जीते-जी साथ रहे, अंतिम सांस तक नहीं छोड़ा हाथ:प्रयागराज में दोस्ती की अनूठी मिसाल, साथ लौटी अर्थियां, मोहल्ले वाले भी नहीं रोक पाए आंसू
दोस्ती की ऐसी मिसाल बहुत कम देखने को मिलती है। खुल्दाबाद के लकड़मंडी भुसौली टोला, करेली के गंगानगर और झूंसी के अंदावा के चार दोस्त एक ही बारात में गए थे। हंसते, गुनगुनाते और जिंदगी की बातें करते हुए सभी खुश थे। लेकिन बुधवार की भोर में फतेहपुर के पास जो हादसा हुआ, उसने चार घरों की खुशियां छीन लीं। जिस मोहल्ले से बारात हंसी-खुशी रवाना हुई थी, वहीं रात में चार अर्थियां एक साथ लौटीं। पूरे इलाके में सन्नाटा था, हर आंख नम थी। कोई शुभम को याद कर रो रहा था, कोई राहुल को, कोई रितेश की मुस्कान ढूंढ रहा था, तो कोई शिवम के लौटने की उम्मीद में दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठा था। मौत भी अलग नहीं कर सकी लकड़मंडी, गंगानगर और अंदावा के इन चारों दोस्तों की दोस्ती पूरे मोहल्ले में मिसाल थी। जहां भी जाते, साथ जाते थे। बुधवार की सुबह मौत भी उन्हें अलग नहीं कर सकी। फतेहपुर हाईवे पर बड़ौरी ओवरब्रिज के पास स्कॉर्पियो अनियंत्रित होकर तालाब में पलट गई। बारात से लौटते समय चालक ने अचानक नियंत्रण खो दिया। कार पानी में जा गिरी और उसमें मौजूद नौ युवकों में से चार की मौके पर ही मौत हो गई। आसपास के लोगों ने पुलिस की मदद से सभी को बाहर निकाला, लेकिन तब तक चार दोस्तों की सांसें थम चुकी थीं। मोहल्ले में मातम, लोग स्तब्ध जब रात में सात बजे के करीब चारों के शव प्रयागराज पहुंचे तो तीनों मोहल्ले शोक में डूब गए। शादी का घर मातम में बदल गया। खुल्दाबाद में दो दोस्तों की अर्थियां एक साथ उठीं और लोग यही कहते रह गए कि जीवन में साथ रहे, मौत में भी साथ रहे। उधर दो अन्य दोस्तों के शव उनके घरों पर ले जाएं गए तो वहां भी चारों की दोस्ती ही चर्चा में रही। चार घर, चार कहानियां, एक ही दर्द 1. शुभम गुप्ता उर्फ साहिल (22 वर्ष, लकड़मंडी भुसौली टोला) दो बहनों में इकलौता भाई था। पिता संतोष सब्जी बेचते हैं और मां कविता घर संभालती हैं। पिता की मौत के बाद शुभम ही घर का सहारा था। मेडिकल स्टोर में काम कर परिवार का खर्च उठाता था। मां की आंखों में अब बस एक ही सवाल है कि अब घर का सहारा कौन बनेगा। मोबाइल में मुस्कुराती उसकी आखिरी तस्वीर अब यादों का सहारा बन गई है। 2. राहुल (23 वर्ष, लकड़मंडी भुसौली टोला) पांच भाइयों में सबसे बड़ा था। खुल्दाबाद में एक कारखाने में काम करता था। मां अनीता ने उसे बहुत मना किया था कि मत जा बेटा, बारात में, मन नहीं लग रहा। लेकिन दोस्तों की जिद के आगे वह नहीं माना। अब मां की सिसकियां पूरे मोहल्ले को रुला रही हैं। 3. रितेश सोनकर (28 वर्ष, करेली गंगानगर) चार बच्चों के पिता रितेश होटल में खाना बनाता था। पिता की मौत के बाद वही घर का सहारा था। मां रीता बार-बार यही कहती रहीं कि कोई तो कहे, मेरा बेटा थोड़ा देर से आएगा। उनका छोटा बेटा मानसिक रूप से बीमार है। अब रितेश के जाने से पूरा घर सूना हो गया है। 4. शिवम साहू (26 वर्ष, अंदावा, झूंसी) कैटरिंग का काम करता था। पिता मुंबई में कपड़े की फैक्ट्री में नौकरी करते हैं। बारात में जाने से पहले मां सोनल ने कहा था कि भइया जल्दी आना। लेकिन शिवम कफन में लिपटकर वापस आया। मां की चीखें पूरे मोहल्ले को रुला गई। शादी की खुशियां मातम में बदलीं लकड़मंडी भुसौली टोला में मंगलवार को जहां बैंड-बाजे और हंसी-खुशी की गूंज थी, वहीं बुधवार की रात सन्नाटा और चीखें थीं। चार घरों में सिर्फ मातम पसरा था। दूल्हे की मां सुशीला पाल की आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे। वे बार-बार यही कह रही थीं कि बारात गई थी खुशी से, लेकिन लौटी चार जनाजों के साथ। सुशीला के बेटे गौतम की बारात मंगलवार को कानपुर गई थी। इसमें शामिल होने के लिए ही चारों दोस्त गए थे। जहां से लौटते वक्त हादसे का शिकार हो गए।
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