यूपी में जलती चिताओं से हडि्डयां गायब हो रहीं:8 महीने से लोग परेशान; क्या दिवाली पर तंत्र–मंत्र के लिए तांत्रिक चुरा रहे
यूपी में बागपत के हिम्मतपुर सूजती गांव में लोग डरे हुए हैं। श्मशान घाट से अस्थियां गायब हो रही हैं। कुछ दिन पहले एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार हुआ। परिवार जब तीसरे दिन अस्थियां लेने गया, तो चिता के पास दीपक जल रहा था, उपले सुलग रहे थे और तंत्र-मंत्र का सामान बिखरा हुआ था। अस्थियां गायब थीं। पिछले आठ महीनों से श्मशान में ऐसी ही घटनाएं हो रही हैं। गांव वाले बताते हैं- पहले लगता था किसी जानवर का काम होगा, लेकिन हर बार चिता के पास पूजा-सामग्री, अगरबत्ती, नींबू और राख मिलती है। प्रशासन का कहना है की ऐसी शिकायतें मिल रही हैं, हमारी टीम जांच कर रही है। अस्थियां कहां जा रही हैं? क्या यह किसी गिरोह का काम है, जो धार्मिक अवशेषों का गलत इस्तेमाल कर रहा है? या फिर यह अंधविश्वास और तांत्रिक प्रथाओं से जुड़ा मामला है। हिंदू मान्यता के अनुसार अस्थि-विसर्जन मोक्ष प्राप्ति का अंतिम कर्म है। शास्त्रों में अस्थि विसर्जन को लेकर क्या है नियम ? श्मशान घाटों की सुरक्षा को लेकर यह मामला राज्य-स्तर पर जांच योग्य बन गया है। सबसे पहले ये केस पढ़िए …. केस 1: 10 अक्टूबर, 2025 को मेरठ के अजराड़ा गांव के श्मशान घाट पर तीन लोग तंत्र क्रिया करते और जलती चिता से अधजले शव के अंग निकालते देखे गए। मौके पर शव की खोपड़ी अलग रखी थी, और पास में मिट्टी के बर्तन में चावल पक रहे थे। श्मशान घाट गांव से करीब दो किलोमीटर दूर है। जब ग्रामीणों ने यह देखा तो वे गुस्से में आ गए और तीनों की जमकर पिटाई कर दी। इस दौरान एक व्यक्ति मौके से भागने में सफल रहा। सूचना पर पहुंची पुलिस ने दो आरोपियों को हिरासत में लेकर जांच शुरू कर दी। ग्रामीणों ने शक जताया है कि यही लोग पहले भी कब्रिस्तान से शव निकालकर तंत्र क्रिया करते रहे हैं। उनका कहना है कि पहले कब्रें खुदी मिलती थीं, जिसे जानवरों का काम समझा जाता था, लेकिन अब शक इन्हीं पर है। पुलिस के अनुसार, चिता की आंच पर मटके में चावल पक रहे थे, लेकिन खोपड़ी में चावल पकाने जैसी बात की पुष्टि नहीं हुई है। केस 2: यूपी के बिजनौर में 85 वर्षीय कारी सैफुर्रहमान की कब्र खोदी गई और उनका सिर गायब पाया गया। यह घटना 23 सितंबर, 2024 को उस समय सामने आई, जब कुछ स्थानीय लोग फातिहा पढ़ने के लिए कब्रिस्तान पहुंचे और देखा कि कारी की कब्र खुली हुई है और शव का सिर गायब है। पुलिस ने घटनास्थल से तंत्र-मंत्र से संबंधित सामग्री जैसे केले के पत्ते, एक लौकी पर उकेरे गए शब्द और जानवरों के पंख जब्त किए हैं, जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि सिर को तांत्रिक क्रिया के लिए निकाला गया है। अस्थियां कहां जा रही हैं? तंत्र मंत्र की आशंका?
बागपत के हिम्मतपुर सूजती गांव में जलती चिता के बाद अस्थियों के गायब होने की लगातार घटनाएं हो रही हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि अस्थियां कौन गायब कर रहा है? गांववालों काे शक है कि इस काम में किसी गिरोह का हाथ है, जो तंत्र–मंत्र में मानव अवशेषों का इस्तेमाल करता है। इसकी आशंका इसलिए भी ज्यादा है कि जहां से अवशेष गायब होते हैं, वहां अक्सर तंत्र-मंत्र की सामग्री, अगरबत्ती, नींबू, राख और दीपक पाए गए। क्या अस्थियों से होता है तंत्र-मंत्र?
वाराणसी में बीएचयू के ज्योतिषाचार्य श्रीधर पांडे के अनुसार, श्मशान में रात के समय की जाने वाली पूजा और क्रियाएं कई लोग करते हैं। श्मशान की क्रिया के दौरान व्यक्ति अपने मन की चिंता और पाप को भस्म के माध्यम से नष्ट करने की मान्यता रखते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से साधक सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। अस्थियां जल जाने के बाद उनकी पूजा की जाती है और इसे भगवान की आरती के रूप में देखा जाता है। उदाहरण के लिए, उज्जैन में भोलेनाथ की अस्थियों को शुद्ध करके आरती की जाती थी। कुछ मामलों में अस्थियों या शव के अवशेषों से तंत्र-मंत्र संबंधी क्रियाओं की आशंका जताई जाती है, क्योंकि कुछ परिवार के लोग परिवार के निधन के बाद शव को जलाकर तुंरत चले जाते हैं, उसके बाद कुछ लोग अपनी मंशा पूरी करने के लिए अस्थियों के साथ तंत्र-मंत्र की क्रियाएं करते हैं। श्रीधर पांडे के अनुसार, अस्थि संचयन और पूजा की यह प्रथा पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार है, लेकिन आजकल कुछ लोग इसे तंत्र-मंत्र के उद्देश्य से भी करते हैं। वाम मार्ग या अघोरी साधक अस्थि, राख, खोपड़ी या अन्य अवशेषों का उपयोग करते हैं। इनका उद्देश्य प्रेतात्माओं, असुर शक्तियों या विशेष सिद्धियों के लिए होता है। क्या दिवाली में तंत्र पूजा के लिए हडि्डयां चुराई जा रही हैं? श्रीधर पांडेय कहते हैं- सामान्य पारंपरिक पूजा में शव अवशेषों का प्रयोग कभी नहीं होता। ऐसी क्रियाएं अक्सर रात्रि में अमावस्या, शाम या विशेष योग के समय की जाती हैं। दिवाली पर तंत्र साधना होती है। साधक मंत्रोच्चारण, यज्ञ, हवन और अन्य रासायनिक/तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से शक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इसलिए इस ओर भी लोगों को शक जा रहा है। शास्त्र स्पष्ट करते हैं कि मृतक के अवशेषों का दुरुपयोग करना पाप और काले कर्मों की श्रेणी में आता है। पारंपरिक धर्म और गृहस्थ जीवन में यह वर्जित और अनैतिक माना जाता है। काशी के हरिश्चंद्र घाट स्थित अघोर पीठ के पीठाधीश्वर कपाली बाबा का कहना है कि जली हुई अस्थियों (हड्डियों) का कोई धार्मिक या तांत्रिक उपयोग नहीं होता है। वे बताते हैं- इन अस्थियों को पूजा-पाठ या तंत्र-मंत्र साधना में इस्तेमाल नहीं किया जाता। हां कुछ लोग इनका वैज्ञानिक या औषधीय उपयोग करते हैं। वहीं कुछ लोग इसकी स्मगलिंग भी करते हैं। शास्त्रों में अस्थि विसर्जन को लेकर क्या है नियम?
शव का अंतिम संस्कार और अस्थियों का विसर्जन पुत्र या परिवार के पुरुष सदस्य द्वारा किया जाता है। इसे मृतक के पितृ तर्पण और पिंडदान की प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है। विसर्जन करने से मृतक की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अस्थियों को जल में विसर्जित करने से पहले शुद्ध करना आवश्यक है। परिवार के अनुसार स्नान और मंत्रोच्चारण के बाद विसर्जन किया जाता है। परंपरा के अनुसार सूर्योदय या दिन में उचित समय को प्राथमिकता दी जाती है। कुछ स्थानों पर अस्थियों को संग्रहित (संचय) कर अस्थि पूजा भी की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि अस्थियों का दुरुपयोग या तंत्र-मंत्र के लिए प्रयोग नहीं होना चाहिए। खोपड़ी का क्या करते है साधक?
बीएचयू के एस्ट्रोलॉजर विनोद पांडेय बताते है- इंसानी खोपड़ी सत्य का प्रतीक है। साधक का काम खोपड़ी में जो भी शक्ति है, उसे जगाना है। अघोरी साधक खोपड़ियों को सिद्ध करके क्रिया करते हैं। कई अघोरी साधक कपाल का प्रयोग पूजा के पात्र (भोजन या जल रखने के पात्र) के रूप में करते हैं, जो इस विचार का संकेत है कि जीवन और मृत्यु में कोई भेद नहीं। यह त्याग और निर्भयता का प्रतीक माना जाता है। कुछ साधक इसे केवल धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा मानते हैं, जिसमें किसी प्रकार की हिंसा या अनुचित कर्म नहीं होते। कौन हैं अघोरी बाबा?
अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे कहते हैं, जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो। जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है। अलग है अघोरियों की दुनिया
अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं, उसे सब कुछ दे देते हैं। अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं, जो सुनकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं। अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव, शव और श्मशान साधना। शिव साधना में शव (मुर्दा) के ऊपर पैर रखकर साधना की जाती है। शव साधना शव पर बैठकर की जाती है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और शराब चढ़ाई जाती है। श्मशान साधना। इसमें शवपीठ (जहां शवों को जलाते हैं) की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल व मावा चढ़ाया जाता है। …………………… ये खबर भी पढ़ें… गोरखपुर के पुरुष सबसे ज्यादा घरेलू काम करते हैं:लखनऊ वाले सबसे पीछे; पत्नी के पीरियड के समय भी हाथ नहीं बंटाते पुरुष घर में कितना हाथ बंटाते हैं? इस पर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। एक पुरुष औसत 11 मिनट घरेलू काम करता है। इस सर्वे में यूपी के 3 शहर हैं, जहां के पुरुष घर का काम ज्यादा करते हैं। यह रिपोर्ट सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के यूपी और देश के दूसरे राज्यों में साढ़े 5 साल तक किए गए सर्वे में आई। एनजीओ ने यह सर्वे ‘गृह साथी कार्य’ नाम से किया है। सर्वे में कुल 13,400 पुरुष-महिलाओं ने हिस्सा लिया। पढ़िए यूपी के वो किन शहरों के पुरुष हैं, जाे सबसे ज्यादा घरेलू काम करते हैं? सबसे कम कहां के पुरुष करते हैं? जब पत्नी को जरूरत होती है, तब कितना किचन में काम करते हैं? पढ़िए पूरी खबर…
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