राजा जनक ने यहीं किया कल्पवास, राम-सीता भी यहीं पहुंचे, कर्ण को भी इसी धरा से मिली मुक्ति; कहानी सिमरिया धाम की
कल्पवास परंपरा सदियों से बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया धाम के गंगा तट पर आयोजित होती रही है. देश में धार्मिक आस्था के इस प्रमुख केंद्र पर जाति, धर्म, अमीरी और गरीबी से ऊपर उठकर लोग पर्णकुटी में रहकर श्रद्धाभाव से गंगा की पूजा-अर्चना और मोक्ष पाने के लिए तपस्या करते हैं. आस्था का यही स्वरूप कल्पवास की परंपरा को बेहद ही खास और अलग बनाता है. यह लोग भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करते हैं.
मिथिलांचल के लोगों के लिए बेहद ही खास माने जाने वाले सिमरिया के इस तट पर देश ही नहीं नेपाल के भी श्रद्धालु कल्पवास के लिए आते है. यह पूरे एक महीने तक एक अलग और अनोखी दुनिया का एहसास कराते है. उतर वाहिनी गंगा के तट पर बसा सिमरिया धाम देश में आस्था का एक बड़ा केंद्र है. खासतौर पर मिथिलांचल के लोगों के लिए यह एक पुण्यभूमि है, जिसका अपना धार्मिक इतिहास रहा है.
जानें क्या है सिमरिया विशिष्ट स्थान?
सिमरिया मगध का उत्तरी, अंग का पश्चिमी और मिथिला का दक्षिणी किनारा होने के कारण यह एक विशिष्ट स्थान है. कहां जाता है कि इसी स्थान से होकर भगवान राम और सीता के साथ अयोध्या गए थे. इसी स्थान पर राजा जनक ने माता सीता के पैर पखारने का भी काम किया था. राजा जनक ने भी यहां कल्पवास किया था. जिसके बाद सिमरिया में कल्पवास की अनोखी परंपरा आगे बढ़ी. ऐसी मान्यता है कि इसी इलाके में समुद्र मंथन के साथ-साथ राजा कर्ण का दाह संस्कार किया गया था.
रंग-बिरंगे पंडाल और पर्ण कुटीर
सिमरिया देव कर्म और पितृ कर्म का स्थान है, जहां पूजा पाठ के अलावा कोशी और मिथिलांचल से बड़ी संख्या में लोग हर दिन दाह संस्कार के लिए आते हैं. बदलते वक्त और बदलते हालात के बावजूद इस स्थान पर धर्म-कर्म के अलावा कल्पवास की परंपरा ज्यो की त्यों चली आ रही है. ये अलग बात है कि कल जहां लोग खुले आसमान और बालू की ढेर पर कल्पवास किया करते थे. वहीं, अब लोग आधुनिकता के रंग मे रंगकर रंग-बिरंगे पंडाल और पर्ण कुटीरों में रहकर मोक्ष की कामना और गंगा की पूजा-अर्चना मे तल्लीन रहते हैं.
2016 में मिला राजकीय मेले का दर्जा
वहीं, सरकार ने भी उनकी सुविधाओं का खास ख्याल रखा है. लोगों की श्रद्धा और इस स्थान की महत्ता को देखते हुए बिहार सरकार ने साल 2016 में कल्पवास को राजकीय मेला का दर्जा दिया था. तब से लेकर आज तक यह स्थान आधुनिकता के रंग मे रंग गया. बताते चले कि पुरे कार्तिक महीने में लोग सुबह तीन बजे से ही उठकर गंगा की पूजा अर्चना से अपने दिन की शुरुआत करते हैं और इनका पूरा दिन धर्म-कर्म में बितता है.
सभी लोग बढ़ चढ़कर होते शामिल
पूरे कल्पवास की खासियत यह है कि यहां ना अमीरी देखी जाती है ना गरीबी देखी जाती है और ना ही जात-पात का रंग देखा जाता है. यहां हर कोई बस मोक्ष की प्राप्ति की कामना के साथ पर्ण कुटीरों मे रहकर गंगा की पूजा करता है. इस दौरान बूढ़े, बुजुर्ग, महिलाएं, जवान और बच्चे आधुनिकता भोग बिलास और भाग दौड़ की जिंदगी से अलग एक नई दुनिया का अहसास कराते है, जो बड़ा हीं मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है.
बिहार, उड़ीसा, नेपाल, उत्तर प्रदेश आसाम और बंगाल से कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालू, साधु, संत, महात्मा और खालसा के लोग पुरे दिन भजन कीर्तन आरती और जप तप मे तल्लीन रहते हैं और इनकी एक अलग दुनिया होती है. एक माह तक चलने वाले कल्पवास मेला का विधिवत उद्घाटन डीएम तुषार सिंगला और एसपी मनीष ने दीप प्रज्वलित कर किया है. मां गंगा का सेवन और भजन-कीर्तन सत्संग सुनकर लोग धन्य हो रहे हैं.
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