टिकट की दौड़ में शामिल नेता पूरी पूंजी दांव पर लगाने को तैयार, जमीन-मकान बेचने पर आमादा
चुनावी माहौल के गर्माते ही राजनीति के गलियारों में टिकट की दौड़ तेज हो गई है. विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे नेता अब किसी भी कीमत पर टिकट पाने पर चुनाव के लिए अपनी पूरी पूंजी झोंकने को तैयार हैं. कई दावेदार तो अपनी जमीन-जायदाद तक बेचने की सोच रहे हैं ताकि प्रचार और पहुंच बनाने में कोई कमी न रह जाए. कोई जमीन का बयाना भी उठा चुका है तो कोई मकान गिरवी रखने की तैयारी कर रहा है, आर्थिक स्थिति मजबूत करने के इरादे से टिकट के कई दावेदार जमीन जायदाद तक बेच रहे हैं. हर नेता खुद को टिकट की सूची में शामिल कराने की हर संभव कोशिश कर रहा है.
वहीं गठबंधन के अंदर सीट बंटवारे पर अभी तक सहमति नहीं बनने से अंदरखाने में तनाव भी बड़ा है, कई क्षेत्रों में एक ही सीट पर 3-4 दावेदार होने से पार्टी पर दबाव भी बना है. पार्टी का टिकट पाने की होड़ में संभावित उम्मीदवारों ने महीनों पहले से क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान तेज कर रखा है. बैनर-पोस्टर, कार्यकर्ता सम्मेलन, जनता भोज और सोशल मीडिया प्रचार पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. स्थानीय सूत्र बताते हैं कि कुछ नेता तो पार्टी हाईकमान तक सिफारिश पहुंचाने के लिए भी मोटी रकम खर्च कर रहे हैं.
चुनाव के लिए संपत्ति बेचने की प्रक्रिया शुरू
एक स्थानीय कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, आजकल टिकट सिर्फ जनाधार से नहीं मिलता, पार्टी फंडिंग और संपर्क भी उतने ही अहम हैं. जो जितना खर्च कर सकता है, उसकी दावेदारी उतनी मजबूत मानी जाती है. कुछ नेता टिकट पाने को लेकर इतने अस्वस्थ है कि उन्होंने पहले ही संपत्ति बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी एक दावेदार ने दावा किया कि उनका नाम सूची में शीर्ष पर है इसलिए उन्होंने जमीन का बायना तक उठा लिया, उनका कहना है कि एक टुकड़ा जमीन बेचने से चुनाव का सारा खर्च निकल जाएगा.
दूसरी ओर एक नेता ने मकान बेचने के लिए महाजन से बात तक कर ली है, उनका कहना है कि जैसे ही पार्टी स्तर से नाम की घोषणा होगी वैसे ही खर्च करने के लिए हाथ में पैसे का होना जरूरी है, ऐसे में नेता लगातार पटना का चक्कर भी लगा रहे हैं.
चुनावी खर्च को लेकर चिंता में उम्मीदवार
कई क्षेत्रों में देखा जा रहा है कि पुराने नेताओं को भी अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए खर्च बढ़ाना पड़ रहा है. वहीं नए चेहरे टिकट की उम्मीद में हर राजनीतिक समीकरण को साधने में जुटे हैं. चुनावी खर्च को लेकर परिवारों में भी मतभेद उभरने लगे हैं. कुछ दावेदारों ने तो अपने मकान या खेत गिरवी रख दिए हैं ताकि प्रचार और पार्टी गतिविधियों के खर्च पूरे किए जा सकें. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आज की राजनीति में टिकट सेवा नहीं, बल्कि निवेश बनता जा रहा है. पहले जहां जनाधार, ईमानदारी और कार्यकर्ता आधार से उम्मीदें बंधी रहती थीं, वहीं अब आर्थिक शक्ति और नेटवर्किंग मुख्य कारक बन गए हैं.
कुल मिलाकर नेता चुनाव में अपनी पूरी पूंजी दाव पर लगाने को तैयार है टिकट की राजनीति में समर्पण सौदेबाजी और जोड़-तोड़ का अनोखा संगम देखने को मिल रहा है. फिलहाल टिकट की इस दौड़ में हर उम्मीदवार अपने भविष्य की बाज़ी लगा चुका है. अब देखना यह होगा कि किसकी यह महंगी जद्दोजहद पार्टी हाईकमान की नजर में काम आती है और कौन हाथ मलता रह जाता है.
रिपोर्ट- शिवम, भागलपुर
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