबार में मजबूत समर्थन था. राजपूत-वंश की मातृ-पहचान से उत्तराधिकार की वैधता आसान हुई. अकबर के दो अन्य बेटे मुराद और दानियाल के निधन के पहले दुनिया छोड़ चुके थे. नूरजहां के साथ विवाह ने बाद में दरबार की शक्ति-संरचना को प्रभावित किया, पर उत्तराधिकार के क्षण पर निर्णायक तथ्य था जीवित, वयस्क और राजनीतिक रूप से स्वीकार्य उत्तराधिकारी का होना.
मुराद की मां हरम में मौजूद सामान्य बेगमों से एक थीं, जिनके नाम को लेकर इतिहासकारों में विभेद है. मुराद ने गुजरात प्रांत में चले सैन्य अभियानों में भागीदारी; परंतु शराब की प्रवृत्ति और स्वास्थ्य में गिरावट की वजह से साल 1599 में मृत्यु हो गयी. इस तरह उत्तराधिकार की दौड़ से जीवनकाल में ही प्रभावी रूप से बाहर हो गए थे. दानियाल की मां भी सामान्य बेगम थी. दानियाल को बहादुर और क्षमतावान माना गया लेकिन शराब के प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव की वजह से स्वास्थ्य खराब होता गया और साल 1605 में अकबर की मौत से कुछ दिन पहले ही दानियाल ने भी दुनिया छोड़ दी. इस तरह अकबर के निधन के समय केवल जहांगीर ही प्रभावी थे, नतीजे में स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में वे बादशाह बनाए गए.
अकबर की बेटियां और वैवाहिक गठजोड़
बादशाह अकबर की पुत्रियां भी उच्च कुलीन परिवारों में ब्याही गईं, जिससे दरबार के भीतर और क्षेत्रीय ताकतों के साथ रिश्ते मजबूत हुए. ऐसे विवाह मुगल-राजपूत राजनीतिक-सांस्कृतिक सेतु का महत्वपूर्ण हिस्सा थे. विभिन्न तवारीख़ों में इन विवाहों के उल्लेख मिलते हैं, पर नामों और क्रम में भेद आम है.
अकबर की संतानों में जहांगीर ही उत्तराधिकारी इसलिए बने क्योंकि कि वे जीवित, वयस्क, और राजनीतिक रूप से सबसे सशक्त थे. उनके प्रतिद्वंदी वास्तविक दावेदार (मुराद, दानियाल) पहले ही चल बसे थे, और राजपूत व मुगल कुलीन गुटों के बीच उनकी वैधता को सबसे अधिक स्वीकार्यता मिली हुई थी.
सबसे अधिक संतानें किसके?
मुगल शासकों में किसके पास सबसे अधिक संतानें थीं? इस पर भेद हैं. व्यापक रूप से यह माना जाता है कि हरम और बहु-विवाह की परंपरा के कारण कई शासकों की संतान-संख्या उल्लेखनीय रही. अकबर के पुत्र कम, पर वैध उत्तराधिकार के संदर्भ में निर्णायक रहे; कुल संतान-संख्या के अनुमान 10-15 के बीच कही जाती है, पर सटीक नंबर पर मतभेद हैं.
जहांगीर की संतानों में खुसरो, खुर्रम (शाहजहाँ), परवेज़ आदि प्रमुख हैं. शाहजहां की संतानों में दारा शिकोह, शुजा, औरंगज़ेब, मुराद बख्श, गौहरारा बेगम थे. औरंगज़ेब ने भी एकाधिक विवाह किए और कई संतानें हुईं. यानी सबसे अधिक संतानें किस शासक की थीं, इस पर स्पष्ट नंबर उपलब्ध नहीं है. पर, सबसे अधिक वैवाहिक गठबंधन, शादियाँ के व्यावहारिक-राजनीतिक महत्व और व्यापकता की दृष्टि से अकबर सबसे आगे माने जाते हैं.
सत्ता किसे मिली और क्यों?
मुगल उत्तराधिकार का सिद्धांत ज्येष्ठपुत्र स्वतः उत्तराधिकारी पर नहीं टिका था, जो राजशाही में सामान्य रूप से मान्य है. मुगल काल में शक्ति-संघर्ष, गुटबंदी, सैन्य नियंत्रण, और सम्राट की वैधता के दावों पर बहुत कुछ निर्भर करता था. कुछ जो प्रमुख कारण थे उनमें जीवित और सक्षम दावेदार संतान का होना; दरबार के शक्तिशाली अमीरों, सेनापतियों, सूबेदारों और शहज़ादों का समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका में रहा. मातृ-कुल और वैवाहिक संबंधों की वैधता एवं राजनीति कारण भी इसमे रोल निभाते रहे.
क्या कहती हैं इतिहास की किताबें?
अकबरनामा और आइने-अकबरी अकबर के शासन, प्रशासन, दरबार, हरम, और नीति-निर्णयों की प्राथमिक जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं. सम्राट-प्रशंसक दृष्टि के बावजूद इन किताबों में पर्याप्त विवरण उपलब्ध हैं. एक और किताब है मुन्तख़ब-उत-तवारीख़, यह अपेक्षाकृत आलोचनात्मक दृष्टि रखती है. यह किताबें अकबर के धार्मिक-राजनीतिक प्रयोगों और दरबार की हलचलों का महत्त्वपूर्ण साक्ष्य हैं.
विदेशी लेखक जे. एफ़. रिचर्ड्स की किताब The Mughal Empire मुगल व्यवस्था, उत्तराधिकार की प्रकृति, राजपूत गठबंधनों और प्रशासनिक ढांचे पर संतुलित जानकारी देती हैं. इसी तरह आर. सी. मजूमदार की किताब The History and Culture of the Indian People: The Mughal Empire भी इन मुद्दों पर सटीक ध्यान खींचती है. विन्सेंट ए. स्मिथ, इरफान हबीब, सतीश चन्द्र और जदुनाथ सरकार जैसे इतिहासकारों ने भी मुगल काल पर बहुत कुछ लिखा है.
इन सभी किताबों से यह तस्वीर उभरती है कि अकबर की वैवाहिक नीति सबसे व्यापक और रोचक थी, जिसने साम्राज्य-निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई. उनकी संतानों में जहाँगीर का उत्तराधिकार इसीलिए संभव हुआ कि अन्य प्रमुख दावेदार (मुराद और दानियाल) जीवित नहीं रहे, और उसकी वैधता व समर्थन सबसे अधिक ठोस थे.
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