News9 Global Summit 2025 में गूंजी महिलाओं की आवाज, ‘सपनों का कोई जेंडर नहीं होता’

News9 Global Summit 2025 में गूंजी महिलाओं की आवाज, ‘सपनों का कोई जेंडर नहीं होता’

जर्मनी में गुरुवार को News9 Global Summit 2025 के दूसरे एडिशन की शुरुआत हुई. इस दौरान Strength to Strength: Women in Leadership विषय पर हुई चर्चा में भारत और जर्मनी की चार प्रभावशाली महिलाओं कैप्टन ज़ोया अग्रवाल (वरिष्ठ कमांडर, एयर इंडिया), डॉ. सरिता ऐलावत (सह-संस्थापक, Bot Lab Dynamics), वैनेसा बाखोफ़र (प्रबंध निदेशक, Mark & Schneider GmbH) और एवेलिन डी ग्रुइटर (प्रबंध निदेशक, जर्मन महिला उद्यमी संघ) — ने अपने विचार साझा किए.

डॉ. सरिता ऐलावत ने कही ये बात

केवल बोर्डरूम में महिला की मौजूदगी काफी नहीं है, बल्कि उन्हें समान अवसर और निर्णय लेने की शक्ति देना जरूरी है. उन्होंने बताया कि उनका स्टार्टअप Bot Lab Dynamics, IIT दिल्ली से जुड़ा है और दुनिया की टॉप ड्रोन कंपनियों में से एक है. हम हजारों ड्रोन एक साथ उड़ा सकते हैं, लेकिन 250 इंजीनियरों की टीम में महिलाओं की संख्या 10% से भी कम है, उन्होंने कहा उनका मानना है कि जब तक महिलाओं की भागीदारी 50-50 नहीं होगी, असली प्रतिनिधित्व नहीं आ पाएगा.

वैनेसा बाखोफ़र ने कही ये बात

उनके क्षेत्र में 75% महिलाएं काम करती हैं, लेकिन उनमें से आधी पार्ट-टाइम कर्मचारी हैं. वर्तमान में करीब 40,000 नौकरियां खाली हैं, और अगले दशक में यह संख्या एक लाख तक पहुंच सकती है. इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं फुल-टाइम काम करें, उन्होंने कहा। वैनेसा ने लचीले वर्क मॉडल, भरोसेमंद डे-केयर और महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाओं में लाने की जरूरत पर जोर दिया.

कैप्टन ज़ोया अग्रवाल ने कही ये बात

अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, जब मैंने करियर शुरू किया, तो मैं अपनी संस्था में पांचवीं और सबसे युवा पायलट थी. मुझे खुद को साबित करने के लिए पुरुष साथियों से 200% ज्यादा मेहनत करनी पड़ी. लेकिन सवाल है ऐसा सिर्फ महिलाओं को ही क्यों करना पड़ता है? उन्होंने कहा कि असली बदलाव हमारी सोच से शुरू होता है. जब तक हम अपने बच्चों में लड़का-लड़की का फर्क करना नहीं छोड़ेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा. याद रखिए सपनों का कोई जेंडर नहीं होता.

एवेलिन डी ग्रुइटर ने कही ये बात

एवेलिन डी ग्रुइटर ने बताया कि उनका संगठन 1950 के दशक में उस दौर में बना, जब जर्मनी में महिलाओं को काम करने या बैंक अकाउंट खोलने के लिए पति की अनुमति लेनी पड़ती थी. उन्होंने कहा, बहुत कुछ बदल चुका है, लेकिन अब भी कई दीवारें तोड़नी बाकी हैं. केवल बोर्ड में महिलाओं की मौजूदगी काफी नहीं, कंपनियों की संस्कृति में भी बदलाव जरूरी है.

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