सहारा को ₹100 के स्टांप पर 173 एकड़ जमीन मिली:1997 में ही लीज रद्द का नोटिस मिला; कर्मचारी बोले- आत्महत्या भी नहीं कर सकते

‘मैं यहां 1999 से काम कर रहा हूं। सहारा के शानदार दिनों के साथ उसकी बर्बादी के दिन भी देखे। 2014 के बाद स्थिति खराब होती गई। उस वक्त लगा कि ठीक हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कभी सैलरी मिली, कभी नहीं मिली। अब स्थिति यह हो गई है कि अगर मैं आत्महत्या करने की चाहूं, तो माचिस तक नहीं खरीद सकता।’ ये शब्द सहारा सिटी के सुरक्षाकर्मी साहुन खान के हैं। सहारा सिटी को लखनऊ नगर निगम ने सील कर दिया है। साहुन खान के जैसे ही करीब 50 कर्मचारी इस वक्त गेट पर हैं। इन लोगों को समझ ही नहीं आ रहा कि आगे क्या किया जाए? क्योंकि, इनमें कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने जीवन के 15 से 20 साल सहारा सिटी में नौकरी करके बिता दिए। आखिर सहारा सिटी को किन शर्तों पर यह जमीन मिली थी? 3 साल बाद ही क्यों केस शुरू हो गए? किन शर्तों के उल्लंघन के चलते उनसे यह जमीन ली जा रही? जो कर्मचारी अब बेरोजगार हो गए, उनका क्या होगा? कंपनी किस आधार पर कोर्ट गई? क्या वहां राहत की संभावना है? इन सारे सवालों के जवाब तलाशने दैनिक भास्कर की टीम सहारा सिटी पहुंची। आइए सब कुछ एक तरफ से जानते हैं… 100 रुपए के स्टांप पर 173 एकड़ जमीन मिली
1994 में यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव उस वक्त सीएम थे। सहारा प्रमुख सुब्रत राय ने लखनऊ में जमीन की इच्छा जताई। मुलायम सिंह की सहमति पर नगर निगम ने गोमती नगर इलाके में 173 एकड़ जमीन लीज पर दे दी। यह पूरी लीज 100 रुपए के स्टांप पेपर पर थी। इस लीज के अंतर्गत सहारा को 130 एकड़ जमीन पर आवासीय और व्यापारिक योजना शुरू करनी थी। बाकी के 43 एकड़ में पेड़-पौधे लगाने थे और उनकी देखभाल करनी थी। आवासीय योजना से नगर निगम को करीब 150 करोड़ रुपए मिलने थे। सहारा सिटी के अंदर निर्माण शुरू हुआ। 5000 लोगों के बैठने का मीटिंग हॉल बना, थिएटर बना, कोठी बनी। जल महल से लेकर कंपनी के ऑफिस बने, लेकिन यहां आवासीय योजना जैसा कुछ नहीं बना। 1997 में उस वक्त के नगर आयुक्त दिवाकर त्रिपाठी ने चेकिंग की। लेकिन, उन्हें अंदर लीज की शर्तों से जुड़ी चीजें नहीं मिली। इसलिए उन्होंने लीज निरस्त करने का नोटिस जारी कर दिया। उस वक्त सहारा परिवार कोर्ट चला गया। यह पहला मौका था, जब सहारा सिटी को लेकर कोर्ट केस शुरू हुआ। अंदर किसी तरह का कोई आवासीय परिसर नहीं
6 सितंबर, 2025 को लखनऊ नगर निगम ने सहारा सिटी को सील कर दिया। अंदर के सारे कर्मचारियों को बाहर कर दिया। एक दरवाजे को छोड़कर सभी दरवाजों पर ताला जड़ दिया। नगर निगम के सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया गया। सहारा के अंदर जो सुरक्षाकर्मी और बाकी कर्मचारी थे, वो अब सहारा के बाहर अपने अधिकारियों और उनके फैसलों का इंतजार कर रहे हैं। इन्हीं में से एक सुरक्षाकर्मी नरेंद्र सिंह से हमारी मुलाकात हुई। वह कहते हैं- हम यहां 20 साल से काम कर रहे हैं। जब से सील हुआ, तब से हम लोग यहीं आकर बैठ जाते हैं। हमें अपने अधिकारी का इंतजार है। वो आएं और बताएं कि अब कहां ड्यूटी करनी है? हमारे जैसे 100 से ज्यादा लोग हैं। कई ऐसे हैं, जिन्हें सैलरी ही नहीं मिली। 2014 से पहले तक स्थिति ठीक थी, लेकिन उसके बाद सिर्फ टोकन मनी मिल रही। कभी 9 हजार, तो कभी 11 हजार। कभी पूरी सैलरी नहीं मिलती। हर साल में 2-4 महीने बिना सैलरी के ही बीते हैं। सहारा की बर्बादी की वजह ये खुद
सहारा के कर्मचारी शिवशंकर सिंह कहते हैं- हम 18 साल से सहारा के लिए काम कर रहे। 2014 के बाद सैलरी का पूरा सिस्टम खराब हो गया। अब नगर निगम ने जो कुछ किया है, वो अच्छा है। लीज खत्म हुई, इसलिए उन्होंने कब्जा किया है। इनकी बर्बादी की वजह ये खुद हैं। जो कुछ बनाना चाहिए था, वह बनाया ही नहीं। आज हमारे जैसे कर्मचारी बेरोजगार हो गए। मेरी तो बस यही अपील है कि नगर निगम को इस पर विचार करना चाहिए। मायावती ने कार्रवाई शुरू की, कोर्ट ने रोक दिया
2007 में प्रदेश में बसपा की सरकार बनी। मायावती सीएम बनीं। उस वक्त तक सहारा सिटी पूरी तरह से विकसित हो चुकी थी। पूरे देश में सहारा एक बहुत बड़ी कंपनी बन चुकी थी। सहाराश्री सुब्रत राय के बड़े नेताओं से अच्छे रिश्ते थे। 17 जून, 2008 को तत्कालीन सीएम मायावती के आदेश पर लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) सहारा सिटी के एक हिस्से को अवैध बताते हुए तोड़ दिया। आरोप था कि सड़क की जमीन पर अवैध कब्जा करके यहां इमारत बनाई गई। सहारा इसके खिलाफ हाईकोर्ट चला गया। जस्टिस अल्तमस कबीर की खंडपीठ ने इस कार्रवाई को गैरकानूनी करार दिया। LDA को आदेश दिया कि अगले 24 घंटे में सहारा को यह जमीन लौटा दिया जाए। इस फैसले के खिलाफ मायावती सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सरकार ने दलील दी कि सहारा लीज की शर्तों का उल्लंघन कर रहा। हाईकोर्ट का जो आदेश है, वह उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। बाद के दिनों में सहारा ने फिर से निर्माण कर लिए। मैंने सहारा के उत्थान से पतन तक को देखा
सहारा सिटी के गेट नंबर- 2 पर हमें राजस्थान के साहुन खान मिले। वह सहारा सिटी में 1999 से काम कर रहे हैं। साहुन कहते हैं- आज मुझे यह दिन देखना पड़ रहा कि मेरे घर पर चूल्हा नहीं जल पा रहा। स्थिति ऐसी हो गई है कि किराएदार और राशन वाले को पैसा नहीं दे पा रहा हूं। बेटा बीटेक कर रहा है। 2 साल हो गया है, दो साल बचे हैं। अब उसे कहां से पैसा दूंगा, कुछ समझ नहीं आ रहा। अब तो ऐसा लगता है कि बच्चों को वापस राजस्थान लेकर जाना पड़ेगा। मेरी स्थिति तो कुछ ऐसी हो गई है कि आत्महत्या के लिए माचिस तक नहीं खरीद सकता। साहुन कहते हैं- सहारा की संपत्तियों को अडानी के हाथों बेचने की बात शुरू हुई। सहारा सिटी को भी प्रॉपर्टी सेलिंग में डाल दिया। इसके बाद ही तो नगर निगम एक्टिव हुई। क्योंकि सहारा सिटी तो लीज की जमीन पर बना है, आखिर इसे कैसे बेचा जा सकता है? इन्होंने गलत किया, इसलिए नगर निगम को आज इसे सील करना पड़ा। बाकी अंदर कोई आवासीय योजना नहीं है। वहां सिर्फ एक आवास है, वह सुब्रत राय की कोठी है। सहारा ने सूची जारी की, लेकिन घर नहीं बनाए
2014 के बाद से सहारा परिवार मुकदमों में उलझता चला गया। उस वक्त सहारा सिटी पर भी आंच आनी तय हो गई थी। तभी सहारा ने 15 आवंटियों की एक सूची जारी कर दी। LDA को आवासीय योजना का नक्शा भेज दिया। सहारा की यह दिखाने की कोशिश थी कि आवासीय परियोजना पर काम हो रहा है। इसी को कोर्ट में पेश करके वक्त मांगा गया। जिन 15 लोगों की सूची जारी की गई, उसमें 5 लखनऊ के और 4 गोरखपुर के थे। ये कभी भी सामने नहीं आए। सहारा का दावा- 2480 करोड़ रुपए खर्च किए
नगर निगम की कार्रवाई के खिलाफ सहारा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 8 अक्टूबर को याचिका दायर की। जस्टिस संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय ने मामले की सुनवाई की। लेकिन, सहारा को किसी तरह से राहत नहीं दी। अगली तारीख 30 अक्टूबर लगाई है। इस तरह से नगर निगम के जरिए हुई कार्रवाई पर फिलहाल अभी कोई रोक नहीं होगी। सहारा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि सहारा सिटी के अंदर 2480 करोड़ रुपए 87 आवासीय और व्यवसायिक परियोजना विकसित की गई है। यह सभी काम नगर निगम की स्वीकृति से किया गया। लीज की जो शर्त है, उसका भी पूरा पालन किया गया। पूरा मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन है। कोर्ट ने इसे यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसके बावजूद नगर निगम ने कार्रवाई शुरू कर दी। यह कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। सहारा सिटी में नई विधानसभा बनाने की अटकलें
यूपी का विधानसभा भवन करीब 100 साल पुराना हो चुका है। सरकार को नई विधानसभा के लिए जगह की तलाश है। अभी तक इस बात की चर्चा थी कि रायबरेली-लखनऊ रोड पर नई विधानसभा बनाई जा सकती है। लेकिन, सहारा की इस जमीन पर हुई कार्रवाई के बाद अब चर्चा है कि इसका प्रयोग नई विधानसभा के रूप में किया जा सकता है। क्योंकि यहां सहारा की 173 एकड़ जमीन के साथ करीब 72 एकड़ जमीन LDA के पास भी है। कुल मिलाकर 245 एकड़ जमीन। यह जगह ट्रैफिक और बसावट के हिसाब से एकदम फिट है। हालांकि, इस पर आखिरी फैसला सरकार का ही होगा। ……………………………. ये खबर भी पढें… केशव मौर्य सिर्फ नाम के डिप्टी CM- स्वामी प्रसाद मौर्या, योगी को बहराइच-फतेहपुर का गजवा-ए-हिंद नहीं दिखता बरेली में जो कुछ हुआ, उसकी जिम्मेदार सरकार है। सीएम की भाषा सुनी, कि हम ‘गजवा-ए-हिंद’ नहीं बनने देंगे। लेकिन जब बहराइच जल रहा था, दंगाई मुस्लिमों की दुकानें जला रहे थे, घर पर चढ़कर मजहबी झंडे उतारे जा रहे थे, उस दिन ‘गजवा-ए-हिंद’ क्यों नहीं दिखाई दिया? ये कहना है बसपा, भाजपा और सपा में रहने के बाद अपनी जनता पार्टी का गठन करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का…. स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं- वे केशव से बड़े नेता हैं और जनता के नेता हैं। भाजपा केशव मौर्य का जितना कद बढ़ाती है, वे उतना ही कमजोर होते जाते हैं। आज केशव मौर्य जी का यूपी की राजनीति से पूरे का पूरा सूपड़ा साफ हो चुका है। केवल डिप्टी सीएम हैं, इतनी पहचान रह गई है। ये बातें स्वामी प्रसाद मौर्य ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान कहीं। पढ़िए पूरी खबर…

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