Raaj Kumar Birth Anniversary: राज कुमार की एक्टिंग में था ‘वर्दी’ वाला रौब, कहानी एक स्टाइल आइकॉन की
राज कुमार (Actor Raaj Kumar) आज जीवित होते तो निन्यानवे साल के होते. उनका जन्म 8 अक्तूबर, सन् 1926 में हुआ था. इस हिसाब से साल 2026 में उनकी जन्म शताब्दी मनाई जाएगी. दिलीप कुमार, राजकपूर, देव आनंद और गुरु दत्त जैसी दिग्गज फिल्मी हस्तियों के बरअक्स राज कुमार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे अभिनेता हुए, जो पर्दे पर प्रेमी बनकर इश्क भी करते तो अभिनेत्री को मानो आदेश दे रहे होते थे. उनकी इस अदायगी में पृथ्वीराज कपूर का कड़क अंदाज याद आ जाता. राज कुमार की हर नाजुक और भावुक अदा में भी एक पुलिसवाले का रोबीला भाव छुपा होता था. वह मोहब्बत का इजहार भी अपने तेवर वाले अंदाज में किया करते.
याद कीजिए नील कमल, हीर रांझा, काजल या फिर पाकीजा जैसी फिल्में, इनके किरदार और इनके संवाद. अभिनेता राज कुमार पर चर्चा के दौरान इन फिल्मों को खास तवज्जो नहीं दिया जाता. ज्यादातर ऊंचे डायलॉग वाली फिल्में मसलन सौदागर, हमराज, तिरंगा या फिर पुलिस पब्लिक की बातें ज्यादा होने लग जाती हैं. लेकिन उनकी रोमांटिक किरदार वाली फिल्मों में भी उनका वही रोबीला अंदाज नजर आता है. आखिर इसकी वजह क्या है.
तेेवर वाले अंदाज में मोहब्बत का इजहार करते थे.
राज कुमार हीर रांझा में अमर प्रेमी बने थे तो नील कमल में एक कलाकार थे. इसी तरह काजल में एक शराबी पति तो पाकीजा में एक नवाब बने. इनके अलावा भी रोमांटिक किरदारों वाली उनकी कई फिल्में हैं. उनके हिस्से में दिल एक मंदिर जैसी भावुक कर देने वाली फिल्म भी है. मदर इंडिया में नरगिस के किसान पति का उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली अभिनय किया था. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि उनका कोई भी ऐसा रोल नहीं जिसमें वो किसी के सामने झुके हों. हीर रांझा में वह शान के साथ प्रेमिका की बाहों में जान दे देते हैं, नील कमल में दीवारों में चुनवा दिए जाते हैं लेकिन बादशाह के आगे झुकते नहीं. पूर्व जन्म में राजकुमारी बनीं वहीदा रहमान से मोहब्बत का इजहार करने में खौफ नहीं खाते.
राज कुमार का किरदार कभी किसी के आगे झुका नहीं
पाकीजा में नबाव के किरदार में राज कुमार मीना कुमारी के हुस्न के भले ही एक खास कद्रदान की तरह नजर आते हैं लेकिन जब खूबसूरत पांव को ज़मीं पर न उतारने की हिदायत देते हैं तो उसमें भी एक आदेश सरीखा भाव छुपा होता है. वह इल्तिजा करते से नहीं लगते बल्कि सफर के दौरान एक अनजान हसीना को बड़ी खामोशी से सप्रेम आदेश दे रहे होते हैं- अपने पांव ज़मीं पर मत उतारिएगा, मैले जाएंगे. आवाज में मधुरता तो होती है लेकिन गुजारिश कत्तई नहीं. उनकी संवाद अदायगी में यह स्थायी भाव था.
आखिर इसकी कोई तो वजह होगी कि राज कुमार अपनी हर एक्शन और मेलोड्रामाई फिल्मों के डायलॉग में सामने वाले को डरा देने वाली गर्जना तो करते ही हैं इजहारे मोहब्बत या किसी लाचार किरदार में भी वह याचक वाली मुद्रा में शायद ही नजर आते हैं. कभी सेना के जांबाज अधिकारी बनें, कभी पुलिस अफसर बनें, कभी चंबल के डाकू, कभी किसान, कभी जमींदार- राज कुमार हर बार रौब और ठसक के साथ पर्दे पर दिखाई दिए. सामने वाले को परास्त कर देने वाले तेवर से लैस. उनकी पर्सनाल्टी ऐसे किरदारों पर खूब फबती थी. पैगाम में काम करने दशकों बाद जब वह सौदागर में दिलीप कुमार के सामने तो एक बार फिर पर्दे पर ज्वार भाटा नजर आया.
राज कुमार ताउम्र इसी आइकॉनिक अंदाज के लिए ही जाने गए. बहुत कोशिश करके भी तेवर वाले किरदारों से मुक्त नहीं हो सके. जाहिर है इसकी भी एक खास कहानी है. किसी भी कलाकार के अभिनय के खास मिजाज में उसके बैकग्राउंड और उसकी रीयल लाइफ की झलक आ ही जाती है. गौरतलब है कि राजकुमार मुंबई एक्टर बनने नहीं आए थे बल्कि पुलिस की नौकरी करने आए थे.
एक्टर बनने नहीं बल्कि पुलिस की नौकरी करने आए थे
उनका वास्तविक नाम कुलभूषण पंडित था. वह कश्मीरी पंडित थे. पूर्वज श्रीनगर से थे. लेकिन देश आजाद होने से पहले की बात है, जब उनका परिवार वर्तमान पाकिस्तान स्थित बलूचिस्तान जा बसा था. राज कुमार का जन्म वहीं हुआ था. उन्हें मुंबई में पुलिस सब-इंस्पेक्टर की नौकरी लगी थी. वह पुलिस की नौकरी करने मुंबई आए थे. यह उनकी पहली नौकरी थी. आवाज का जादू रंगमंच पर पहले ही बिखेर चुके थे और अब पर्सनाल्टी पर खाकी वर्दी का रंग भी चढ़ गया था. पुलिस की ड्यूटी करते समय कई बार रौब से बात करने की दरकार होती है. वरना चोर-बदमाश या अन्य अपराधी किस्म के लोग जल्दी से पुलिस की नहीं सुनते. उनकी रोबीले स्टाइल की एक तरह से रीयल लाइफ में जमकर प्रैक्टिस हो गई.
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राज कुमार दिखने में पतले-दुबले लेकिन बोलने में बड़े तेवर दिखाने वाले पुलिस इंस्पेक्टर थे. लोगों से बातें करने का उनका अंदाज निराला था. ऐसा लगता था कि वो स्टेज पर एक्टिंग कर रहे हों. खास बात ये कि राज कुमार की पोस्टिंग जिस थाने में थी, वहां फिल्म वालों का किसी ना किसी काम से आना-जाना लगा रहता था. इसके बाद से ही वह फिल्म कलाकारों के संपर्क में आए. निर्देशकों ने उन्हें अभिनय करने का सुझाव दिया और अपनी आवाज और अंदाज को कैमरे के आगे आजमाने को कहा. वैसे तो राज कुमार को फिल्में देखने का कोई शौक नहीं था. वह बाद के सालों में भी फिल्में कम ही देखते थे. कई बार तो वह अपनी फिल्में भी नहीं देखते थे और अपने साथ काम करने वाली हीरोइनों या दूसरे कलाकारों के नाम भूल जाते थे.
पुलिस की नौकरी छोड़ी लेकिन वर्दी वाला रौब नहीं गया
राज कुमार फिल्मों में अभिनय करने का ऑफर वह ठुकरा नहीं सके. अभिनय प्रारंभ कर दिया. अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राजेंद्र कुमार की तर्ज पर अपना नाम कुलभूषण पंडित से राज कुमार रखा. दिलचस्प बात ये कि उन्होंने फिल्मों में काम करने के लिए पुलिस की नौकरी तो छोड़ दी लेकिन पर्दे पर वर्दे वाले तेवर और रौब को नहीं छोड़ सके. रोल कैसा भी करते, उनके अभिनय से वर्दी वाला रौब टपकता रहता था. कोई आश्चर्य नहीं कि उनका यह रोबीला अंदाज ही सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ.
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