क्या विचाराधीन कैदियों को मिल सकता है वोट करने का अधिकार? सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन कैदियों को मतदान करने के अधिकार को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. याचिका में स्थानीय कैदियों के लिए जेलों में मतदान केंद्र स्थापित करने को लेकर दिशा निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है.
सुनीता शर्मा की याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) को चुनौती दी गई है, जो लगभग 5 लाख विचाराधीन कैदियों को वोट देने से रोकती है. सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्तों में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है.
याचिकाकर्ता ने दिया ये तर्क
सुनीता शर्मा की याचिका पर वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दलील दी गई है. इस मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई की बेंच ने नोटिस जारी किया है. सुनीता शर्मा की तरफ से दायर याचिका में देश भर के लगभग 5 लाख विचाराधीन कैदियों को मतदान का अधिकार देने की मांग की गई है.
याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि विचाराधीन कैदी जिन्हें निर्दोष माना जाता है. उनको मतदान का अधिकार क्यों नहीं है? इसके अलावा जमानत पर रिहा होने वाले लोग जबकि मतदान कर सकते हैं.
क्यों नहीं है कैदियों को मतदान का अधिकार?
भारत में विचाराधीन कैदियों को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के कारण मतदान करने का अधिकार नहीं है, जो वैध पुलिस हिरासत में या जेल में बंद किसी भी व्यक्ति को मतदान करने से प्रतिबंधित करता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को जन सुरक्षा, प्रशासनिक सुविधा और चुनावों की निष्पक्षता बनाए रखने सहित कई औचित्यों के आधार पर बरकरार रखा था.
कानून का उल्लंघन करने वाला नहीं दे सकता वोट
जेल में बंद कैदी किसी भी चुनाव में वोट नहीं दे सकते हैं. पुलिस हिरासत में मौजूद व्यक्ति वोट नहीं दे सकता है. इसके अलावा जिन कैदियों को कोर्ट से सजा सुनाई जा चुकी है, वे भी वोट नहीं कर सकते हैं. वहीं अगर कोई व्यक्ति विचाराधीन है और इस कारण न्यायिक हिरासत या पुलिस कस्टडी में हैं, तो उसे भी वोट डालने का अधिकार नहीं होता है. मतदान करना एक कानूनी अधिकार होता है जबकि कानून का उल्लंघन करने वाले इसके इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
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