प्रयागराज के मैलहन में 90 साल से हो रही रामलीला:लालटेन से शुरू हुई परंपरा आज भी जारी, पीढ़ियां बदलीं लेकिन आस्था कायम
प्रयागराज के फूलपुर क्षेत्र का मैलहन गांव पिछले 90 वर्षों से रामलीला की आस्था और परंपरा को जीवित रखे हुए है। यहां 1935 में पंडित ओंकार नाथ वैद्य ने ‘श्री रामलीला कमेटी मैलहन’ की स्थापना की थी। अंग्रेजों के शासनकाल में शुरू हुई इस रामलीला ने धीरे-धीरे गांव ही नहीं, पूरे गंगा पार के इलाके में अपनी पहचान बनाई। शुरुआत के दिनों में जब संसाधन बेहद सीमित थे, तो गांव के युवाओं ने बांस और बल्लियों से मंच तैयार किया। मंचन लालटेन की हल्की रोशनी में होता था। उस दौर में लाउडस्पीकर नहीं थे, इसलिए कलाकार ऊंची आवाज में संवाद बोलते थे ताकि दर्शकों तक साफ सुनाई दे। आर्थिक तंगी के कारण मुकुट और अन्य श्रृंगार सामग्री कागज और दफ्ती से बनाई जाती थी। उस समय भव्यता कम जरूर थी, लेकिन भक्ति और आस्था किसी तरह कम नहीं थी। 3 दिनों तक होता था रामलीला का मंचन
रामलीला का मंचन पहले 3 दिन होता था। बाद में इसे बढ़ाकर 5 दिन और फिर 7 दिन कर दिया गया। यहां मंचन करने वाले कलाकार साल भर कहीं भी रहें, लेकिन रामलीला के समय अपने गांव लौट आते हैं। वे पूरी श्रद्धा से अपने किरदार निभाते हैं। गांव की मिट्टी और संस्कारों से जुड़ी यह रामलीला आज भी लोगों को एकजुट कर रही है। पीढ़ियां बदल गईं हैं, लेकिन रामायण के पात्रों का मंचन उसी आस्था से होता है। बुजुर्गों की मेहनत और आस्था से बोए गए बीज अब युवाओं की लगन और समर्पण से फल-फूल रहे हैं। यहां मंचन करने वाले लोग साल भर कहीं भी रहे लेकिन रामलीला के मंचन के समय वो वापस अपने गांव लौट आते हैं और बड़े ही आस्था और भक्ति के साथ किरदार को निभाते हैं। गंगा पार क्षेत्र की पहचान
आज मैलहन गांव की रामलीला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि पूरे गंगा पार क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। यह आयोजन गांव की मिट्टी, संस्कारों और आस्था से जुड़ा हुआ है, जो लोगों को एकजुट करता है। 90 साल पहले शुरू हुई थी रामलीला
मैलहन की इस ऐतिहासिक रामलीला की शुरुआत 90 साल पहले, सन 1935 में, पंडित ओंकार नाथ वैद्य ने की थी। उन्होंने इसका नाम रखा “श्री राम लीला कमेटी मैलहन।” उस समय तक भारत अंग्रेजों के शासन में था, लेकिन गांव के लोगों ने अपने जज्बे और श्रद्धा से यह परंपरा शुरू की। शुरुआत में गांव के युवकों ने बांस और बल्लियों से मंच बनाया। मंचन लालटेन की रोशनी में होता था, क्योंकि उस समय बिजली और आधुनिक सुविधाएं नहीं थीं। लाउडस्पीकर भी नहीं थे, इसलिए कलाकार अपनी आवाज़ को पूरी ताकत लगाकर बोलते थे, ताकि दर्शक हर संवाद सुन सकें। आर्थिक तंगी के कारण मुकुट और अन्य श्रृंगार सामग्री कागज और दफ़्ती से बनाई जाती थी। भले ही साधन कम थे, लेकिन भक्ति और आस्था में कभी कमी नहीं आई। शुरुआत में रामलीला केवल तीन दिन चलती थी। बाद में इसे बढ़ाकर पांच दिन और फिर सात दिन कर दिया गया। धीरे-धीरे यह आयोजन गांव की आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन गया।
बदलाव के साथ बढ़ती परंपरा
श्री राम लीला कमेटी के अध्यक्ष घनश्याम दूबे बताते हैं कि कई सालों तक रामलीला पुराने तरीके से ही मंचित होती रही। लेकिन साल 1972 में बनारस से मुकुट, कपड़े और पर्दे मंगाए गए। धीरे-धीरे लालटेन की जगह गैस लाइट आई और अब पूरी रामलीला जनरेटर और इलेक्ट्रिक लाइट के साथ आयोजित की जाती है। मंचन से पहले पूरे गांव में चौकी निकलती है। इसके बाद सुबह 3 से 4 बजे तक रामलीला का मंचन चलता है। कई कलाकार साल भर गांव के बाहर रहते हैं, लेकिन जैसे ही मंचन का समय आता है, वे श्रद्धा और लगन के साथ अपने-अपने किरदार निभाने के लिए वापस गांव लौट आते हैं। अब पक्का बन चुका है मंच
उनसे बात करने के बाद दैनिक भास्कर की टीम गांव में रास्तों से होते हुए रामलीला स्थल तक पहुंचे । रामलीला स्थल पर बाकायदा पक्का मंच बनाया गया है और बगल में ही का मंदिर है। शुरू में इस पक्के मंच की जगह बांस और बल्लियों से सजाकर स्टेज बनाया जाता था। अब बाकायदा पक्का मंच बन गया है । मंच के पास ही हमें प्रभु देवी मिली। 80 वर्षीय प्रभु देवी बताती हैं- शादी के बाद जब वह इस गांव आईं, तब से ही रामलीला देख रही हैं। उनके घर का एक कमरा रामलीला के समान के लिए आरक्षित है। वह बताती हैं कि मंचन के समय कलाकार वहीं सजते और संवारते हैं। उनका कहना है कि भगवान की कृपा से यहाँ की रामलीला जैसी आयोजन कहीं और नहीं होता। पहले दिन से ही दर्शकों की भीड़ जुट जाती है। रामलीला में भाग लेने के लिए छुट्टी लेकर पहुंचते हैं गांव
फिलहाल इस रामलीला कमेटी की जिम्मेदारी अगली पीढ़ियां बखूबी निभा रही है। कमेटी के मेंबर प्रभाकर दूबे बताते हैं- उनके पूर्वजों ने इस रामलीला को शुरू किया था और उन्हें ये धरोहर के रूप में मिली है । और हम लोग उसे बखूबी निभाते हुए चले आ रहे हैं । वो बताते हैं की जो जो पात्र अभिनय करते हैं उसमें से कई लोग दिल्ली, मुंबई , लखनऊ और अन्य शहरों में रहते हैं, लेकिन जैसे ही रामलीला का मंचन शुरू होता है। हम लोग अपने ऑफिस से छुट्टी लेकर वापस गांव आते हैं और बड़े ही भक्ति भावना के साथ अपना किरदार निभाते हैं। 90 साल पूरे होने पर भव्य कार्यक्रम होगा
श्री रामलीला कमेटी मैलहन के 90 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कमेटी इस बार एक भव्य महोत्सव का आयोजन भी कर रही है । आयोजक हिमांशू ने बताया कि 25 सितंबर को इस भव्य महोत्सव के साथ रामलीला का आगाज होगा और 7 दिनों तक लगातार गांव भर में चौकी निकलेगी और उसके बाद 2 अक्टूबर को दशहरा का मेला आयोजित होगा। भरत मिलाप के साथ इस बार भी राम लीला का समापन होगा। इस कार्यक्रम में भदोही सांसद डॉ . विनोद बिंद, पूर्व विधायक उदयभान करवरिया , ब्लॉक प्रमुख शशांक मिश्रा समेत कई लोग शामिल होंगे। गांव की पहचान और धड़कन है रामलीला
मैलहन गांव की 92 साल पुरानी रामलीला सिर्फ़ धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा की जड़ है। पीढ़ियां बदल गईं, मंच बदल गया, रोशनी और साज़-सज्जा बदली, लेकिन श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की लौ आज भी उतनी ही प्रज्ज्वलित है, जितनी 1935 में थी। यही वजह है कि यह रामलीला आज भी गंगा पार की पहचान और गांव की धड़कन बनी हुई है।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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